#माँ ने पहली बार #वसीयत 2002 में लिखा. कबीर पैदा हो गए थे. बहुत ही गलत तथ्य को लिख कर मेरा और श्रुति का नाम वसीयत से हटा दिया गया था. विदित है कि उस समय मैं अपने परिवार के साथ माँ के साथ रहता था. आयुर्वेदाचार्य करने के तुरंत बाद १९९४ में मेरे पिता ने मुझसे घर का खर्चा माँगा. घर से निकाले गए और शिव प्रताप चौबे के घर रहे और बचपन बचाओ आन्दोलन में काम शुरू किये. विदित है कि आयुर्वेदाचार्य के बाद सरकारी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल और सरकारी एलोपैथिक हॉस्पिटल में इंटर्नशिप करना होता था. सरकारी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल तो मैं कबीरचौरा , वाराणसी से पूर्ण किया. फिर भदोही के सरकारी एलोपैथिक हॉस्पिटल में इंटर्नशिप के लिए मैं साइकिल से वाराणसी से जाना शुरू किया. साइकिल से वाराणसी से बाने की बात पता चलने के बाद डॉ. इकबाल सिंह (जो हमारे पडोसी थे) ने बड़ी मदद की. इंटर्नशिप के बाद मेरा आयुर्वेदाचार्य(Bachelor in #Ayurveda, Modern medicine and Surgery) का परिणाम आया. मेरा दश उत्कृष्ट लोगो में नाम आया. जिससे मेरे कॉलेज के हॉस्पिटल में एक साल के लिए हाउस ऑफिसर के नियुक्ति के लिए हरिद्वार बुलाया गया था. इंटर्नशिप पूरा होने पर ही एक साथ पैसा मिलता था. मेरे पास पैसा नहीं था. और हरिद्वार जाना था. इसी की सूचना मैअने माँ को और पिता को दी, किन्तु पिता उल्टा मेरे से घर का खर्चा मानगने लगे. घर से निकाल दिए गए और मैंने उसी दिन निर्णय लिया कि आयुर्वेदाचार्य से आजीविका नहीं जियेगे. समाज सेवा में लग गए. मेरे पिता का मेरे गांधीवादी दादा से राजनितिक मतभेद था. मै बचपन के 6 साल तक दादा और दादी के साथ पला. तो मेरे संस्कार वही से थे. मुझे आज भी भाई स्टॅलिन के परीक्षा में असफल होने पर मुझे मार खाना याद है. दूसरो की गलती पर लोहे के जंजीर से मार खाना याद है. उच्च विद्यालय(High School) के बाद घर छोड़कर अपने गाँव धौरहरा से इंटरमीडिएट करना याद है.
2007 में ग्वांगजू अवार्ड पाने पर अपने रहने के लिए माँ और पिता के कहने पर 8 लाख में घर बनाया. अलग बिजली का मीटर लगवाया. बिजली का मीटर और घर दोनों की कागज़ पर मालकिन माँ थी. माँ ने कभी 2002 के वसीयत के बारे में नहीं बताया.2011 में माँ के कहने पर भाई के कणाद का हिस्सा बनवाया और बिजली का मीटर माँ के नाम से लगवाया. फिर 2012 में माँ और पिता के विवाह के 50वी सालगिरह मनाया , तब माँ ने बताया कि कुछ लोगो ने मिलकर वसीयत लिखवाया है , जिसमे तुम्हारा नाम नहीं है. मैंने कोई जमींन और मकान नहीं बनाया. फिर माँ ने एक दूसरी वसीयत की, जिसमे अपने पोतो को वारिस बनाया . मेरे पुत्र कबीर भी उसमे है. मैंने माँ को, पिता को और भाई लोगो को चेक से पैसा दिया. पिता और माँ को कैश भी दिया. जब मैं COVID से ग्रसित होकर 12 दिन तक ICU में था , तो माँ और पिता ने एक किलो सेव या कोई फल नहीं भेजा.
जल्द ही अगली किश्त ....
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