दादी के साथ
अपने दादी के साथ Kabeer Karunik
दादी के गोलोकवासी होने बाद घर आये कबीरपंथ प्रमुख आचार्य संत विवेक दास
#दादी मेरा संस्कार है. दादी का आखिरी पेंशन करीब ४७ हजार था. पेंशन पिता जी ही रखते थे.
खा नहीं पाती थी आखिरी समय में . श्रुति ट्रोपिकाना का fruit जूस देती थी पीने के लिए . दादी को बहुत पसंद था.
दादी मुफ्तखोरो के खिलाफ थी. श्रम से सृजन को आदर्श मानती थी. ४७ हजार के पेंशन और उनका जो भी आखिरी में सम्मान था वो सब भोगेगे अपने आखिरी में जो उनके पेंशन के लाभार्थी थे. दादी वैष्णव थी.
दादी का काफी सम्मान था आखिरी में ?
ईश्वर को जबाब देना हैं बस. कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाने के खिलाफ थी दादी . परिवार का सब खोलना आदर्श के खिलाफ है. इसलिए बस इतना ही
दादी मुफ्तखोरो के खिलाफ थी. श्रम से सृजन को आदर्श मानती थी. ४७ हजार के पेंशन और उनका जो भी आखिरी में सम्मान था वो सब भोगेगे अपने आखिरी में जो उनके पेंशन के लाभार्थी थे. दादी वैष्णव थी.
दादी का काफी सम्मान था आखिरी में ?
ईश्वर को जबाब देना हैं बस. कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाने के खिलाफ थी दादी . परिवार का सब खोलना आदर्श के खिलाफ है. इसलिए बस इतना ही
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