Tuesday, September 20, 2022

ग्राउंड रिपोर्टः बनारस के बजरडीहा में स्कूल खोलना ही भूल गईं सरकारें और अब सर्वे के बहाने मदरसों पर हंटर !

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बजरडीहा के मुस्लिम बहुल इलाकों में काम करने वाले एक्टिविस्ट डा.लेनिन कहते हैं, "मुस्लिम कम्युनिटी में बड़ा बदलाव आया है। वो न शिक्षित हो रहे हैं, बल्कि अपनी कामयाबी के झंडे भी गाड़ रहे हैं। वितंडा खड़ा करने वालों के लिए यही सबसे बड़ी बेचैनी है। वे नहीं चाहते कि मुस्लिम युवक ऊंचा पदों पर पहुंचें। वो दस्तकारी तक ही सीमित रहें। दुर्भाग्य है कि देश के निर्माण को सरकार खुद ही बाधित कर रही है। सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में बजरडीहा साफ-साफ दिखता है। पहले मदरसों का काम दीनी तालीम देना था, लेकिन वो अब दुनियावी तालीम दे रहे हैं। पाठ्यक्रम सरकारी है। शिक्षा देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है। अगर मदरसों को बंद करते हैं तो सरकारी स्कूल खोलिए। नहीं खोल सकते तो मदरसों को आर्थिक मदद दीजिए। सिर्फ हंटर चलाया जाना ठीक नहीं है। अगर कोई मदरसा गैर-पंजीकृत है तो उनके संचालक से ज्यादा, सरकारी नुमाइंदे जिम्मेदार हैं। बदनीयत से कोई काम करेंगे तो बहुत खतरनाक बात हो जाएगी। आजादी का अमृत महोत्सव मनाने में जुटी भाजपा सरकार आखिर यह क्यों भूल गई है कि साल 1857 के गदर में हिन्दुओं से ज्यादा कुर्बानी मुसलमानों ने दी थी। देश के लिए अपनी जिंदगी कुर्बान करने वाले अधिसंख्य मदरसों से पढ़कर निकले हुए लोग थे।"
डा.लेनिन यह भी कहते हैं, "हमें खुद ही नहीं पता कि सनातन क्या है? हिन्दुओं को यह चिंता क्यों नहीं हो रही है कि हमारे गुरकुल क्यों बंद हो गए? उनके यहां दीन की पढ़ाई हो रही है तो गलत क्या है? इस्लाम को जो लोग सही ढंग से समझते हैं वो न तो कट्टरपंथी होते हैं और न ही उन्हें कोई संगठन अथवा धर्म बरगला सकता है। आजकल मदरसों में राष्ट्रगान भी होता है और योग भी। मदरसों से निकले हुए बच्चों को मातृभूमि से ज्यादा प्यार नजर आता है। हमारा नजरिया इसलिए घटिया है क्योंकि उनके खिलाफ दुष्प्रचार बहुत ज्यादा हुआ है। कोई आदमी धार्मिक है तो इसका मतलब यह नहीं होता कि वो पिछड़ा है। इस्लाम में मदीना कांस्ट्यूशन है। मैं उस पुरोहितवाद के खिलाफ हूं, जिसका विरोध बहुत से ब्राह्मण भी करते हैं। सवाल यह उठाया जाना चाहिए कि हमारे वहां संवैधानिक मूल्य जिंदा हैं अथवा नहीं? धर्मांधता पर नहीं, सामजिक सरोकारों व मूल्यों पर बहस होनी चाहिए। मदरसे बंद कर देंगे तो जो भी पढ़ रहे हैं वो भी नहीं पढ़ पाएंगे। धर्म और मजहब की समझदारी न होने पर किसी को भी बरगलाया जा सकता है। लोग निरक्षर रहेंगे तो वहां कट्टरवाद पनपेगा।"