Thursday, July 23, 2020

Human Rights Diary : सोलर लाइटों, रंगीन दीवारों के पीछे चीख रहे हैं उम्‍भा के हरे ज़ख्‍म

Human Rights Diary : सोलर लाइटों, रंगीन दीवारों के पीछे चीख रहे हैं #उम्‍भा के हरे ज़ख्‍म

 
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सोनभद्र के घोरावल से करीब 25 किलोमीटर दूर उम्‍भा गांव में 16 जुलाई, 2019 को हुई गोलीबारी की आपराधिक घटना को महीना भर होने आ रहा है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी आज वहां गांववालों से मिलने गई हैं। इससे पहले भी उन्‍होंने उम्‍भा जाने की कोशिश घटना के तत्‍काल बाद की थी लेकिन उन्‍हें बीच रास्‍ते में ही प्रशासन ने रोककर नज़रबंद कर दिया था।

दस आदिवासियों की जिंदगी लील लेने वाले इस ऐतिहासिक हादसे के बाद महीने भर के घटनाक्रम का जायज़ा लेने के लिए मानवाधिकार जन निगरानी समिति और “गांव के लोग” की एक टीम सोमवार को ही उम्‍भा से होकर आयी है।

अपनी ज़मीन के हक़ के लिए लड़ते हुए शहीद हुए दस आदिवासियों को सरकार ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की पहल पर 18 लाख 50 हजार की रकम प्रति शहीद परिवार प्रदान की है। वहीं प्रियंका गांधी की पहल पर कांग्रेस पार्टी ने दस  लाख रुपया प्रति शहीद परिवार दिया है। कुल 21 घायलों को सरकार की ओर से दो लाख रुपया दिया गया है किन्तु अभी लोगों ने खाता की जांच नहीं की है कि पैसा पहुंचा या नहीं। दूसरी तरफ अतिगंभीर नौ घायलों को कांग्रेस ने एक-एक लाख रूपया दिया है।

गोली मारने वाले जेल में हैं किन्तु लोग अब भी डरे हुए हैं। प्रशासन और भाजपा ने लोगों को हिदायत दे रखी है और पुलिस की गाड़ी लगातार गांव में घूम रही है। पुलिस और पीएसी ने प्राइमरी स्कूल पर कब्ज़ा कर लिया है। यहां के लोगों में डर को देखकर मैं कश्मीर के हालात के बारे में सोचने लगा।

उम्‍भा की सुखवंती गोली लगाने से बहुत गंभीर रूप से घायल हैं, किन्तु कुछ भी बताने से कतरा रही हैं क्योंकि प्रशासन का उन पर दबाव है। उनका बेटा जयप्रकाश जिसको माथे पर छर्रा लगा है और बायीं तरफ गोली मार कर निकल गयी है, पहले तो हमें देख कर सहम गया लेकिन आराम से पूछने पर उसने सारी बात बतायी। जयप्रकाश नवीं कक्षा का विद्यार्थी है। इस घटना के बाद से वह स्कूल नहीं जा पा रहा है। यहां हमारी मुलाक़ात 65 वर्ष के एक व्यक्ति से हुई जिनका नाम छोटेलाल है। इनके माथे और पैर में छर्रा लगा है। ऐसी गंभीर चोट वाले कुल 21 व्यक्ति इस गांव में हैं!

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घटना के बाद से गांव का रंग रूप बड़ी तेजी के साथ बदल रहा है। अब यहां की सड़क कुछ दूरी तक बड़े नेताओं के आने की वजह से जल्दी में बना दी गयी है। घटना के बाद कई नेताओं, पत्रकारों और मुख्यमंत्री के हुए दौरे के बाद कुछ घरों में सोलर लाइट लगाने का काम शुरू हो चुका है।

बनारस से सटे सोनभद्र जनपद में 16 जुलाई 2019 को दबंग भूमाफिया ने अवैध तरीके से आदिवासियों की जमीन हथियाने के लिए खूनी खेल खेला। हथियारबंद 300 लोगों ने निर्दोष आदिवासियों पर करीब आधे घंटे तक अंधाधुंध फायरिंग की। इस घटना में 10 आदिवासी मौके पर मारे गए और 21 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए।

बड़ी बात यह है कि घटना के समय आदिवासियों ने सोनभद्र के एसपी व कलेक्टर से लेकर सभी आला अफसरों को फोन किया। सभी के मोबाइल बंद मिले। 100 डायल पुलिस आई, पर तमाशबीन बनी रही। इस पुलिस के सामने ही चार आदिवासियों को गोलियों से छलनी किया गया। घोरावल थाना पुलिस के अधीन वाले इस इलाके में पुलिस तब पहुंची, जब हत्यारे नरसंहार कांड रचने के बाद सुरक्षित स्थानों पर पहुंच गए।

घटना के बाद मौके पर कोई प्रशासनिक अफसर नहीं गया। सत्तारूढ़ दल के किसी नेता ने भी शोक संवेदना व्यक्त करने की जरूरत नहीं समझी। अलबत्ता पुलिस नरसंहार कांड की अगुवाई करने वाले ग्राम प्रधान यज्ञदत्त के घर की सुरक्षा करती नजर आई। इस मामले में घोरावल पुलिस तो कठघरे में थी ही, सोनभद्र के एसपी और डीएम भी कम कसूरवार नहीं।

उम्‍भा में मानवाधिकार निगरानी समिति की टीम के सदस्‍य

विवादित जमीन का इतिहास यह है कि मिर्जापुर के कलेक्टर रहे एक आइएएस अफसर ने आदिवासियों की जमीन हथियाई और बाद में उसे भू-माफिया के हाथ बेच दिया। 1955 से मुकदमा लड़ रहे आदिवासियों को न्याय नहीं मिला। जमीन राजा बड़हर की थी और बाद में वह ग्राम सभा की हो गई। रिश्वतखोर अफसरों ने योजनाबद्ध ढंग से उनकी जमीन भू-माफिया के हवाले कर दी।

हैरान कर देने वाली बात यह है कि आदिवासियों से उनकी जमीन छीनने के लिए दर्जनभर लोगों को गुंडा एक्ट में निरुद्ध किया गया और उन्हें जिलाबदर भी करवा दिया गया। करीब 60 आदिवासियों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गए, जिसकी आड़ में पुलिस ने जमकर मनमानी की।

मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने change.org पर राज्य सरकार और राष्‍ट्रीय मानवाधिकार आयोग के नाम #SonbhadraKeAdivasi सोनभद्र नरसंहार कांड के शिकार आदिवासी लोगो की वेदना सुनिए” नामक पिटीशन जारी किया, जिस पर 880 लोगो ने  हस्ताक्षर किया।

लिंक : https://www.change.org/p/shri-aditya-yogi-nath-sonbhadrakeadivasi-सोनभद्र-नरसंहार-कांड-के-शिकार-आदिवासी-लोगो-की-वेदना-सुनिए

प्रियंका गांधी ने पहल कर इस मुद्दे को राष्‍ट्रीय मुद्दा बनाया है। मानवाधिकार आयोग से पहले और उससे ज्यादा तेज़ न्याय की प्रक्रिया को शुरू किया है. उनके इस प्रयास को महात्मा गांधी के सत्याग्रह आन्दोलन के रूप में देखा जा सकता है।

सोनभद्र कांड के संबंध में कुछ तत्‍काल मांगें 

  1. सोनभद्र में ट्रस्ट, समिति व अन्य संस्थान बना कर भूमि चोरी करने वालों के खिलाफ लूट व डकैती की प्राथमिकी दर्ज हो।
    2. जो ट्रस्ट अस्तित्व में नहीं उनसे इस तरह की जमीन वापस लेकर स्थानीय गरीबों को आवंटित की जाए।
    3. सोनभद्र में व्‍यापक पैमाने पर भूमि घोटाले हुए। इसकी निष्पक्ष जांच के लिए राजस्व न्यायिक आयोग का गठन किया जाए।
    4. सोनभद्र में राजस्व अदालतें पैसे पर बिक चुकी हैं, ऐसे में रेवेन्यू फ़ास्ट ट्रैक कोर्ट की स्थापना की जाए।
    5. इस नरसंहार के लिए जिम्मेदार सरकारी महकमे के लोगों को चिन्हित कर हत्या का मुकदमा दर्ज हो।
    6. सन् 2012 से 2017 के बीच जिले में हुए राजस्व फैसलों की समीक्षा हाई कोर्ट के जज से कराई जाए, इन वर्षों में जिले में हुए भूमि आवंटन की जनसुनवाई व समीक्षा की जाए।
    7. सीलिंग एक्ट में निकल रही हजारों हेक्टेयर जमीन आज भी कई गांवों में बेनामी है। उन्हें चिन्हित कर गरीबों में वितरित किया जाए।
    8. हत्यारों का व इस घटना के जिम्मेदार लोगों का सम्बंध किस राजनीतिक दल से है इसका खुलासा किया जाए।
    9. नरसंहार में मारे गए लोगों के परिजनों को एक-एक करोड़ रुपये का मुआवजा व उस जमीन का आवंटन किया जाए।
    10. प्राइमरी स्कूल से पुलिस को हटाया जाए, मिडिल स्कूल के साथ आवासीय आश्रम स्कूल शुरू किया जाए।
    11. वनाधिकार अधिनियम के तहत गांव वालों द्वारा दिए आवेदनों का निस्तारण किया जाए।

Human Rights Diary: पुलिस यातना का सामाजिक और राजनीतिक गठजोड़

Human Rights Diary: पुलिस यातना का सामाजिक और राजनीतिक गठजोड़

 
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पुलिस ने दबंगों से कहा- घबराओ मत, हम इसे तब तक मारेंगे जब तक डंडा न टूट जाए।

-राजकुमार गोंड, 34 वर्ष, ग्राम-चौका भुसौला, थाना चोलापुर, जिला वाराणसी

यह घटना 22 फरवरी 2018 की है। राजकुमार अपने घर पर थे जब पुआरी खुर्द के कुछ दबंग (संतोष मौर्या पुत्र स्व. दयाराम मौर्या, सुनील मौर्या पुत्र स्व. त्रिभुवन मौर्या, रामवचन पाल पुत्र स्व. भंगी पाल, विजय लाल यादव पुत्र कन्हैया लाल यादव और गौतम कुमार पुत्र स्व. बसन्तु) आकर उनके घर पर कब्जा करने लगे। जब उन्‍होंने इसका विरोध किया तो वे राजकुमार को मारने लगे।

राजकुमार ने उसी समय 100 नंबर पर फोन कर के मदद मांगी। दो पुलिस वाले इनोवा से आये। तब तक सभी दबंग जा चुके थे। 100 नंबर की पुलिस ने स्थानीय चौकी पर फोन किया। चौकी के सब-इंस्पेक्टर लालजी यादव ने उन्‍हें चौकी पर बुलाया। जब राजकुमार वहां पहुंचे तो देखा कि सभी दबंग वहां बैठे हुए थे।

राजकुमार बताते हैं, ”चौकी के सब-इंस्पेक्टर साहब हमें गंदी-गंदी गालियां (जातिसूचक) देकर तेज से कई झापड़ मारते हुए बोले- साला गुंडा बनता है? तुझे इतना मार मारूंगा कि कही मुंह दिखाने लायक नहीं रहेगा। यह कहते हुए मुझे कई झापड़ मारा। मेरे आगे के दोनों दात टूट गये। उस समय मैं दर्द से चिल्ला रहा था साहब हमे क्यों मार रहे हैं।” पुलिस ने दबंगों से कहा- घबराओ मत, हम इसे तब तक मारेंगे जब तक डंडा न टूट जाये।

”पुलिस मुझे तब तक मारती रही जब तक डंडा नही टूटा। पुलिस की मार से मेरे पैन्ट का पीछे का हिस्सा फट गया। मेरे घर वाले हाथ जोड़कर खड़े हो गये और विनती किये- साहब, आप जो कहेंगे हम वही करेंगे”, राजकुमार ने बताया। पुलिस ने उसी हालत में उन्‍हें पांच बजे तक बैठाया रखा। फिर धमकी दी कि अगर तुम लोग कहीं भी शिकायत करते हो तो तुम्हें फर्जी मुकदमे में डालकर जेल भेज देंगे|

इसके बाद पुलिस ने दबंगों के सामने एक कागज पर लिखवाया कि उनकी जमीन का बंटवारा हो गया है। पुलिस ने राजकुमार के घर वालों से जबरदस्ती साइन करवाया जबकि पुलिस ने खुद साइन नहीं किया। उस दिन राजकुमार के घर में चूल्हा नहीं जला।

ऐसी यातना का इस्तेमाल जबरिया अपराध कबूल कराने के लिए किया जाता है। दूसरी तरफ, लोगों को डराकर संसाधनों पर कब्‍ज़ा करने का भी यह तरीका है। इंटरनेशनल रिहैबिलिटेशन कौंसिल फॉर टार्चर विक्टिम (IRCT) के साथ मिलकर मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने यातना सम्‍बंधी डेटा के विश्लेषण का एक प्रोजेक्ट शुरू किया है। अब तक 162 ऐसे लोगों का डेटा जुटाया गया है जिन्‍होंने पुलिस की यातना झेली है।

ये आंकड़े बताते हैं कि बेरोजगार और आर्थिक रूप से कमजोर लोग यातना का सबसे ज्यादा शिकार होते हैं। अल्पसंख्यक, दलित और आदिवासी लोग यातना के ज्‍यादा शिकार हैं। 

वाराणसी में CK 50/43, हकाक टोला, थाना चौक, तहसील सदर की रहने वाली रिफ़त की कहानी ऐसी ही है, जहां पुलिस ने उसके भाई को बड़ा अपराधी घोषित कर के उसकी जिन्दगी बर्बाद कर दी।

रिफ़त जहां (उम्र 30 वर्ष) बताती हैं:

“मैंने बीए तक की शिक्षा ली है। हम चार भाई और चार बहनें हैं। मेरी बड़ी बहन विवाहित है। मैं दूसरे नम्बर पर हूं। मेरी तीसरी बहन राहत 25 साल की है, चौथी बहन जैनब 24 साल की, भाई समीर 22 साल, सलमान 21 साल, अमन 19 साल और अब्दुल्लाह उर्फ़ लड्डू 14 साल का है। हम रोज़ कमाने खाने वाले लोग हैं। जायदाद के नाम पर हमारे पास रहने के लिए एक घर है जिस पर भूमाफिया की निगाहें टिकी हुई हैं। इसका खामियाजा हम आज तक भुगत रहे हैं।”

बीते 10 सितम्बर 2018 को पुलिस ने रिफ़त के दरवाजे पर दस्तक दी। इस बार पुलिस का निशाना सबसे छोटा भाई 14 साल का लड्डू था। लडडू अभी सो कर उठा था और लोग घर के कामों में लगे हुए थे, तभी बाहर का दरवाजा किसी ने खटखटाया। रिफ़त ने दरवाजा खोला तो देखा कि चौकी इंचार्ज भदौरिया, सिपाही चन्द्रिका सिंह, सुरेन्द्र यादव धड़धड़ाकर घर में घुस गए और उसके छोटे भाई की ओर लपके। वह दौड़कर पुलिस के डर से मां की गोद मे जाकर चिपक गया। मां की पसली की हड्डी टूटी हुई थी, उनको बेल्ट लगा हुआ था लेकिन भदौरिया ने उनके मुंह में बंदूक की नाल डालकर भद्दी-भद्दी गालियां दीं। रिफ़त की मां दिल की मरीज़ भी हैं।

पुलिस बार–बार धमकी दे रही थीं कि अपराधियों को संरक्षण देने के जुर्म में धारा 216 लगाकर परिवार को बंद कर के जिन्दगी बर्बाद कर देंगे। आधा घंटा तांडव मचाने के बाद महिला पुलिस को बुलाकर पुलिस रिफ़त की बहन और भाई को पिस्टल लगाकर चौकी ले गयी। उस वक्‍त सारा मोहल्ला तमाशबीन की तरह खड़ा रहा था।

पुलिसिया ज्‍यादती और यातना की एक तस्‍वीर, वाराणसी 2008

पुलिसिया यातना की शुरुआत 2016 में हुई थी जिसकी वजह से रिफ़त के दो भाई कई महीनों तक जेल में रहे। यह परिवार दो साल से थाने-अदालत का चक्कर काट रहा है। पहली बार पुलिस रिफ़त के यहां 3 फरवरी 2016 को रात ढाई बजे पूछताछ के लिए आयी थी। रिफ़त उस मनहूस दिदन को याद करते हुए बताती हैं:

”उन्‍होंने मेरे पूरे घर में तोड़फोड़ की। पुलिस के डर से हम लोगों ने अपने भाई बहनों को रिश्तेदारों के यहां भेज दिया था। तीसरे दिन अख़बार में यह खबर आयी कि मेरे भाई अमन और सलमान शूटर हैं। इस खबर ने मेरे परिवार की इज्जत को तार–तार कर दिया। उन पर आइपीसी की धारा 307 और गैंग्स्टर एक्‍ट लगा दिया गया। हमने हाई कोर्ट से ज़मानत ली लेकिन उस पर दोबारा फर्जी तरीके से गैंग्स्टर लगाया गया। रोज़-रोज़ पुलिस की इस किचकिच से तंग  आकर हम लोग नदेसर पर मिन्ट हॉउस में किराये के मकान पर रहने लगे। सोचा कुछ दिन सुकून से रहेंगे लेकिन पुलिस ने हमें वहां भी नही छोड़ा।”

वे बताती हैं, ”19 अगस्त 2017 को रात करीब नौ बजे क्राइम ब्रांच के प्रभारी ओमनारायण सिंह, चौकी इंचार्ज रमेश चन्द्र मिश्र सिविल ड्रेस में आये और अमन को पूछने लगे। उस समय  मेरा भाई अमन घर पर ही था। आते ही वे लोग उसे मारने-पीटने लगे और पूछताछ के नाम पर उसे ले जाने लगे। उस समय उन लोगो ने अपना परिचय नहीं दिया था। उस समय मेरा बड़ा भाई समीर दुकान से आया हुआ था। भाई को ले जाता देख उसने पूछा तो उसके पास जो पचास हजार रुपया था वह और हम सभी का मोबाइल सब छीन कर अमन को वे अपने साथ लेकर चले गये। बहुत देर बाद खबर मिली कि उस पर गैंगस्टर लगा हुआ था। पुलिस लाइन में अमन को करेंट लगाकर पूछताछ की गयी। 22 अगस्त, 2017 को शिवपुर में एक मुठभेड़ दिखाकर बुलेरो के साथ दो लडकों का नाम मुकदमे में डाला और उसके ऊपर चार फर्जी मुकदमे और 307, पुलिस पर फायरिंग, चोरी का मोबाइल, घर के मोबाइल को दिखा दिया। चोरी की बुलेरो व आर्म्स एक्ट के तहत बिना किसी मेडिकल व ट्रीटमेंट के उसे जेल में डाल दिया गया।”

अमन बीटेक करना चाहता था लेकिन पुलिस ने उसे बड़ा अपराधी बना दिया। रिफ़त ने उसकी ज़मानत दिसम्बर में और सलमान की नवम्बर में करायी। रिफ़त कहती हैं, ”पुलिस ने मेरे दोनों भाइयों को फंसाने के लिए बुरी तरह से जाल बुना है। वे मेरे भाइयों को ले जाते घर से थे और गिरफ्तारी कहीं और से दिखाते थे। अब यह लोग तीसरे को निशाना बना रहे हैं। हमें पता ही नहीं कि हमने इनका क्‍या बिगाड़ा है।”

Muslim and Police: a perspective from Shirin Shabana Khan on Vimeo.

राजकुमार गोंड और रिफ़त की आपबीती साफ तौर से यातना के सामाजिक और राजनैतिक गठजोड़ को उजागर करती है। कश्मीरियों को, दलितों को, आदिवासियों को और आन्दोलन करने वालों को सबक सिखाना है, इसलिए भारत सरकार ने संयुक्त राष्ट्र संघ के यातना विरोधी  कन्वेंशन का अब तक अनुमोदन नहीं किया है जबकि नेपाल और बांग्लादेश जैसे देशों ने कर दिया है। राज्यसभा में यातना विरोधी कानून वर्षों से लंबित पड़ा है।

जब तक संविधान के अनुसार समाज की सोच नहीं बदलेगी, तब तक भारत में यातना को रोकने की जगह यातना का इस्तेमाल कर के डर और भय के सहारे सत्ता को कायम रखने के लिए किया जाता रहेगा।

Link: https://www.mediavigil.com/op-ed/column/human-rights-diary-by-lenin-raghuvanshi-police-torture-varanasi-cases/

Human Rights Diary : मानवाधिकारों के आईने में संघ प्रमुख का बयान

Human Rights Diary : मानवाधिकारों के आईने में संघ प्रमुख का बयान

 
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राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के मुखिया ने विजयादशमी पर बयान दिया है कि भीड़ की हिंसा (Mob lynching) पश्चिमी दुनिया की अवधारणा है और बाइबिल से आयी है। यह बयान भीड़ की हिंसा के अपराध और अब तक घटित घटनाओं को नकारना है।

आज से करीब 600 साल पहले काशी में संत कबीर और संत रैदास जी जात-पात, सांप्रदायिकता और पाखंड के खिलाफ बोले, किन्तु भीड़ की हिंसा का शिकार नहीं हुए। काशी के साथ समूचे भारत में शास्त्रार्थ की परंपरा रही है। हकीकत यह है कि आरएसएस के गुरु गोलवलकर जी यूरोप के दो फासीवादियों हिटलर और मुसोलिनी की विचारधारा को भारत में ले आये, जिसने भारत में मनुस्मृति आधारित भेदभाव वाली जाति-आधारित पितृसत्ता और सामंतवाद के साथ मिलकर भीड़ की हिंसा की शुरुआत की।

श्री मोहन भागवत जी ने कहा कि भारत का समाज मिलजुल कर रहता है। फिर सवाल उठेगा कि जीसस से 250 साल पहले अशोक द्वारा किया गया कलिंग का युद्ध क्या था? उससे पहले अगर लोक में देखें, तो रामजी द्वारा शम्बूक का वध (वाल्मीकि रामायण 583−84), माता सीता की अग्निपरीक्षा, गर्भवती होने पर भी माता सीता को घर से निकाले जाने के प्रसंग क्या कहते हैं? सती प्रथा और डायन प्रथा क्या है? दलितों और अदिवासियों को सामुदायिक दंड देने की प्रथा क्या है? शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य ने महिला ऋषियों पर तलवार क्यों ताना था? और पुष्यमित्र शुंग ने अशोक के पौत्र के साथ जो बरताव किया था, वह क्या था?

यह गुरु गोलवरकर जी द्वारा दिया पश्चिम से आयातित ज्ञान नहीं तो और क्या है? मोहन भागवत जी अगर वास्तव में समझते हैं कि लिंचिंग पश्चिम की अवधारणा है, तो उन्हें शाइस्ता परवीन की आवाज़ सुननी चाहिए जो लिंचिंग में मार दिए गए तबरेज़ अंसारी की बेवा हैं। झारखण्ड के खरसावां स्थित ग्राम बेहरासाईं, पोस्ट कदमडीह की यह घटना आरएसएस के मुखिया की आंख खेलने के लिए काफी होनी चाहिए।

तबरेज़ की कहानी, शाइस्ता की ज़ुबानी 

छह माह पहले ही हमारी शादी तबरेज़ अंसारी से हुई थी। अल्लाह के करम से हमें जैसा शौहर चाहिए था वैसा ही मिला। हम दोनों एक दूसरे के साथ बेहद खुश थे। मेरे पति मेरी हर छोटी बड़ी जरूरतों को पूरा करते थे। लेकिन हमारी ख़ुशी को न जाने किसकी बुरी नज़र लग गयी और हमारा हँसता खेलता परिवार बिख़र गया।

-शाइस्ता परवीन, 18 जून 2019 को भीड़ के हाथों झारखण्ड में मारे गए तबरेज़ अंसारी की बेवा

इस परिवार के साथ बीते 18 जून को जो हुआ, वह लिंचिंग के अलावा कुछ और कहा जा सकता है क्या? शाइस्ता से हमने पूरी घटना के बारे में पूछा। शाइस्ता बताती हैं:

मेरे पति काम के सिलसिले में बाहर जाने वाले थे और इस बार हम भी उनके साथ जाने की तैयारी कर रहे थे। उसके लिए वह टाटा कुछ ज़रूरी सामान लेने के लिए गए हुए थे। टाटा से लौटते हुए तक़रीबन 10 बजे रात तबरेज़ हमसे फ़ोन करके बोले की वह वापस आ रहे हैं। उस वक़्त मैं अपने मायके में ही थी। काफ़ी रात तक मैं उनका इंतज़ार करती रही, लेकिन न वो ही आये न उनका फ़ोन ही। हमें लगा कहीं रुक गए होंगे। 18 जून, 2019 को सुबह तक़रीबन 6 बजे उनका फोन आया। जब मैंने फ़ोन उठाया तो वे जोर−जोर से बोल रहे थे कि तुम लोग भाई को लेकर जल्दी से आओ और हमको बचा लो नहीं तो ये लोग मेरी जान ले लेंगे। यह सुन कर मुझे लगा कि उनसे फ़ोन पर यह सब कोई बोलवा रहा है। मैंने बिना रुके चीखते चिल्लाते घर के सभी लोगों को यह ख़बर दी। तुरंत घर के लोग गए तो देखा कि वहां जमघट लगाकर लोग तबरेज़ को मार रहे थे। घर के लोग वहां बेबस थे। वह लोग उग्र भीड़ को तबरेज को मारने से रोक न सके। वह लोग घर वापस आकर तुरंत पुलिस को फ़ोन किये, तब सरायकेला थाने की पुलिस आकर मेरे शौहर को लेकर थाने चली गयी| थाने में हम लोगों को तबरेज़ से मिलने नहीं दिया गया। उनको आँख भर देखने और मिलने के लिए हम थाने के गेट के बाहर घंटों इंतज़ार करते रहे, पर किसी पुलिस वाले को हम लोगों पर तरस नहीं आया| उन लोगों ने हम लोगो को तबरेज से मिलने नहीं दिया, हम लोगों ने बहुत मिन्नतें की लेकिन सब बेकार। किसी तरह मेरी अम्मी हाज़त के पास जाकर देखीं कि मेरे शौहर जमीन पर लेटे हुए थे। उनकी तबियत एकदम ठीक नहीं लग रही थी| उनकी यह हालत देखकर मेरी अम्मी रोने लगीं।

रोने की आवाज़ सुनकर पुलिसवालों ने उनके चाचा और अम्मी को बोला- “चोर की सिफारिश करने आये हो, उसको भी मारेंगे और तुमको भी मारेंगे।”

“तभी पप्पू मंडल जो तबरेज़ को मारा था, वह थाने में पुलिस वाले और हम लोगों को सुनाते हुए बोला कि साले को इतना मारे पर मरा नहीं?” – शाइस्ता ने बताया।

पुलिस वालों से परिवार ने इलाज के लिए अनुरोध किया, तो पुलिस ने कहा कि इलाज करवा दिया गया है, सब नॉर्मल है। उसी दिन तीन बजे पुलिस ने चालान कर दिया और तबरेज़ के मोबाइल, पर्स के अलावा बेल्ट को अपने पास लिया। परिवार को थाने जाने पर मालूम हुआ कि तबरेज जेल में है| वे लोग तुरंत जेल गए तबरेज़ से मिलने।

22 जून, 2019 की सुबह परिवार के पास फोन आया कि तबरेज़ बहुत बीमार है और सदर अस्पताल में भर्ती है। शाइस्ता के मुताबिक:

शाम के तक़रीबन 7 बज रहे थे, लेकिन हम लोगों को कोई तबरेज़ से मिलने नहीं दे रहा था। बहुत मिन्नत के बाद बोला गया कि आप लोग दो घंटे बाद उनसे मिल सकती हैं। उनके ऊपर सफ़ेद चादर देखकर मैं चिल्ला−चिल्ला कर रोने लगी। 11 बजे रात एक पुलिस (SDPO) के आने के बाद हम लोगों को तबरेज़ के पास जाने दिया गया।

परिवार वाले तबरेज को टीएमसी अस्पताल ले जाने लगे तो सदर अस्पताल के लोगों ने उन्हें रोक दिया। तबरेज़ को जबरन वे लोग टीएमसी ले गए। वहां उसे मृत घोषित कर दिया गया।

सही निदान की ज़रूरत

मोहन भागवत जी ने मॉब लिंचिंग को नकारने के अलावा यह भी कहा है कि अर्थव्यवस्था पर ज्यादा बहस मत करो। गुजरात नरसंहार और भारत के 16वें संसदीय चुनाव के फैसले को देखने से यह पूरी तरह स्पष्ट है कि नवफासीवाद और सत्तावादी हिंदुत्व परियोजना- जो सांप्रदायिक नफरत को पोसती है और गरीबों को विभाजित करती है- को अन्याय बढ़ाने वाली आर्थिक नीतियों और उसके जिम्मेदार लोगों के प्रति बरती जाने वाली दंडहीनता छुपाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।

यह इस उम्मीद में किया जाता है कि वह भारत को विदेशी निवेश के लिए एक आकर्षक स्थल बनाएगी और भ्रष्ट राजनैतिक और आर्थिक नेतृत्व को समृद्ध करेगी। इन स्थितियों में भारत के संविधान को दोबारा लागू करने के अलावा और रास्ता नहीं बचता।

इसके लिए मोहन भागवत और आरएसएस को देश में घट रही घटनाओं व परिस्थितियों का सही निदान (Diagnosis) करना होगा। अपनी वैचारिक बुनियाद की जगह आरएसएस को वसुधैव कुटुम्बकम की अवधारणा के साथ भारत की श्रमण संस्कृति को लागू करना होगा, जो अपने मूल में समावेशी और बहुलतावादी है। शास्त्रार्थ की परंपरा जिसका सबसे बड़ा उदाहरण है।

इसकी बुनियादी शर्त है कि मनुस्मृति की जाति आधारित पितृसत्ता का आरएसएस सबसे पहले त्याग करे।

Link: https://www.mediavigil.com/op-ed/column/human-rights-diary-by-lenin-raghuvanshi-on-mohan-bhagwat-statement-on-lynching/

Human Rights Diary: यातना के शिकार कश्‍मीरियों से क्षमा याचना

Human Rights Diary: यातना के शिकार कश्‍मीरियों से क्षमा याचना

 
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कश्मीर की चर्चा देश और विदेश चारों ओर हो रही है. कहीं 370 को हटाने का विरोध है, तो कहीं समर्थन हो रहा है.  अनुच्‍छेद 370 को हटाने के समर्थक पंडित नेहरू को दोषी मान रहे हैं जबकि देश आज़ाद होने से दो महीने पहले लार्ड माउंटबैटन 18 जून से 23 जून 1947 में कश्मीर गये और वहां महाराज हरि सिंह से मिले थे. उन्‍होंने कहा था कि यदि ”कश्मीर पाकिस्तान से जुड़ता है तो भारत सरकार इसे अमित्रतापूर्ण नहीं मानेगी”. उन्‍होंने आगे कहा था कि ”खुद सरदार पटेल ने इस बात के प्रति उन्‍हें आश्‍वस्‍त किया है”.

यह बात माउंटबैटन के पूर्व राजनीतिक सलाहकार वीपी मेनन ने लिखी है, जिन्‍होंने भारत की स्‍वतंत्रता का बिल ड्राफ्ट करने में अहम भूमिका निभायी थी (इंटिग्रेशन ऑफ इंडियन स्‍टेट्स, मेनन, 1956, पृष्‍ठ 395).

जवाहरलाल नेहरू मार्च 1948 में संविधान सभा में कहते हैं:

”सीमा पार के हमारे विरोधी कह रहे हैं कि यह हिंदू और मुसलमान का झगड़ा है. हम कश्मीर में अल्पसंख्यक हिंदुओं और सिखों की मदद करने के लिए वहां गये हैं, कश्मीर की बहुसंख्यक मुस्लिम आबादी हमारे साथ नहीं है. इससे ज्यादा सफेद झूठ और क्या हो सकता है. हम वहां कश्मीर के महाराजा के न्योते पर भी नहीं जाते, अगर उस न्योते को वहां की जनता के नेताओं की सहमति हासिल नहीं होती. मैं सदन को यह बताना चाहता हूं कि हमारी सेनाओं ने वहां अदम्य बहादुरी का परिचय दिया है, लेकिन इस सब के बावजूद हमारी सेनाओं को कामयाबी नहीं मिली होती, अगर उन्हें कश्मीर के लोगों की मदद और सहयोग न मिलता.’’

दुनिया भर के देशों ने इसे भारत और पाकिस्तान के बीच का मामला बताया, किन्तु भारत सरकार के विदेश मंत्री ने कहा कि पहले पाकिस्तान आतंकवाद ख़त्म करे, तब बात होगी. रक्षा मंत्री ने कहा कि बात अब केवल पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर पर ही होगी. वहीं राहुल गाँधी के ट्वीट को पाकिस्तान की सरकार द्वारा प्रयोग करने पर बहुल हल्ला मचा, किन्तु सच ये भी है कि हरियाणा के मुख्यमंत्री के ट्वीट का भी पाकिस्तान ने इस्तेमाल किया है. इस पर होने वाले विवाद पर राहुल गाँधी ने कहा कि कश्मीर, भारत का अंदरूनी मामला है. असली जड़ भारत और पाकिस्तान के बंटवारे में है.

याद रखने वाली बात है कि हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग ने मिलकर कांग्रेस के खिलाफ 1939 में चुनाव लड़ा था. यह चुनाव ब्रिटिश उपनिवेशी सरकार ने कराया था. हिन्दू महासभा व मुस्लिम लीग ने एक साथ मिलकर सिंध व बंगाल में सरकार बनायी. सिंध की असेम्बली में मुस्लिम लीग ने पाकिस्तान बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसका हिन्दू महासभा ने समर्थन किया और प्रस्ताव पारित हुआ. इसी प्रस्ताव का इस्तेमाल करके अंग्रेजी उपनिवेशी सरकार ने पाकिस्तान बनाया जिसका समर्थन सावरकर ने भी किया था.

सावरकर ने नौ बार से ज्यादा ब्रिटिश सरकार से माफी मांगी थी. सावरकर व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के गुरू गोलवलकर ने कहा कि हमें ब्रिटिश हुकूमत से नहीं लड़ना चाहिए, बल्कि मुसलमानों से लड़ना चाहिए. वहीं आरएसएस ने मनुस्मृति को संविधान से ऊपर और हिटलर व मुसोलिनी को महान माना. मनुस्मृति के  आधार पर कुछ लोगों को जन्मना महान मानने वाली सोच के लोग भारत के संविधान के खिलाफ हैं और इसीलिए ये ताकतें संविधान को असफल दिखने की हर कोशिश करती हैं और देश में कानून के राज को मजबूत करने वाले सभी संस्थानों पर हमला करने से भी नहीं चूकती हैं.

मनुस्मृति आधारित पुरोहितवादी फासीवाद का सबसे बड़ा हथियार है अफवाहों को फैलाना और भय पैदा करना, जिससे अपनी सत्ता को कायम करने के लिए चुप्पी की संस्कृति के साथ अपने किये अपराधों के लिए दंडहीनता को वे स्थापित करना चाहते हैं. पुरोहितवादी फासीवाद ने आज़ादी से पहले ब्रिटिश औपौनिवेशिक सरकार के साथ गठजोड़ किया और अब नवउदारवादी आर्थिक  व्यवस्था के साथ मिलकर कॉर्पोरेट फासीवाद की और बढ़ रहा है. इसके लिए मंदी के दौर में लूट के लिए कश्मीर सहित देश के प्राकृतिक संसाधनों को लुटाना है और लोगों को बाँट कर इसलिए रखना है कि लोग संगठित प्रतिरोध खड़ा न कर सकें.

इस खेल में पश्चिमी दुनिया की नवउदारवादी आर्थिक ताकतें भारत को बाज़ार के रूप में देख रही हैं. वे हमें हिन्दू और मुस्लिम में बांट कर भ्रम में रखती हैं और हम अपने सांप्रदायिक सोच के तुष्‍टीकरण के लिए दूसरे धर्म के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय से आनंद लेते हैं.

कश्मीर के मुसलमान दक्षिणी एशिया के मुसलमानों से इस मामले में अलग हैं क्योंकि दक्षिणी एशिया के मुसलमानों का सम्बन्ध हज़रत अजमेर शरीफ़ से है, जबकि कश्मीरी मुसलमानों के सूफी और आध्यात्मिक जुडाव सेंट्रल एशिया से हैं और वहां जाने वाली सड़क लाहौर से होकर जाती है.अपने आध्यात्मिक लोगों से कटने और लगातार यातना के साथ संगठित हिंसा झेलने के कारण उनकी मानसिकता कैदियों की तरह हो गयी है. सरकार ने कर्फ्यू लगाकर हालत को नाजुक मोड़ की तरफ धकेल दिया है.

कश्मीर में लगे कर्फ्यू पर संयुक्त राष्ट्र संघ की मानवाधिकार परिषद् से जुड़े प्रतिनिधियों ने भारत सरकार को विरोध दर्ज कराया है. मेरा मानना है कि कर्फ्यू को तुरंत हटा कर गैर-सरकारी लोगों द्वारा की जाने वाली संगठित हिंसा और यातना को रोकने के उपाय करना चाहिए. कश्मीरी पंडितों सहित सभी कश्मीरियों को यातना और हिंसा के संदर्भ में मनोवैज्ञानिक सहायता के लिए समानुभूति और सक्रिय प्रतिक्रिया पर आधारित प्लेटफार्म देश भर में प्रदान करना चाहिए.

भारत और पाकिस्तान का पुरोहितवादी फासीवाद कश्मीर के लोगों को अपने-अपने नज़रिये से देखता है. उन्हें अपनी-अपनी राजनीति के लिए इस्तेमाल करता है. भारत से हिंदुत्ववादी फासीवाद और पाकिस्तान से इस्लामिक फासीवाद व आतंकवाद को ख़त्म किये बिना कश्मीर के समस्या को हल नहीं किया जा सकता है. इसीलिए पाकिस्तान से इस्लामिक फासीवाद व आतंकवाद के साथ भारत से पुरोहितवादी फासीवाद को खत्‍म करने का एक कार्यक्रम शुरू किया जाना चाहिए.

सबसे महत्‍वपूर्ण यह है कि बंटवारे के समय यातना और हिंसा झेलने वाले लोगों से क्षमा याचना (reconciliation) का एक अभियान प्रारम्भ करना चाहिए.

Link: https://www.mediavigil.com/op-ed/column/human-rights-diary-by-lenin-raghuvanshi-on-kashmir/


Human Rights Diary: काशी से निकलेगा बहुलतावादी लोकतंत्र व मानवाधिकार का रास्ता

Human Rights Diary: #काशी से निकलेगा बहुलतावादी लोकतंत्र व #मानवाधिकार का रास्ता

 
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उत्तरवाहिनी गंगा के तट पर स्थित #बनारस को विश्व के प्राचीनतम नगरों में से एक होने का गौरव प्राप्त है। बनारस/वाराणसी/काशी विभिन्न विचारधाराओं,  धर्मों के साथ दुनिया भर में आकषर्ण का प्रतीक रहा है। जहां यह हिन्दुओं का पवित्र शहर है, वहीं महात्मा बुद्ध के प्रथम उपदेश (धर्म चक्र प्रवर्तन) के लिए बौद्ध धर्मावलम्बियों का प्रमुख केन्द्र भी है। जैन धर्म के तीन तीर्थंकर यहीं पर पैदा हुए। साम्प्रदायिकता व जातिवाद के खिलाफ संत कबीर,  संत रैदास व सेन नाई की जन्मस्थली तथा कर्मस्थली यही रही है।

वही दूसरी तरफ बनारस की बनारसी रेशमी साड़ी को मौलाना अल्वी साहब ले आये। सन् 1507 ईसवी में सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक जी काशी आये और काशी से बहुत प्रभावित हुए। समन्वयवाद के तुलसीदास,  हिन्दी व उर्दू के महान कथाकार मुंशी प्रेमचन्द,  महान साहित्यकार भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,  जयशंकर प्रसाद,  डॉ. श्यामसुन्दर दास एवं आचार्य रामचन्द्र शुक्ल और बनारस घराने के प्रसिद्ध संगीतकारों की जन्मभूमि व कर्मभूमि यही रही है।

वाराणसी से चार भारत रत्न महान शहनाईवादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ,  देश के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी,  महान सितारवादक पं. रविशंकर और स्वतंत्रता संग्राम एवं ऐनी बेसेन्ट व हिन्दुस्तानी कल्चरल सोसाइटी से जुड़े तथा महात्मा गांधी के साथ काशी विद्यापीठ की स्थापना करने वाले डॉ. भगवानदास का जुड़ाव यहीं से रहा है।

सोलहवीं सदी में  मुग़ल बादशाह अकबर जब बनारस में आया तो वह इस शहर की सांस्कृतिक विरासत एवं गौरवशाली इतिहास को देखकर काफ़ी अभिभूत हुआ। इस शहर की सांस्कृतिक महत्ता को देखते हुए उसने इस शहर के पुनरुत्थान का अनुभव किया।  मुग़ल बादशाह अकबर ने इस शहर में शिव और विष्णु को समर्पित दो बड़े मंदिरों  का निर्माण कराया। पूना के राजा के नेतृत्त्व में यहाँ अन्नपूर्णा मन्दिर और 200 मीटर (660 फीट) के अकबरी ब्रिज का निर्माण भी बादशाह अकबर द्वारा इसी दौरान करवाया गया, जिससे दूरदराज़ के श्रद्धालु, पर्यटक सोलहवीं सदी के दौरान बनारस शहर में जल्द से जल्द  पहुंचने लगे।  1665 ईसवीं में फ्रांसीसी यात्री  जीन बैप्टिस्ट टवेरनियर ने गंगा के किनारे निर्मित विष्णु माधव मंदिर  की वास्तुकला के सौंदर्य  की भूरी−भूरी प्रशंसा की है तथा उसने अपने यात्रा वृत्तान्त में इसका बहुत बढ़िया वर्णन किया है।

सड़क, यात्रियों के ठहरने के ठिकानों, पीने योग्य पानी के लिए कुओं का निर्माण और लगभग इसी शासनकाल के आसपास सम्राट शेरशाह सूरी द्वारा कलकत्ता से पेशावर तक मज़बूत सड़क का निर्माण कराया गया था, जो बाद में ब्रिटिश राज के दौरान प्रसिद्ध ग्रैंड ट्रंक रोड के रूप में जाना जाने लगा।  पं. मदन मोहन मालवीय जी द्वारा स्थापित बनारस हिन्दू विश्वविद्यलय सहित पांच उच्चस्तरीय शिक्षा केन्द्र बनारस में हैं, वहीं भारत का राष्ट्रीय चिह्न अशोक चक्र सारनाथ, वाराणसी के संग्रहालय में है।

काशी के इस बहुलतावाद पर बिना कब्ज़ा किये भारत में पुरोहितवादी फासीवाद को लाना काफी कठिन काम है। जर्मनी में फासीवाद लाने के लिए यूरोप की सांस्कृतिक राजधानी वायेमर (Weimer) शहर को अपने कब्ज़े में लेने के लिए हिटलर ने अपनी पार्टी का सम्मेलन वहां किया और अनेक बार वहां गया। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद पता चला कि हिटलर और उसकी नाज़ी सेना ने वायेमर शहर के पास ही यातना केंद्र बनाया है, जहा लाखों लोगो को जान से मारा गया दफ़न करके और साथ ही गैस चैम्बर में बंद करके। वायेमर मानवाधिकार पुरस्कार 2010 में ग्रहण करते समय मैं इस शहर को देखने सपिरवार गया था। वायेमर शहर की तरह ही काशी पर आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और उसका पुरोहितवादी फासीवाद कब्ज़ा कर के उसके बहुलतावाद और समावेशी संस्कृति को समाप्त करना चाहता है।

Weimar Republic

हिटलर और मुसोलिनी का समर्थक गुरु गोलवलकर का आरएसएस साझा संस्कृति के सभी प्रतीकों को बरबाद करने पर तुला है। बनारसी साड़ी के व्यापार का तबाह होना और धर्म के मामले में राज्य का हस्तक्षेप इसकी शुरुआत है। इसी के खिलाफ काशी की जनता लड़ रही है और उसकी हार व जीत का असर भारत के भविष्य से जुड़ा है। हमें काशी की जनता के आन्दोलन से निकले अधोलिखित रास्तों के लिए पूरे देश में आन्दोलन करना चाहिए जिससे हम पुरोहितवादी फासीवादी सरकार को शिकस्त देकर कानून के राज्य और भारत के संविधान को  जमीन पर लागू करके बहुलतावादी लोकतंत्र और मानवाधिकार को स्थापित कर सकें।

  • बनारस घराने के संगीतज्ञ जहां एक तरफ हिन्दू देवी-देवताओं की स्तुति गायन के साथ अपने शास्त्रीय संगीत का शुभारम्भ करते हैं, वहीं अफगानिस्तान से आये सरोद, ईरान से आयी शहनाई व सितार का गौरव के साथ उपयोग करते हैं। शास्त्रीय संगीत की इस संयुक्त परम्परा को बनारस में जीवित रखने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किया जाए। बनारस में शास्त्रीय संगीत को जीवंत बनाये रखने के लिए एक बड़ा “हिन्दुस्तानी संगीत संस्थान” बनाया जाना चाहिये, जहां पर देश-विदेश के छात्र आकर संगीत की शिक्षा प्राप्त कर सकें और पर्यटन को भी बढ़ावा मिले। यूनेस्को ने काशी को संगीत का शहर घोषित किया है, किन्तु सरकार ने कोई उचित कदम नहीं उठाया है।
  • भारतीय धर्म एवं दर्शन- हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, ईसाई,  यहूदी,  बहाई,  जैन, सिख, संत परम्परा, सूफी पंथ, सभी का बनारस से जुड़ाव रहा है। इस साझा संस्कृति व परम्परा को बचाये रखते हुए संयुक्त रूप से सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ लोगों को जागरूक किया जाये ताकि बनारस की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरक़रार रखा जा सके।
  • बनारस बहुलतावाद व समावेशवाद का एक बहुत बड़ा केन्द्र है और यह केन्द्र गंगा तटीय सभ्यता का हेरिटेज है, जिससे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग सामाजिक सौहार्द, सामंजस्य व भाईचारे की भावना सीख सकते हैं, कि अपने अन्तर्विरोधों के साथ भी सहिष्णुता से कैसे रहा जा सकता है। इसलिए आस्था, विश्वास व तर्क के शहर बनारस के इतिहास, प्रमुख स्थलों व बनारस शहर की साझा संस्कृति को “हेरिटेज” घोषित किया जाए।
  • गंगा जी व उसकी 1500 सहायक नदियों की अविरलता को बनाये रखते हुए निर्मलता के साथ बिना अवरोध बहने दिया जाए ताकि नदी तटीय सभ्यता को बचाया जा सके। बनारस को ‘गन्दा जल नहीं, गंगा जल’ मुहैया कराया जाए।
  • नदियां हमारी संस्कृति व सभ्यता का केन्द्र हैं। लोगों की आजीविका, धार्मिक आस्था, आध्यात्मिकता, गरिमा, जीवन व सभ्यता इसी से जुड़ी है। इसलिए नदियों को संस्कृति विभाग के अधीन किया जाए।
  • भगवान शिव के प्रिय सांड़ “नंदी” को बनारस शहर में पीने का पानी और पशु चिकित्सक मुहैया कराया जाए।
  • सिंगापुर की तर्ज पर पुराने बनारस शहर को हेरिटेज के तौर पर संजोया जाए और नये शहर को आधुनिक दुनिया की तरह पुराने शहर से अलग दूसरी जगह बसाया जाए।
  • बनारस शहर की शिल्पकला में बिनकारी (बनारसी साडी उद्योग), लकड़ी के खिलौने के काम, जरदोज़ी, देवी-देवताओं के मुकुट की कला व सनत को प्रोत्साहित व संरक्षित किया जाए। इन उद्योगों को बचाने के लिए बजट में अधिक आवंटन किया जाए और इन उद्योगों से जुड़े लोगों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाए।
  • दुनिया की विभिन्न सेनाओं व पुलिस के बैज बनारस में बनते हैं। श्रीकृष्ण का तांबे का झूला बनारस में बनाया जाता है। हिन्दू देवी-देवताओं के वस्त्र, मुकुट, माला बनारस के मुस्लिम दस्तकार व बुनकर बनाते हैं। ऐसी सभी शिल्प कला व सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने के लिए सरकार प्रभावी योजना बनाकर ऐसे कारीगरों व तबकों को पुनर्जीवित व संरक्षित करे।
  • बनारस के बहुलतावाद और समावेशी इतिहास को बनारस के स्कूलों, मदरसों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया जाए जिससे अगली पीढ़ी बनारस की धरोहर को आदर और सम्मान से संभाल सके।
  • बनारस के सभी पर्यटन स्थल, सांस्कृतिक केन्द्र को भी पर्यटन की सूची में शामिल करते हुए विकसित किया जाए और इन महत्वपूर्ण केन्द्रों को भी पर्यटन व संस्कृति विभाग से जोड़ा जाए ताकि अधिक से अधिक पर्यटकों को बनारस की प्राचीन व गौरवशाली परम्परा व इतिहास से जोड़ा जा सके। जैसे, मार्कंडेय महादेव, बाबा विश्वनाथ मन्दिर, मृत्युन्जय महादेव, रामेश्वर, बाबा कालभैरव, संकटमोचन मन्दिर, मूलगादी कबीर मठ व कबीर जन्मस्थली, ढाई कंगूरा की मस्जिद, मानसिंह की वेधशाला, कारमाईकल लाइब्रेरी, मौलाना अल्वी की मज़ार, नागरी प्रचारणी सभा, मुंशी प्रेमचन्द्र का घर, धरहरा की मस्जिद, जैन तीर्थंकर स्थल, चौहट्टा लाल खां का मकबरा, अनेक कुण्ड व तालाब इत्यादि।
  • बनारस के प्राचीन व गौरवशाली इतिहास को संजोते हुए उसके सभी महत्वपूर्ण एतिहासिक तथ्यों, पुस्तकों, दस्तावेज़ों, वस्तुओं को संस्कृति विभाग के अधीन संग्रहालय (Museum) बनाकर संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए|
  • बनारस शहर में रहने वाले बेघर ग़रीब नागरिकों, वृद्धों, महिलाओं के लिए सरकारी स्तर पर आश्रय स्थल व रहने के लिए मकान, स्थान की व्यवस्था किया जाए।
  • बनारस में गंगा किनारे रहने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर नाविक समाज व उनके बच्चों, बुनकरों व उनके बच्चों एवं अतिवंचित मुसहरों व अन्य समुदायों को स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा तथा सस्ते ऋण जैसे महत्वपूर्ण मूलभूत कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाए और पुनर्वासित किया जाए ताकि समाज का वह तबका भी विकास की मुख्यधारा से जुड़ सके।
  • बनारस के गौरवशाली इतिहास के साक्षी रहे वे संस्थान व पुस्तकालय, कुण्ड, तालाब जो दबंगों व पूंजीपतियों के अवैध कब्ज़े में हैं, उन्हें मुक्त कराते हुए सरकार द्वारा अपने संरक्षण में लेकर सरकारी देख-रेख में संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए।
  • सभी धर्म दासता के खिलाफ़ हैं और बनारस की परम्परा भी दासता के खिलाफ़ है। इसलिए हर तरह की दासता को अविलम्ब ख़त्म किया जाए
  • https://www.mediavigil.com/op-ed/column/human-rights-diary-by-lenin-raghuvanshi-on-benares-and-democracy/

Human Rights Diary : प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में कुपोषण से नवजात की मौत

Human Rights Diary : प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में कुपोषण से नवजात की मौत

 
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किसी भी देश या फिर इलाके के विकास के लिए ज़रूरी है कि गर्भवती औरतों और नवजातों की मौत को कम किया जाय, किन्तु कॉर्पोरेटपरस्ती के लिए चलाये जा रहे आर्थिक विकास के अजेंडे में स्वास्थ्य एक व्यापार होता है. कॉर्पोरेट फासीवाद अपनी लूट को छिपाने के लिए मनोगतवादी अभियानों के आगे बढ़ाता है और दूसरी तरफ मेहनतकश जनता तिल-तिल कर जीने और मरने की जद्दोजहद में लगी रहती है. 

फर्जी जनवाद केवल घोषणा करता है, जिसका उदाहरण श्री नरेंद्र मोदी का वाराणसी है. सरकारी आंकड़ों में वाराणसी में 700 बच्चे अतिकुपोषण के शिकार हैं, तो 1500 अन्य कुपोषित बच्चे हैं. स्वास्थ्य सेवाओं में बजट कम होने, दलितों व वंचितों के साथ भेदभाव और स्वास्थ्य को बाजार के हवाले रखने के कारण बच्चों व नवजातों की मौत असमय हो रही है.   

अपने स्‍तंभ के इस पहले अंक में मैं मुसहरों के लिए 20 वर्षों से काम कर रही श्रुति नागवंशी द्वारा एक नवजात की मृत्यु पर किये गये सामाजिक ऑडिट की रिपोर्ट को प्रस्तुत कर रहा हूं.

घटना 8 फरवरी, 2019 की है. जिला वाराणसी ब्‍लॉक बडागांव अंतर्गत ग्राम पंचायत खरावन ग्राम लखापुर निवासी उर्मिला पत्नी राजेन्द्र मुसहर का प्रसव उप स्वास्थ्य केंद्र साधोगंज में नियुक्त महिला सफाईकर्मी सुरसत्ती यादव (पूर्व में पारम्परिक दाई के रूप में इनके द्वारा ग्राम स्तर पर प्रसव का कार्य किया जाता रहा है) द्वारा प्रसूता के घर पर ही कराया गया. शिशु का शरीर ठंडा होने (हाथ पैर गलने) की शिकायत पर सुरसत्ती यादव द्वारा सुझाव दिया गया कि कोई ऊपरी कारण हो सकता है, आप किसी तांत्रिक से झाडफूंक करा लो.

दाई सुरसत्ती यादव ने प्रसूता की मां केवला से अपनी तारीफ करते हुए कहा कि यह प्रसव तो बिना आपरेशन के नहीं होता लेकिन मैंने इसको घर पर ही करा दिया. बार-बार यही बात दोहराकर परिवार के सभी सदस्यों को भावनात्मक रूप से प्रभावित करके उसने 800 रुपये की मांग की और बार-बार यह दोहराती रही कि यह प्रसव तो बिना आपरेशन के नहीं होता लेकिन मैंने इसको घर पर ही करा दिया. परिवार के लोग भावना में बहकर दाई सुरसत्ती यादव को 1500 रुपये दे दिए.

सुरसत्ती यादव, जो समुदाय में पहले भी प्रसव कराती थीं, लोगों का उन पर काफी विश्वास था. अतः सुझाव अनुसार नवजात की दादी केवला देवी द्वारा इलाज के स्थान पर तांत्रिक की खोज करके उन्हीं के निर्देश का पालन किया गया. सुरसत्ती के सुझाव पर केवला देवी ने बसनी निवासी एक मौलवी तांत्रिक का पता किया. मौलवी के पास जाकर अपने परिवार व नवजात शिशु के बारे में पूरी जानकारी दी. मौलवी द्वारा उपाय के रुप में सरसों, झाड़ू, कपूर आदि सामग्री को बाजार से खरीद कर प्रसूता के घर में जलाकर धुआं देने की सलाह दी गयी. केवला देवी साधोगंज बाजार से सभी सामान की खरीददारी करते हुये शाम लगभग 5:30 बजे के आसपास अपने घर पहुंची और मौलवी द्वारा बताई गई विधि से धुआं देने का कार्य किया. इसका शिशु पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा और रात लगभग 9:30 बजे शिशु की मृत्यु हो गई.

मिनी आंगनबाड़ी कार्यकर्ती सरोजा देवी द्वारा प्रसूता उर्मिला को ICDS की सेवा यथा पोषाहार, पोषण एवं स्वास्थ्य के सन्दर्भ में जानकारी आदि नही दी गई. उनका कहना है कि उर्मिला इस गांव की बिटिया है सो बेटियों का नाम लाभार्थी लिस्ट में नही शामिल किया जा सकता है . शादी के एक वर्ष बाद से उर्मिला अपने मायके में ही रहती आ रही है. तीनों गर्भावस्था के दौरान इसी गांव में रही है. उसके बच्चों का जन्म भी यहीं पर हुआ जिनमें सभी बच्चे मृत्यु का शिकार हो गए (एक स्टिल डेथ हुआ, दो शिशु मृत्यु). उर्मिला का एक बार भी स्वास्थ्य परीक्षण नहीं हुआ, उसे आयरन की गोली/सिरप या कैल्शियम गोली/सिरप आदि भी नहीं मिली जबकि उर्मिला HRP महिला रही है.

इस शिशु मृत्यु के पहले भी उर्मिला पीएचसी बड़ागांव में प्रसव कराने गयी थी तब वंहा के स्टाफ के द्वारा उर्मिला के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया था. बाद में जिला महिला चिकित्सालय, कबीरचौरा, वाराणसी रिफर कर दिया गया था. सरकारी स्वास्थ्यकर्मी के खराब व्यवहार से खिन्न केवला देवी के द्वारा गांव के ही साहूकार से 5000 रुपये 12 फीसद ब्याज पर लेकर नगीना वर्मा के क्लिनिक साधोगंज में प्रसव कराया गया, जहां नगीना वर्मा द्वारा मृत शिशु को उर्मिला के गर्भ से टुकड़े-टुकड़े कर के निकाला गया था. इसके बारे में बताते हुए केवला देवी अभी भी कांप जाती हैं.

Three delays model के आधार पर घटना की विश्लेषणात्मक रिपोर्ट
पहली देरीनिर्णय लेने में हुई देरी
  • प्रसूता को स्वास्थ्य विभाग और ICDS विभाग से किसी भी प्रकार की कोई सेवा गर्भावस्था के दौरान नही मिली, यथा पोषाहार, आयरन की गोली, कैल्शियम सिरप, आदि
  • प्रसव के पूर्व एक भी स्वास्थ्य जांच नहीं हुई
  • स्पष्ट है कि प्रसूता, स्वास्थ्य एवं ICDS विभाग की सेवाओं के साथ ही किसी भी प्रकार की स्वास्थ्य या पोषण की जानकारी से भी वंचित रही है
  • स्वास्थ्य विभाग द्वारा संचालित सेवाओं से कोई जुडाव नहीं था
दूसरी देरीउपयुक्त सुविधा केंद्र तक पहुंचने में देरीपति राजेन्द्र एवं मां केवला देवी प्रसूता उर्मिला को ट्राली से लेकर साधोगंज उप स्वास्थ्य केंद्र पहुंचा जो उनके घर से 500 मीटर की दूरी पर है
तीसरी देरीस्वास्थ्य केंद्र से प्रबंधन के साथ रेफरल सेवाएं  न मिलना
  • साधोगंज उप स्वास्थ्य केंद्र में एक ही ANM तैनात होना,  डिलीवरी प्वाइंट में एक ANM की नियुक्ति अपने आप में बड़ी चुनौती है. टीकाकरण के समय प्रसव का केस आ जाने पर ANM को प्राथमिकता तय करने में चुनौती आती है. दोनों कार्य अपने समय पर अतिआवश्यक कार्य हैं, किसी का महत्व कम या ज्यादा नहीं है
  • पूर्व में शिशु मृत्यु, स्टिल डेथ, किसी भी प्रकार की मातृत्व स्वास्थ्य एवं पोषण देखभाल सेवा नहीं पाए जाने जैसे कई  कारणों से प्रसूता उर्मिला HRP महिला थी जिसको उप स्वास्थ्य  केंद्र रेफर किया जाना चाहिए था. यह केस उप स्वास्थ्य केंद्र के  द्वारा प्रसव सेवा दिए के दायरे से बाहर था
  • ANM द्वारा प्रसूता को उप स्वास्थ्य केंद्र में रात भर रखने के बाद सफाईकर्मी (पारम्परिक दाई) से घर पर प्रसव करा लेने का सुझाव देकर सुबह वापस भेज दिया गया
  • सफाईकर्मी (पारम्परिक दाई) द्वारा प्रसूता को 4 इंजेक्शन दिया गया जो अपने आप में बड़ा प्रश्न है
  • शिशु का शरीर ठंडा होने की जानकारी मिलने पर सफाईकर्मी द्वारा सरकारी स्वास्थ्य सेवा लेने के स्थान पर तांत्रिक को दिखाने का सुझाव दिया गया
  • घर पर ही सफल प्रसव करा दिए जाने के एवज में सफाईकर्मी (पारम्परिक दाई) द्वारा प्रसूता के परिवार से अवैध धन उगाही की गयी, वंहीं JSY की सुविधा से वंचित रखा गया
  • पूर्व में प्रसव के दौरान PHC बडागांव के प्रसव कर्मियों द्वारा प्रसूता उर्मिला से भेदभावपूर्ण व्यवहार के कारण प्रसूता आहत थी जिससे उसके गर्भ का स्टिल डेथ हो गया था

 नोट: यह ऑडिट रिपोर्ट भारत सरकार के आधिकारिक उपकरण और मॉडल पर आधारित है

नवजात शिशु की मौत की सोशल ऑडिट रिपोर्ट योगी और मोदी के तथाकथित नारे ‘सबका साथ और सबका विकास’ की पोल खोल देती है, भले दूसरी तरफ दलाली करने वाले और डरे हुए सामाजिक कार्यकर्ता ऐसी घटनाओं पर चुप लगा जाएं.

http://www.mediavigil.com/op-ed/column/human-rights-diary-by-lenin-raghuvanshi-part-one/