दलित विमर्श और आन्दोलन के भीतर कई धाराएं हैं. उन्हीं में एक है नवदलित आन्दोलन, जिस पर मीडिया में चर्चा या बहस काफी कम देखने को मिलती है. पिछले दिनों कर्नाटक संगीत के कलाकार और समाजकर्मी टी. एम. कृष्णा को जब मैगसेसे पुरस्कार मिला, उस वक़्त कुछ जगहों पर नवदलित आन्दोलन की चर्चा देखने को मिली थी. कृष्णा संगीत के माध्यम से दलितों-वंचितों के बीच बदलावकारी काम करने के लिए जाने जाते हैं. बनारस के रहने वाले सामाजिक कार्यकर्ता डॉ. लेनिन रघुवंशी भी नवदलित धारा के चिंतक और समाजकर्मी हैं जिन्होंने बीते दो दशक में पूर्वी उत्तर प्रदेश के मुसहर समुदाय के बीच सराहनीय काम किया है और देश-विदेश में जाने गए हैं. आज बड़ी संख्या में जब ‘गरीब बहुसंख्यक’ उभरती हुई फासीवादी शक्तियों के द्वारा दबाए जा रहे हैं, इनका दमन “दण्डहीनता की संस्कृति”, जाति व्यवस्था और अत्याचारों के माध्यम से लगातार जारी है. डॉ. लेनिन इस लम्बे अवधारणात्मक लेख में बता रहे हैं कि किस प्रकार नेल्सन मंडेला के सामाजिक-संघर्ष मॉडल यानी नवदलित आन्दोलन को उभार कर सदियों पुरानी समस्याओं को ख़त्म किया जा सकता है। यह विशिष्ट लेख मीडियाविजिल अपने पाठकों के बीच बहस-मुबाहिसे के लिए जारी कर रहा है. (संपादक)
Friday, June 29, 2018
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