http://www.sarokar.net/2011/03/दलितों-वंचितों-के-शिक्षा/
- भारतीय मुक्ति दिवस पर दलितों, वंचितों के शिक्षा के अधिकार पर जनसुनवाई
- डायन प्रथा, यौन उत्पीड़न की शिकार व बंधुआ मजदूरों का उनके संघर्षों के लिए सम्मानित किया गया।
- मुस्लिम बच्चों की तालीम में उत्कृष्ट योगदान के लिए जनमित्र सम्मान
जनसुनवाई के दौरान विभिन्न संघर्षों के लिए सम्मानित नागरिक
भारत की प्रथम महिला शिक्षिका सावित्री बाई फूले की पुण्य तिथि एवं भारतीय महिला मुक्ति दिवस पर ‘दलितों एवं वंचितों के शिक्षा के अधिकार’ पर मानवाधिकार जननिगरानी समिति (पीवीसीएचआर) एवं सावित्री बाई फूले महिला पंचायत के संयुक्त तत्वावधान में एक ‘‘जनसुनवाई’’ का आयोजन किया गया। पराड़कर स्मृति भवन मैदागिन में संपन्न हुए इस जनसुनवाई में वाराणसी, सोनभद्र एवं अम्बेडकर नगर के सात ब्लाकों में स्थित 30 गांवों के 17 प्राथमिक विद्यालयों एवं 27 पूर्व प्राथमिक शिक्षण केन्द्रों (आंगनबाड़ी) की ढाँचागत अव्यवस्था, शिक्षकों की कमी, गुणवत्तायुक्त शिक्षा का अभाव, छात्र-छात्राओं के साथ भेदभाव, विद्यालयों की कमी आदि समस्याओं के मद्देनज़र तथ्यात्मक आधार पर अध्ययन कर जनसुनवाई आयोजित की गयी।
अपना पक्ष रखती एक पीडिता
जनसुनवाई की इस प्रक्रिया से सामने आये तथ्यों को जिला प्राथमिक शिक्षा अधिकारी, शिक्षा विभाग उ0प्र0, मानव संसाधन मंत्रालय, मानवाधिकार आयोग, राष्ट्रीय बाल सुरक्षा अधिकार आयोग, राज्य मानवाधिकार आयोग, यूनेस्को, यूनीसेफ को प्रेषित की जायेगी। विदित है कि वाराणसी, अम्बेडकर नगर, सोनभद्र जिले के 17 प्राथमिक विद्यालय एवं 27 आंगनबाड़ी केन्द्रों का सैम्पल सर्वे, अध्ययन कर विश्लेषणात्मक रिपोर्ट, शिक्षा के अधिकार के हनन की केस स्टडी जन सुनवाई में विचार हेतु रखा गया।
जनसुनवाई के जुरी के पैनल में पीयूसीएल के प्रांतीय अध्यक्ष श्री चितरंजन सिंह, किसान अधिकार पर सक्रिय श्री उत्कर्ष सिन्हा, वरिष्ठ महिला कार्यकर्ता सुश्री बिन्दु सिंह एवं बाल पंचायतों के जिला कोर-कमेटी की प्रतिनिधि 16 वर्षीया पूजा ठठेरा रहे। जुरी के सदस्यों ने दलितों एवं वंचितों के शिक्षा के अधिकार में आ रही बाधाओं की केस स्टडी, उनके अनुभवों एवं सर्वे पर विश्लेषण को गंभीरता से सुनते हुए अपना प्रतिवेदन दिया।
जनसुनवाई की शुरुआत में डायन प्रथा, हिंसा और यौन शोषण की शिकार महिलाओं को टेस्टीमोनियल थेरेपी (स्व-व्यथा कथा) पद्धति द्वारा मनोवैज्ञानिक सम्बल देते हुए चिकित्सा किये जाने के बाद उनके संघर्ष के लिए सम्मानित किया गया। इस अवसर पर बजरडीहा क्षेत्र में बच्चों के प्राथमिक शिक्षा में उल्लेखनीय योगदान के लिए उस्मानिया मदरसे के नायब सदर जनाब नईमुद्दीन अंसारी एवं सेक्रेटरी जनाब मो. असलम अंसारी को जनमित्र सम्मान से सम्मानित किया गया।
सोनभद्र जनपद के म्योरपुर ब्लॉक में ‘डायन’ प्रकरण से पीड़ित महिलाओं- जगेसरी देवी, सोमारी, मनबसिया तथा एक पुरूष जोधीलाल जिसकी औरत को डायन बताकर दुव्र्यवहार किया गया, के
जुरी के सदस्य श्री उत्कर्ष सिन्हा, पूजा ठठेरा, श्री चितरंजन सिंह तथा सुश्री बिन्दु सिंह
साथ यौन उत्पीड़न के शिकार मनमासी (परिवर्तित नाम) तथा कलपतिया और समुदरी (जिनके नाबालिग बच्ची के साथ यौन हिंसा का कृत्य किया गया) को सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में बन्धुवा मजदूरी से भयमुक्त किये गये जौनपुर (सकरा रामपुर) के राजेन्द्र वनवासी तथा कीला मुसहर के साथ पुलिस उत्पीड़न के शिकार राजेश्वर सोनकर उर्फ राजू जो वाराणसी के निवासी हैं को भी ‘टेस्टीमोनियल थेरेपी’ स्व-व्यथा कथा के उपचार से मनोवैज्ञानिक सहयोग प्रदान कर टेस्टीमनी सौंपा गया।
इस जनसुनवाई का संचालन अनूप ने किया। मानवाधिकार जन निगरानी समिति के डॉ0 लेनिन, सिद्दीक हसन, डॉ0 राजीव, कात्यायनी, शबाना, उपेन्द्र, मंगला, आनन्द आदि उपस्थित रहे।
मानवाधिकर जन निगरानी समिति की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी ने आशा व्यक्त की कि कि आने वाले दिनों में इस जनसुनवाई का असर देखने को मिलेगा। उन्होंने ये भी कहा कि ज़रूरत पड़ने पर ऐसी और जनसुनवाइयों का आयोजन किया जाएगा।
मानवाधिकार जननिगरानी समिति द्वारा वाराणसी, सोनभद्र, अम्बेडकर नगर के 30 गांवों के 17 प्राथमिक विद्यालयों में प्रधानाध्यपक, शिक्षक से प्राप्त जानकारी के आधार पर सर्वे पर विश्लेषण बाद निम्नलिखित चौकाने वाले तथ्य सामने आये, जिस पर समिति ने राज्य सरकार से पहल की अपील की है :
1.कुल 52 प्रतिशत और 48 प्रतिशत नामांकित मिले, जिसमें केवल 0.65 प्रतिशत प्रवासी बच्चे मिले। इससे यह तथ्य सामने आया कि अभी भी बच्चियां कम नामांकित हैं, क्योंकि सही गुणवत्ता न होने के कारण अभिभावक पितृसत्ता में धन होने पर अपने लड़कों को प्राइवेट स्कूलों में भेजते हैं। वहीं दूसरी तरफ यह भी स्पष्ट हो गया कि प्रवासी बच्चों के लिए विशेष किस्म के शिक्षा कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
2.65 प्रतिशत स्कूल अपने वार्षिक प्लान बनाते हैं जबकि आज भी 35 प्रतिशत स्कूल वार्षिक प्लान बनाने की फजीहत नहीं उठाते।
मानवाधिकर जन निगरानी समिति की मैनेजिंग ट्रस्टी श्रुति नागवंशी
सभी (17) विद्यालयों में बाल श्रमिकों को जोड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं चल रहा है। ऐसे में सभी बच्चों को स्कूल से जोड़ने का कार्यक्रम कैसे चलाया जा सकता है, वहीं 7 स्कूलों में खेल का स्थान ही नहीं है और 3 स्कूलों में स्टाफ के लिए कक्ष नहीं है।
3.स्कूलों में शिक्षा कैसे सुनिश्चित होगी? जब 6 स्कूलों में स्कूल मैनेजमेन्ट कमेटी का गठन ही नहीं हुआ है, और 4 स्कूल यानि 24 प्रतिशत स्कूलों में सभी अध्यापकों के लिए कक्ष नहीं है, वहीं तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालय बिना प्रधानाचार्य के चल रहे हैं।
4.सबसे अधिक चैंकाने वाली बात यह है कि 17 विद्यालयों के 10125 बच्चों को 72 अध्यापक ही पढ़ा रहे हैं। जबकि 40 बच्चों पर एक अध्यापक का मानक तय किया है।
मिड-डे-मील तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालयों में मीनू के अनुसार नहीं दिया जा रहा है, वहीं 6 प्रतिशत विद्यालय ने इसका जवाब ही नहीं दिया। वहीं 23 प्रतिशत स्कूलों में भोजन बनाने के लिए किचन शेड नहीं है।
5.जहाँ बच्चे समूह बनाकर सामाजिक बुराईयों को रोकने के लिए राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपना नाम ऊँचा कर रहे हैं। वहीं तकरीबन 53 प्रतिशत स्कूलों में बाल भागीदारी के तहत कोई समूह नहीं बने हैं। लगभग 6 प्रतिशत स्कूलों को इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है।
6.41 प्रतिशत स्कूल यह मानते हैं कि उनके आसपास के सभी बच्चे नामांकित नहीं होते, वहीं लगभग 6 प्रतिशत स्कूलों में किताबें नहीं बटती, लगभग 65 प्रतिशत विद्यालयों में ड्रेस नहीं बटता।
7.लगभग 53 प्रतिशत स्कूलों में स्वास्थ्य जाँच नहीं होती, वहीं 18 प्रतिशत स्कूलों में विकलांग बच्चों के लिए रैम्प की व्यवस्था नहीं है। जबकि केवल 2 स्कूलों में अंधे बच्चों के लिए पढ़ने की सामग्रियां है, शारीरिक व मानसिक विकलांग बच्चों के लिए केवल 6 विद्यालयों में विशिष्ट अध्यापक हैं।
8.तकरीबन 29 प्रतिशत पंचायत शिक्षा समिति सक्रिय नहीं है, वहीं करीब 53 प्रतिशत स्कूलों की आज भी चहारदीवारी नहीं है। वहीं 12 प्रतिशत विद्यालय आज भी खस्ता हाल में हैं।
जहां एक तरफ मनोरंजक तरीके से शिक्षा देने की बात हो रही है, दूसरी तरफ किसी भी विद्यालय में मनोरंजन के साधन नहीं हैं। तकरीबन 18 प्रतिशत विद्यालय को इस संदर्भ में जानकारी भी नहीं है। लगभग 70 प्रतिशत बच्चे विद्यालय में मिलने वाली खेल सुविधाओं से संतुष्ट नहीं हैं। दूसरी तरफ चैकाने वाले तथ्य यह है कि तकरीबन 12 प्रतिशत बच्चे स्कूलों में सरकारी स्तर से मिलने वाली पुस्तके मिलती ही नहीं।
9.किसी भी विद्यालय में न तो लाइब्रेरी है न उसका कक्ष है उससे ज्यादा आज भी अध्यापन में सामंती सोच के यह तथ्य उजागर करता है कि अध्यापक व बच्चों में कोई संवाद ही नहीं है।
उपर्युक्त मसलों से संबंधित विस्तृत जानकारी के लिए निम्नलिखित फोन नंबरों पर संपर्क किया जा सकता है।
सम्पर्क नं. 09935599330, 09935599333, 09935599335