Monday, March 28, 2011

ठाकुर है इसलिए हमारी बेइज्जती कर रहा है …

http://www.sarokar.net/2011/03/ठाकुर-है-इसलिए-वो-हमारी-बे/

मेरा नाम चन्दा देवी, उम्र-30 साल, पत्नी-स्व0 विजय कुमार। हमारे तीन लड़के: अक्षय कुमार, उम्र-14 साल, दरोगा, उम्र-10 साल , मनोहर, उम्र-8 साल हैं। अक्षय कुमार हमारे साथ मजदूरी का काम करता है। जबकि दरोगा कक्षा-5 और मनोहर कक्षा-3 में प्राथमिक विद्यालय में पढ़ता है। मैं ग्राम-अहिरानी, पोस्ट-कुआर बाजार, ब्लाक-बड़ागाँव, तहसील-पिण्डरा, जिला-वाराणसी की रहने वाली हूँ।

मैं मनरेगा जॉब कार्ड धारक मजदूर हूँ। गाँव में मनरेगा के तहत जहाँ-जहाँ काम लगता है, वहां जाकर काम करती थी। अगस्त 2009 में हमारे गाँव में कहीं भी काम नहीं लगा, तो हम सब ने मनरेगा के तहत ब्लॉक-बड़ागाँव में जाकर काम माँगे। तब हमारे गाँव में रोजगार सेवक (अनिल दूबे) आकर बताये कि दिनांक 6 सितंबर 2009 से टेटुआपुर में तालाब में काम लगेगा। उसी दिन से टेटुआपुर के तालाब में जाकर काम करना शुरू कर दिये। तालाब में पथरीली मिट्टी के कारण फावड़ा चलाने से हाथ में छाले पड़ जाते थे। रोजगार सेवक हम सबको मानक से बढ़ा-बढ़ाकर काम देता था जिसका हम सब मिलकर शिकायत किये। तब वह सबको भर जाति समझकर भगा देता था। हम सब मजदूर बड़ागाँव ब्लॉक पर आकर बी0डी0ओ0 से शिकायत किये। बी0डी0ओ0 रोजगार सेवक और प्रधान को बुलाये और डाँटे। उसके बाद हम मजदूरों ने सोशल ऑडिट की माँग भी रखी। बी0डी0ओ0 ने 14 सितम्बर, 2009 को ग्राम पंचायत नथईपुर के ग्राम अहिरानी सामुदायिक भवन में सोशल ऑडिट करने का दिन तय किया।


14 सितम्बर, 2009 को दोपहर बाद तीन बजकर तीस मिनट सोशल ऑडिट करने के लिये बी0डी0ओ0 (अतुल मिश्र), ग्राम पंचायत अधिकारी (रामराज), रोजगार सेवक (अनिल दूबे) व प्रधान पति (अरूण सिंह उर्फ लोलारक सिंह) अहिरानी सामुदायिक भवन पहुँचें।

बी0डी0ओ0 साहब सोशल ऑडिट की प्रक्रिया चलाने लगे और मास्टर रोल पढ़ने लगे, जिसमें लालजी का मस्टर रोल में एक दिन का उपस्थिति कम लगी। उसको लेकर कहा-सुनी होने लगा। तब तक कुआर कोट के महेन्द्र सिंह अचानक वहाँ आये और चिल्लाने व धमकी देते हुए दरवाजा बन्द करने की कोशिश करने लगे। तब तक गाँव की सब महिला समुदायिक भवन से बाहर निकलने लगी। तभी मुझे ऐसा लगा कि बाहर मार-पीट हो रहा है। मैं भी दौड़कर निकली। देखा तो हमारे जेठ नन्दू को अरूण सिंह उर्फ लोलारक सिंह अपने दोनों हाथ से उनके गला को दबा रहे हैं जिससे उनके आँख की पुतरी-टंग गयी। उस समय लगा कि अब लोलारक सिंह हमारे जेठ को गला दबाकर मार डालेंगे। मैं चिल्लाते हुए दौड़ी कि ‘बचाओ-बचाओं, नही तो हमारे जेठउत को मार देगें।‘ यह कहते-कहते मैं पहुँचकर गला छुड़ाने लगी। तब वह एक हाथ से मुझे भी मारने लगा, जिससे मेरी साड़ी सिर से उतर गयी। आस पास गाँव के काफी लोग वहाँ इकट्ठा थे फिर वह मेरा ब्लाऊज खींचकर फाड़ दिया, तब तक गाँव के लोग आकर बीच-बचाव किये। उस समय मैं अपने साड़ी से अपने तन को ढ़की। मुझे बहुत शर्म आ रही थी। उस समय मुझे लगा कि वह ठाकुर है इसलिए मेरे गाँव में आकर हमारी बेइज्जती कर रहा है। मैं थाना-फूलपुर छः किलो मीटर दूर तक पैदल चलकर अंधेरे में गयी और मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यकर्ताओं व गाँव के लोगों के साथ थाने गयी। दरोगा एफ0आई0आर0 लिखने से मना कर दिया। जिस पर काफी बहस हुई। तब जाकर केवल एन0सी0आर0 दर्ज हुआ।

लोलरक सिंह बार-बार महिलाओं को मुझे मारने के लिए उकसा रहा है। जिसके भय के कारण मैं अपने राशनकार्ड का अनाज कोटेदार के यहाँ जाकर नहीं उठाती, मेरा लड़का उठाने जाता है। मनरेगा का काम अब लोलारक सिंह के गाँव नथईपुर में हो रहा है। जिसके कारण वहाँ काम करने नहीं जाती हूँ। वह बार-बार धमकी देता है कि नथईपुर आ जाए, तब गाँव की महिलाओं से उसको मरवाऊँगा, लेकिन मैं तब तक लडूंगी जब तक उसको जेल न हो जाय।


मंगला प्रसाद से बातचीत पर आधरित



डॉ0 लेनिन रघुवंशी 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के महासचिव हैं और वंचितों के अधिकारों पर इनके कामों के लिये इन्‍हें 'वाइमर ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', जर्मनी एवं 'ग्वांजू ह्युमन राइट्स अवॉर्ड', दक्षिण कोरिया से नवाज़ा गया है. लेनिन सरोकार के लिए मानवाधिकार रिपोर्टिंग करते है. उनसे pvchr.india@gmail.com पर संपर्क साधा जा सकता है. Tags: चंदा देवी, सामंती अत्‍याचार



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Monday, March 21, 2011

Thursday, March 17, 2011

Branded witch, these women are scarred forever

http://timesofindia.indiatimes.com/city/varanasi/Branded-witch-these-women-are-scarred-forever/articleshow/7729775.cms

http://m.timesofindia.com/PDATOI/articleshow/7729775.cms

VARANASI: It is impossible for Jagesari Devi (32), a tribal woman of Sonebhadra district, to forget the fateful day when she became a victim of witch hunting and her tongue was chopped off. She was branded a 'dayan' (witch) by a local 'ojha' (sorcerer). Though her wounds have healed, the scars remain forever. The unforgettable nightmare has rendered the Holi festival colourless for her.


"Am I really a dayan," wonders Jagesari, wife of Ramashankar and a native of Karahiya village under Dudhi police station in Myorpur Block of Sonebhadra district. Following this inhuman act of others, today she can neither speak properly nor can eat or drink with ease.

In her testimony to a human rights organisation, Peoples Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR), she narrated her ordeal with the hope to get justice.

The daughter of her brother-in-law Sahdev died due to illness on August 1, 2010. When she went to his house to condole the death, she saw that a local sorcerer was also present there. He started claiming that Jagesari was a dayan and had caused the death. Soon, the orthodox people were supporting the man who chopped off her tongue in punishment. She cried out for help, but no one heard her cries. Somehow, her husband managed to rush her to a hospital for treatment.

"After being labelled a witch and facing physical torture and social humiliation, how can she be expected to lead a normal life?" questioned Lanin Raghuvanshi of PVCHR. The PVCHR, in association with the Rehabilitation and Research Centre for Torture Victims of Denmark, organised a programme of public hearing recently in the city to hear the story of Jagesari and other such victims of witch hunting. The volunteers tried to document the cases of witch hunting in remote villages of Sonebhadra.

According to Raghuvanshi, poor and low-caste women are easily branded as witches, mostly in tribal areas. The woman once branded a witch finds it impossible to get rid the stigma. She is subjected to violent acts like physical torture and social humiliation, even to the extent of being stripped naked.

Manbasia (45) is another woman who has been subjected to inhuman ordeal in Ghaghari Tola Sahgora village, under Babhani police station, in Myorpur block of Sonebhadra district. After the demise of a boy in the village, she was not only attacked with sharp weapons but also paraded naked in public on July 17, 2010. "I was not a dayan, then why was I paraded naked?" she questioned. Her husband Jodhilal said he had to mortgage his land for his wife's treatment.


However, officials of both police stations categorically denied that such cases had ever taken place in their respective areas. Both Vijaymal Singh Yadav, inspector of Dudhi police station, and Asharam Goyal, inspector of Babhani police station, when contacted over phone on Thursday told TOI that they had no information about witch hunting or practice of witchcraft in their area. However, in another case of witch hunting, a woman Somari Devi (40), wife of Dinesh Gond and native of Baliyari village under Dudhi police station, was also humiliated on January 14, 2011. A local native after branding her a witch, pushed her into fire. Her saree was burnt, however, her husband saved her. In her testimony, she alleged that the police did not register her complaint. Instead of punishing the culprit, the police let him off scot-free, she said.

Raghuvanshi says there are many factors responsible for the prevalence of witch hunting. One of the reasons is socio-economic. Generally witch hunters do so for property (grabbing) reasons. Sometime women become victims for refusing sexual advances. But, in most of the cases, women suffer because they are unable to get any help from the society. "Most of the cases go unreported," he said and added "police do not play a positive role in stopping harassment of women in the name of witchcraft practice."

"We are forwarding the testimonies of these women to the National Human Rights Commission (NHRC) to draw its attention towards this social evil and get victims of witch hunting some justice," Raghuvanshi said and added it was vary sad that the human rights of women were being violated openly in the name of witchcraft practice.

Witch Hunting

Savitri Bai Phule Mahila Panchayat/Savitri Bai Phule Women Forum(SWF): यही सोचती कि क्या मैं सचमुच डायन हूँ

Savitri Bai Phule Mahila Panchayat/Savitri Bai Phule Women Forum(SWF): यही सोचती कि क्या मैं सचमुच डायन हूँ

Tuesday, March 15, 2011

Monday, March 14, 2011

दलितों, वंचितों के शिक्षा के अधिकार पर जनसुनवाई

http://www.sarokar.net/2011/03/दलितों-वंचितों-के-शिक्षा/

  • भारतीय मुक्ति दिवस पर दलितों, वंचितों के शिक्षा के अधिकार पर जनसुनवाई
  • डायन प्रथा, यौन उत्पीड़न की शिकार व बंधुआ मजदूरों का उनके संघर्षों के लिए सम्मानित किया गया।
  • मुस्लिम बच्चों की तालीम में उत्कृष्ट योगदान के लिए जनमित्र सम्मान

                     जनसुनवाई के दौरान विभिन्‍न संघर्षों के लिए सम्‍मानित नागरिक

भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फूले की पुण्य तिथि एवं भारतीय महिला मुक्ति दिवस पर ‘दलितों एवं वंचितों के शिक्षा के अधिकार’ पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति (पीवीसीएचआर) एवं सावित्री बाई फूले महिला पंचायत के संयुक्त तत्वावधान में एक ‘‘जनसुनवाई’’ का आयोजन किया गया। पराड़कर स्मृति भवन मैदागिन में संपन्‍न हुए इस जनसुनवाई में वाराणसी, सोनभद्र एवं अम्बेडकर नगर के सात ब्लाकों में स्थित 30 गांवों के 17 प्राथमिक विद्यालयों एवं 27 पूर्व प्राथमिक शिक्षण केन्द्रों (आंगनबाड़ी) की ढाँचागत अव्यवस्था, शिक्षकों की कमी, गुणवत्तायुक्‍त शिक्षा का अभाव, छात्र-छात्राओं के साथ भेदभाव, विद्यालयों की कमी आदि समस्याओं के मद्देनज़र तथ्यात्मक आधार पर अध्ययन कर जनसुनवाई आयोजित की गयी।


                                                   अपना पक्ष रखती एक पीडिता


जनसुनवाई की इस प्रक्रिया से सामने आये तथ्यों को जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी, शिक्षा विभाग उ0प्र0, मानव संसाधन मंत्रालय, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय बाल सुरक्षा अधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, यूनेस्को, यूनीसेफ को प्रेषित की जायेगी। विदित है कि वाराणसी, अम्बेडकर नगर, सोनभद्र जिले के 17 प्राथमिक विद्यालय एवं 27 आंगनबाड़ी केन्द्रों का सैम्पल सर्वे, अध्ययन कर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट, शिक्षा के अधिकार के हनन की केस स्टडी जन सुनवाई में विचार हेतु रखा गया।

जनसुनवाई के जुरी के पैनल में पीयूसीएल के प्रांतीय अध्यक्ष श्री चितरंजन सिंह, किसान अधिकार पर सक्रिय श्री उत्कर्ष सिन्हा, वरिष्ठ महिला कार्यकर्ता सुश्री बिन्दु सिंह एवं बाल पंचायतों के जिला कोर-कमेटी की प्रतिनिधि 16 वर्षीया पूजा ठठेरा रहे। जुरी के सदस्‍यों ने दलितों एवं वंचितों के शिक्षा के अधिकार में आ रही बाधाओं की केस स्टडी, उनके अनुभवों एवं सर्वे पर विश्लेषण को गंभीरता से सुनते हुए अपना प्रतिवेदन दिया।


जनसुनवाई  की शुरुआत में डायन प्रथा, हिंसा और यौन शोषण की शिकार महिलाओं को टेस्टीमोनियल थेरेपी (स्व-व्यथा कथा) पद्धति द्वारा मनोवैज्ञानिक सम्बल देते हुए चिकित्सा किये जाने के बाद उनके संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बजरडीहा क्षेत्र में बच्चों के प्राथमिक शिक्षा में उल्लेखनीय योगदान के लिए उस्मानिया मदरसे के नायब सदर जनाब नईमुद्दीन अंसारी एवं सेक्रेटरी जनाब मो. असलम अंसारी को जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया।



सोनभद्र जनपद के म्योरपुर ब्लॉक में ‘डायन’ प्रकरण से पीड़ित महिलाओं- जगेसरी देवी, सोमारी, मनबसिया तथा एक पुरूष जोधीलाल जिसकी औरत को डायन बताकर दुव्र्यवहार किया गया, के

    जुरी के सदस्‍य श्री उत्कर्ष सिन्हा, पूजा ठठेरा, श्री चितरंजन सिंह तथा सुश्री बिन्दु सिंह


साथ यौन उत्पीड़न के शिकार मनमासी (परिवर्तित नाम) तथा कलपतिया और समुदरी (जिनके नाबालिग बच्ची के साथ यौन हिंसा का कृत्य किया गया) को सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में बन्धुवा मजदूरी से भयमुक्त किये गये जौनपुर (सकरा रामपुर) के राजेन्द्र वनवासी तथा कीला मुसहर के साथ पुलिस उत्पीड़न के शिकार राजेश्वर सोनकर उर्फ राजू जो वाराणसी के निवासी हैं को भी ‘टेस्टीमोनियल थेरेपी’ स्व-व्यथा कथा के उपचार से मनोवैज्ञानिक सहयोग प्रदान कर टेस्टीमनी सौंपा गया।



इस जनसुनवाई का संचालन अनूप ने किया। मानवाधिकार जन निगरानी समिति के डॉ0 लेनिन, सिद्दीक हसन, डॉ0 राजीव, कात्यायनी, शबाना, उपेन्द्र, मंगला, आनन्द आदि उपस्थित रहे।

मानवाधिकर जन निगरानी समिति की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी ने आशा व्‍यक्‍त की कि कि आने वाले दिनों में इस जनसुनवाई का असर देखने को मिलेगा। उन्‍होंने ये भी कहा कि ज़रूरत पड़ने पर ऐसी और जनसुनवाइयों का आयोजन किया जाएगा।


मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा वाराणसी, सोनभद्र, अम्बेडकर नगर के 30 गांवों के 17 प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यपक, शिक्षक से प्राप्त जानकारी के आधार पर सर्वे पर विश्लेषण बाद निम्‍नलिखित चौकाने वाले तथ्य सामने आये, जिस पर समिति ने राज्य सरकार से पहल की अपील की है :


1.कुल 52 प्रतिशत और 48 प्रतिशत नामांकित मिले, जिसमें केवल 0.65 प्रतिशत प्रवासी बच्चे मिले। इससे यह तथ्य सामने आया कि अभी भी बच्चियां कम नामांकित हैं, क्योंकि सही गुणवत्ता न होने के कारण अभिभावक पितृसत्ता में धन होने पर अपने लड़कों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं। वहीं दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट हो गया कि प्रवासी बच्चों के लिए विशेष किस्म के शिक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है।

2.65 प्रतिशत स्कूल अपने वार्षिक प्लान बनाते हैं जबकि आज भी 35 प्रतिशत स्कूल वार्षिक प्लान बनाने की फजीहत नहीं उठाते।

              मानवाधिकर जन निगरानी समिति की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी

सभी (17) विद्यालयों में बाल श्रमिकों को जोड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं चल रहा है। ऐसे में सभी बच्चों को स्कूल से जोड़ने का कार्यक्रम कैसे चलाया जा सकता है, वहीं 7 स्कूलों में खेल का स्थान ही नहीं है और 3 स्कूलों में स्टाफ के लिए कक्ष नहीं है।



3.स्कूलों में शिक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? जब 6 स्कूलों में स्कूल मैनेजमेन्ट कमेटी का गठन ही नहीं हुआ है, और 4 स्कूल यानि 24 प्रतिशत स्कूलों में सभी अध्यापकों के लिए कक्ष नहीं है, वहीं तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालय बिना प्रधानाचार्य के चल रहे हैं।

4.सबसे अधिक चैंकाने वाली बात यह है कि 17 विद्यालयों के 10125 बच्चों को 72 अध्यापक ही पढ़ा रहे हैं। जबकि 40 बच्चों पर एक अध्यापक का मानक तय किया है।

मिड-डे-मील तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालयों में मीनू के अनुसार नहीं दिया जा रहा है, वहीं 6 प्रतिशत विद्यालय ने इसका जवाब ही नहीं दिया। वहीं 23 प्रतिशत स्कूलों में भोजन बनाने के लिए किचन शेड नहीं है।

5.जहाँ बच्चे समूह बनाकर सामाजिक बुराईयों को रोकने के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम ऊँचा कर रहे हैं। वहीं तकरीबन 53 प्रतिशत स्कूलों में बाल भागीदारी के तहत कोई समूह नहीं बने हैं। लगभग 6 प्रतिशत स्कूलों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।

6.41 प्रतिशत स्कूल यह मानते हैं कि उनके आसपास के सभी बच्चे नामांकित नहीं होते, वहीं लगभग 6 प्रतिशत स्कूलों में किताबें नहीं बटती, लगभग 65 प्रतिशत विद्यालयों में ड्रेस नहीं बटता।

7.लगभग 53 प्रतिशत स्कूलों में स्वास्थ्य जाँच नहीं होती, वहीं 18 प्रतिशत स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए रैम्प की व्यवस्था नहीं है। जबकि केवल 2 स्कूलों में अंधे बच्चों के लिए पढ़ने की सामग्रियां है, शारीरिक व मानसिक विकलांग बच्चों के लिए केवल 6 विद्यालयों में विशिष्ट अध्यापक हैं।

8.तकरीबन 29 प्रतिशत पंचायत शिक्षा समिति सक्रिय नहीं है, वहीं करीब 53 प्रतिशत स्कूलों की आज भी चहारदीवारी नहीं है। वहीं 12 प्रतिशत विद्यालय आज भी खस्ता हाल में हैं।

जहां एक तरफ मनोरंजक तरीके से शिक्षा देने की बात हो रही है, दूसरी तरफ किसी भी विद्यालय में मनोरंजन के साधन नहीं हैं। तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालय को इस संदर्भ में जानकारी भी नहीं है। लगभग 70 प्रतिशत बच्चे विद्यालय में मिलने वाली खेल सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं। दूसरी तरफ चैकाने वाले तथ्य यह है कि तकरीबन 12 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में सरकारी स्तर से मिलने वाली पुस्तके मिलती ही नहीं।

9.किसी भी विद्यालय में न तो लाइब्रेरी है न उसका कक्ष है उससे ज्यादा आज भी अध्यापन में सामंती सोच के यह तथ्य उजागर करता है कि अध्यापक व बच्चों में कोई संवाद ही नहीं है।

उपर्युक्‍त मसलों से संबंधित विस्‍तृत जानकारी के लिए निम्‍नलिखित फोन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।

सम्पर्क नं. 09935599330, 09935599333, 09935599335

Voice of Dalit from Benaras: Police

Voice of Dalit from Benaras: Police: "Police are everywhere so finding them is very easy for people. What most of police do in ur country? and what most of police ..."

Friday, March 11, 2011

Voice of Dalit from Benaras

Voice of Dalit from Benaras

Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR): Children’s initiative against child marriage

Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR): Children’s initiative against child marriage: "http://www.mynews.in/News/_____________childrens_initiative_against_child_marriage_N330924.html Maneesha, a 13 year old girl, is a resident..."

Saturday, March 5, 2011