Saturday, February 26, 2011
Friday, February 25, 2011
Tuesday, February 22, 2011
Monday, February 14, 2011
हिन्दु-मुस्लिम विवाद ने हमें अपाहिज बना दिया : अब्दुर रहमान
डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों के साथ होने वाले तरह-तरह के ज़ोर-जुल्म की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. इस बार पेश है वाराणसी में हिन्दु-मुस्लिम समुदायों के बीच हुए विवाद में पुलिसिया गोली का शिकार बने बुनकर अब्दुर रहमान की दास्तां उन्हीं की जुबानी :
मेरा नाम अब्दुर रहमान, उम्र 24 साल है। मैं एन 13/1202 लमही, सराय सूरजन, बजरडीहा, वाराणसी का निवासी हूँ। मेरे चार भाई, दो बहन हैं। पिता जी अलग रहते हैं, हमारी माँ की देहान्त हो जाने पर पिता जी ने दूसरी शादी कर ली थी। दूसरी माँ को दो बच्चे है।
मेरे साथ जो घटना घटी, वह दिन था 11 मार्च 2009, और समय था 11 बजकर 30 मिनट। मैं घर से अपने चाचा से मिलने के लिए निकला था। मेरे चाचा गौसिया मदरसा के बग़ल में रहते है। गौसिया मदरसा के पहले एक गली है। हम उस गली से जैसे ही दो क़दम आगे बढ़े, तभी पुलिस वालों ने फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की गोली हमारे दाहिने पैर और गुप्तांग के पास लगी। हम वहीं पर गिर गए। इसके बाद पुलिस वालों ने हमें घसीटते हुए अपने जीप में फेंक दिया और सरकारी अस्पताल, कबीर चौरा में भर्ती करा दिया। धीरे-धीरे हमारी आँखे बन्द होती जा रही थी। शरीर से बहुत ज्यादा खून निकल रहा था। कुछ समय बाद मैं बिल्कुल बेहोश हो गया। होश आया तो देखा, हमारे घर वाले और मोहल्ले वाले हमारे पास खड़े थे। उस समय हमें बहुत ही ज्यादा दर्द हो रहा था। हम जोर-जोर से चिल्ला रहे थे। हमने घर वालों से पूछा, ''हमको क्या हुआ है?'', हमारे घर के लोगों ने रोते हुए बताया, ''तुम्हे पुलिस वालों ने गोली मारी है।'' फिर हमने पूछा, ''हमने क्या किया कि हमें गोली मारी?'', तब मोहल्ले के लोगों ने बताया कि कोल्हुआ मस्जिद पर कुछ लोगों ने रंग फेंक दिया था, इसी बात पर हिन्दू और मुस्लिम समुदाय में विवाद हो गया और पुलिस वालों ने गोलियाँ चलानी शुरू दी जिसमें तुम्हें भी गोली लगी। अस्पताल में हम 13 दिन तक बेहोश पड़े रहे। उस समय हमारा इलाज चन्दे के पैसों से चल रहा था और आज भी चन्दे से ही चल रहा है। हम अपने समुदाय के लोगों का यह सहयोग कभी नहीं भूलेंगे। हिन्दु-मुस्लिम विवाद ने हमें अपाहिज बना दिया।
इस घटना से मेरी स्थिति ही बिगड़ गयी। इसके पहले हम बनारसी साड़ी की बुनाई का काम करते थे, लेकिन मेरा पैर गोली लगने से खराब हो गया। वैशाखी का सहारा लेकर चलना पड़ रहा है। पहले अपनी कमाई से घर में भी सहयोग करते थे और अपना खर्च भी चलाते थे। अब जिंदगी बहुत कठिन और भारी लग रही है। पहले की तरह दोस्तों के साथ घुमना-फिरना एक दम बंद हो गया। अब सभी से दूर हो गये हैं। यह सब देखकर बहुत गुस्सा आता है। दिमाग विचलित हो जाता है। एक बात का बहुत अफसोस है कि पहले कमाकर खाते थे आज एक समय के भोजन के लिए मोहताज है। शादी-ब्याह हो जाती, अब यह भी एक सपना हो गया है।
एक साल होने जा रहा है, लेकिन दर्द लगातार रहता है। जिससे हम बहुत परेशान हो जाते हैं। किसी तरह मोहल्ले के लोग मेरा भरण-पोषण कर रहे हैं। पुलिस का यह अत्याचार हम कभी नहीं भूल सकते। सरकार ने अभी तक दोषियों को सजा नहीं दी और न ही हमें किसी प्रकार का आर्थिक मदद ही मिला सरकार की तरफ से। हमारे साथ कुल आठ लोग घायल हुए थे। दो की तो मृत्यु हो गयी। जब-जब यह घटना मेरे दिमाग़ में आती है, हम विचलित हो जाते हैं। हम अपनी लड़ाई कानून के सहारे लड़ना चाहते हैं, क्योंकि कानून सबको न्याय देता है। हमारे लिए न्याय तभी सफल होगा, जब दोषियों को सजा मिलेगी।
आज हम अपाहिज की तरह जिंदगी जी रहे हैं। कई जगह इलाज भी करवाये। 4 फरवरी 2010, वृहस्पतिवार के दिन बी0एच0यू0 स्थित सर सुन्दर लाल अस्पताल गये। जहां डाँक्टर ने एक लाख रुपये इलाज के लिए कहा। हड्डी टूट गई है और खोखली भी हो गई है। इन्फेक्शन हमेशा रहता है, जिससे गोली का घाव नहीं भर पा रहा है। पाण्डेयपुर स्थित संस्था से सहयोग मिला, डॉ0 शकील (खजूरी) से इलाज करवा रहे हैं। जिससे अब थोड़ा चल-फिर रहे हैं और अपना काम जैसे – कपड़ा साफ करना, इत्यादि कर लेते हैं। लेकिन भोजन के लिए दूसरे पर आश्रित हैं। अपने घर से भोजन नहीं मिलता है। कभी-कभी कोई पड़ोसी या दोस्त भोजन करा देता है। बाकी दिन किसी से पैसा मांग कर बिस्कुट और पानी पीकर गुजारा कर रहे हैं।
जब बी0एच0यू0 में डॉक्टर साहब ने इलाज में एक लाख रुपये के खर्च की बात कही तो सुनकर बेचैनी और घबराहट महसूस होने लगी थी कि एक लाख रुपया कहाँ से आयेगा। इलाज नहीं होगा। हम इसी तरह कब तक रहेंगे। हम सोच रहे थे कि लोगों के सहयोग से कुछ पैसों का इन्तजाम हो जाए, हम ठीक हो जाएं तो फिर से काम-धंधा करके अच्छी जिंदगी जीयेगें। लेकिन अब जिन्दगी जीना दुश्वार लग रहा हैं। इलाज के लिए भी अकेले कहीं नहीं जा पाते। परिवार का कोई सदस्य मदद नहीं करता। किसी दोस्त या पड़ोसी के सहयोग से अस्पताल जाते हैं नही तो मजबूरन इलाज नहीं हो पाता।
आप लोग से इतना खुल कर अपने दर्द को बताया। इससे हमको बहुत राहत महसूस हो रही है। इसके पहले जो भी लोग मुझसे पुछते थे कि क्या हाल है अब्दुर रहमान? तब बहुत गुस्सा आ जाता था। आप लोगों ने मुझे 10 मिनट का ध्यान-योग करा कर मेरे थकावट और दर्द को और कम कर दिया। हम अब रोज यह योगा करेंगे। हम यह चाहते हैं कि इस कहानी को कोर्ट (कानून), अखबार, पत्रिका में प्रकाशित किया जाए। जिससे लोगों को पता चले कि किस तरह एक सीधा-साधा बुनकर अपाहिज हो गया। लोग जानें कि इसके पीछे कौन लोग हैं और फिर लोग उन्हें बददुआ दें।
रेखा और आनंद प्रकाश के साथ बातचीत पर आधारित
Tags: वाराणसी, सांप्रदायिक उन्माद
Saturday, February 12, 2011
गाड़ी की रौशनी देख कर हम छुप जाते थे : रामदयाल
डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों के साथ होने वाले तरह-तरह के ज़ोर-जुल्म की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. पेश है उस श्रृंखला की चौथी किस्त. इस बार रामदयाल नामक एक बंधुआ मज़दूर की दास्तान उन्हीं की जुबानी :
मेरा नाम रामदयाल, उम्र-27 वर्ष, पुत्र-स्व. लोचन है। मैं ग्राम-सराय, तहसील-पिण्डरा, थाना-फूलपुर, जिला-वाराणसी (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूँ। गाँव में हमारे बिरादरी के लगभग 60 घर हैं।
हमारी शादी 11 मार्च, 1999 में सुनीता से हुई. मेरे तीन बच्चे : दो लड़के, पुजारी, उम्र 10 वर्ष (प्राथमिक विद्यालय-देवराई में कक्षा चार में पढ़ता है) तथा विफाई, उम्र 6 वर्ष (कक्षा दो) और एक लड़की रेशम 2 साल की है।
वर्तमान में राजा भट्टा, ग्राम-उंदी से बंधुआ मजूरी से छुड़ाये जाने के बाद खेत-मजदूरी करके परिवार का भरण-पोषण कर रहा हूँ। कभी-कभी ट्रैक्टर या मिट्टी काटने की मजदूरी भी कर लेता हूँ। एक दिन में 50 रुपये मजदूरी मिलती है। जिसमें सुबह 6 बजे से दोपहरर बजे तक काम करना होता है। कभी-कभी पूरा दिन का काम मिल जाता है तो 100 रुपये की मजदूरी हो जाती है। आये दिन बेकार बैठना भी पड़ता है. दो-चार दिन तक कोई काम नहीं मिलता। किसी प्रकार गुज़र-बसर हो रहा है। मैं दाएं पैर से विक्लांग हूँ. इसलिए मैं बोझा नहीं उठा सकता लेकिन अन्य बहुत तरह के काम कर सकता हूं। मैंने साड़ी बिनने का काम भी किया है, लेकिन बिनकारी की हालात गिरने के बाद खेत-मजदूर का काम करना पड़ा।
एक दिन मेरे रिश्तेदार आये और राजा भट्ठा पर काम करने को कहा। बोला कि वहां का मालिक अच्छा है, ईमानदारी से मजदूरी देगा। हम पांच जोड़ी यानि दस लोग अपने बच्चों के साथ वहां काम करने गये। वहां हम लोग विश्वास पर काम करने गये थे। तीन महीने तक सब ठीक-ठाक रहा। एक दिन अचानक भोला की लड़की संतरा (उम्र-5 वर्ष) की तबियत खराब हो गयी। भोला मालिक बब्लू सिंह से ईलाज के लिए पैसा मांगा। मालिक ने बोला, 'पैसा नहीं है, चल काम कर और उठ कर मारने लगा। जिससे अभी भी उसके कान से खून व मवाद आता है। उस समय भट्ठा मालिक शराब पिया हुआ था और दो-चार लोग उसके साथ बैठे थे।
भोला के साथ हुई घटना के बाद कुछ सोचकर हम मालिक के पास गये और बोले, ''मालिक तीन दिन से बच्ची को बुखार है, कुछ पैसा दे दीजिए।'' यह सुनकर हमें भी गाली-गलौज करके भगा दिया। हम डर से अपने निवास स्थान पर आ गये। उस समय हमें बहुत गुस्सा भी आ रहा था, लेकिन हम मजबूर थे। वहां से हम लोग भाग भी नहीं सकते थे, क्योंकि हम लोगों के लिए रखवार (निगरानी करने वाला) लगा रखा था। उन लोगों से बोला गया था कि ये लोग भागे नहीं, देखते रहना। सप्ताह भर की खुराकी मिलने के बाद लगभग 15 दिन तक हम लोगों ने वहां काम किया। इस बीच मालिक रोज़ आकर धमकाता था। कहता था, ''कहीं भागे तो भट्ठा में झोंक देंगे।'' औरतों को भद्दी-भद्दी गालियां देता था और उठाकर ले जाने की बात करता था। यह सब देख-सुनकर हमारी तकलीफ़ और ज्यादा बढ़ गयी थी। हम सोच रहे थे कि किसी तरह मौका का तलाश कर अपने गांव भाग जाए।
जब गाली-गलौच, मार-पीट का अत्याचार बहुत बढ़ गया, तब हम लोग एक दिन 3 बजे सुबह मिट्टी पाथने के बहाने साथ-साथ भाग गये। पहरेदार लोग निश्चिंत थे कि अब हम लोग नहीं भागेंगे। खेते-खेते पैदल चल कर भट्ठा से उत्तर दिशा लगभग 8 किलोमीटर दूर आयर बाजार के आगे सिंधौरा तक पत्नी व बच्चों के साथ आये। भागते समय डर भी लग रहा था कि कोई हम लोगों को पकड़ न ले। फिर भी हम लोग भगवान के सहारे भाग रहे थे। आज भी उस भट्ठे की याद आने पर शरीर के रोएं खड़े हो जाते हैं। हमारी बिरादरी में किसी के साथ ऐसा न हो।
पिण्डरा आने पर एक नदी (नंद नाला) के किनारे दो-चार पेड़ है, उसी की छांव में पूरी दोपहर हमलोग छिपे रहे। वह महीना इसी साल का अप्रैल था, तारीख याद नही आ रही है। जब शाम में अंधेरा छाने लगा तब हम लोग वहां से पूरब सरैयां गांव के बगल में रतनपुर गांव के पोखरा के पास आये। उस समय रात के लगभग 9 बजे का समय हो रहा था। गाड़ी की रोशनी देखते ही हम लोग भागने लगते थे, क्योंकि पूरे इलाके में हल्ला हो गया था कि मालिक भागने वाले मजदूरों को खोज रहा है। मालिक कपड़ा बदल-बदलकर तथा हेलमेट लगाकर हम लोगों के बारे में पूछताछ कर रहा था।
दो दिन-दो रात हम लोग पोखरा के किनारे बिताए। खेत में चलते-चलते बच्चों के पांव फुल गये थे। खाने के लिए कुछ नहीं था, केवल पानी पीकर या कुछ हल्का मिठा खाकर हमने गुजारा किया। पीने के लिए पोखरा का पानी ही था। वहीं ताल पर छुपे-छुपे एस ओ और एस डी एम साहब के फोन नम्बर की जानकारी लेकर फोन किया। लेकिन कोई सहायता के लिए नहीं आया। तब हमने 'मानवाधिकार जन निगरानी समिति' के मंगला भैया को फोन लगाया। उन्होंने हम लोगों को ढ़ाढस बंधाया और बोला कि आपलोग तहसील दिवस में यहां आ जाओ, उस दिन मंगलवार था। हम बोले, ''हम नही आ पायेंगे, डर है कि कहीं मालिक देख ले और पकड़कर ले जाए, मार-पीट करे।'' तब उन्होंने कहा-''वही रहो, हम आते हैं।'' वे आये और तहसील पर हम सारे लोगों ने साहब को आवेदन दिया।
आवेदन देते समय मालिक के रिश्तेदार (कनकपुर के लोग) तथा अन्य लोग हमें डराने-धमकाने लगे, लेकिन हम लोगों ने हिम्मत जुटाकर सभी जगह आवेदन दिया। फिर रोड से नहीं जाकर ताले-ताले पकड़कर घर गये। घर पहुँचने के बाद भी हम लोग डरे हुये थे और दो-तीन लोग पहरेदारी कर रहे थे कि कही से कोई आ न धमके।
उसके बाद भी महीना भर मलिक हमलोगों को खोजते रहा। जब वह बस्ती की ओर गाड़ी से आता था, हम लोग भाग जाते थे। उसके चले जाने के बाद ही फिर बस्ती में आते थे। हम लोगों में से दो आदमी यही देखने में लगे रहते थे कि मालिक का गाड़ी आ रही है कि नहीं। अगर कभी बात निकलती है या सोचने लगते हैं तब सर में दर्द होने लगता है और चक्कर भी आने लगता है। सुबह उठने के साथ ही पुरी बात दिमाग़ में घुमने लगता है। मालिक के द्वारा कही बातें या उसे देखते ही हमारा शरीर सुन्न हो जाता है। आज भी आपसे बात करते हुए वैसा ही लग रहा है।
उस एक महीने में जीवन गुजाराना बहुत तकलीफदेह था। काम करने के लिए दूर जाना पड़ता था और उसी मजदूरी से कई दिन गुजारा करना पड़ता था। हम लोगों की जिंदगी क्या ऐसी ही रहेगी, हम लोगों को सुनने वाला कोई नहीं है? हम लोग जिलाधिकारी (वाराणसी) के बंगले पर गये। आवेदन देने के बाद भी मालिक हम लोगों को ढ़ूंढ रहा था। उसके बाद एक दिन तहसील दिवस पर हम लोगों की औरतें जब जिलाधिकारी को आवेदन देने जा रही थी, तभी वही पर बैठा एस ओ रोककर पूछा, ''तुम लोग इतनी भीड़ में कहाँ जा रहे हो'' और आवेदन ले लिया। आवेदन लेने के बाद एक अलग कमरे में हम सभी को बुलाया और पूछताछ किया। पूरी मामला जानने और भट्ठा का पता लेने के बाद बोला कि तुम लोग घर जाओ, हम उसको पकड़ने जा रहे है। हम लोग भी घर चले आए। तब से मालिक हमलोगों को ढूढ़ना कम कर दिया। उस दौरान हमें रात में नींद नहीं आती थी, नींद आने पर सपना आता था कि मालिक हथियार लेकर दौड़ा रहा है हम भागने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन भाग नहीं पा रहे है। कई लोग को हदस के मारे बुखार आ गया था।
आवेदन देने के चार दिन बाद रात में लगभग 8 बजे एक मोटर साइकिल पर दो पुलिस वाले आये, उन लोगों ने औरतों से बात की और कहा, ''तुम लोगों ने गलत बयान दिया है, सुलह कर लो, नहीं तो तुम साले लोग फँस जाओगे और पिटाओगे सो अलग।'' हम लोग तो गाड़ी की रोशनी देख कर ही भाग गये थे। जब हम वापस बस्ती में आये तब महिलाओं ने सारी बात बतायी।
लेकिन यहां आने पर अभी पता चला कि संस्था के द्वारा लिखा-पढ़ी करने पर हम लोगों का मामला सुप्रीम कोर्ट में चला गया है। संस्था वालों ने हमें बताया है कि सुप्रीम कोर्ट के पीआइएल सेल की ओर से इस मसले पर जवाब तलब के लिए कोई नोटिस आयी है. अब हमें संतोष हुआ है और लग रहा है कि इंसाफ होगा। आज हमें भी बड़ा होने का एहसास हो रहा है। भट्ठा मालिक बोलता था कि जिलाधिकारी और बड़े-बड़े अफसर मेरे रिश्तेदार हैं, हमारा कोई कुछ नही बिगाड़ सकता है।
अब अच्छा लग रहा है। हम लोग भी उसको जवाब दे सकते हैं। उस पर मुकदमा दायर हो जाए तो और खुशी की बात होगी। जल्द से जल्द सुनवाई हो। हम लोग भी आजाद हो जाएं और कही काम-धंधा करें। कानूनी कार्यवाही तो चलते ही रहेगी। अपनी पूरी बात कहने पर अच्छा लग रहा है, एक बोझ हमारे ऊपर से हट गया। हम बहुत खुश हैं कि सुप्रीम कोर्ट में मामला चला गया है। हम भूखे पेट यहां आये थे और उसे भी लग रहा था, लेकिन अब अपनी खुशी संभाले नहीं संभल रही है। आपके द्वारा कहानी सुनने पर लगा था कि यह हमारी कहानी है, बहुत अच्छा लग रहा था। ध्यान योग करके बहुत आनन्द आया। अब हम लोग कही भी आ-जा सकते हैं।
उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधारित
Tags: bounded labour, brick labour, varanasi
" गाड़ी की रौशनी देख कर हम छुप जाते थे : रामदयाल " को 2 प्रतिक्रियाएँ
- anjule says:
ये दर्द ,दर और हैवानियत की ये इन्तेहा है….इस यूग में भी बधुवा मजदूरी..किसने कहा की ये प्रजातंत्र है..
- Rajesh Kumar says:
लोकतंत्र का एक घिनोना रूप…. न जाने रामदयाल जेसे कितने लोग इस तरह की दहसत भरी जिंदगी जी रहे होगे. कौन कहता है कि इंडिया में प्रजातंत्र है … मै तो कम से कम नहीं कह सकता …
Tuesday, February 8, 2011
पुलिस ने हमें पेशाब पिलाया : रामजी गुप्ता
डॉ. लेनिन रघुवंशी पूर्वी उत्तरप्रदेश में ग़रीब और कमज़ोर लोगों पर पुलिसिया उत्पीड़न की कहानियां सरोकार को भेज रहे हैं. पेश है उस श्रृंखला की तीसरी कड़ी. इस बार पेश है एक वाहन चालक रामजी गुप्ता और उनके परिवार के साथ हुए भयानक पुलिस उत्पीड़न की दास्तान उन्हीं की जुबानी :
मेरा नाम रामजी गुप्ता, उम्र-50 वर्ष है। पिता जी का नाम स्व. राम प्रसाद गुप्ता है और मैं सिपाह, मकान नं. 252, पोस्ट-सदर, थाना-कोतवाली, जिला-जौनपुर (उत्तर प्रदेश) का रहने वाला हूं। मेरे परिवार में आठ सदस्य हैं। मैं, मेरी पत्नी गायत्री देवी (46 वर्ष), चार बेटे विनोद कुमार (28 वर्ष), मनीष कुमार (26 वर्ष), चंदन कुमार (24 वर्ष), आशीष (21 वर्ष), बहू सीमा देवी (25 वर्ष) और एक पोता आदित्य कुमार (2 वर्ष) है।
मैं पेशे से ड्राइवर हूं, लेकिन अब शुगर की बीमारी के कारण कभी-कभी ही ड्राइवरी का कार्य करता हूं। मेरा बड़ा लड़का विनोद भी गाड़ी चलाता है। वह जौनपुर के ख्वाजा दोस्त के रहने वाले महेन्द्र सेठ का सेंट्रो कार चलाता था। 23 जनवरी को रात्रि 12.30 बजे पिण्डरा बाजार से लगभग 1 कि.मी. आगे एक गाड़ी ने ओवरटेक करके उसकी गाड़ी को रोका और चार बदमाश असलहा से लैस उतरे और सेठ के लड़के अजय सेठ व मेरे बेटे के साथ मार-पीट किये और लूट-पाट किये। मेरे लड़के को अपने साथ जबरन उठा भी ले गये। इस बात की सूचना मेरे मोबाइल नं0-9792731268 begin_of_the_skype_highlighting 0-9792731268 end_of_the_skype_highlighting पर सुबह लगभग 4 बजे महेन्द्र सेठ के फोन के द्वारा मिला. यह सुनकर मैं डर गया और मन में डरावने विचार आने लगे कि कहीं मेरे बेटे को बदमाश मार कर फेंक न दें! इसी आशं से मैंने सेठ जी को फोन किया और अजय सेठ के बारे में पूछा कि, ''वो कहां हैं?'' सेठ जी ने कहा, 'हम लोग थाने पर हैं और तुम्हारे बेटे की तलाश की जा रही है, अगर वह घर पहुंचे तो मुझे सूचना देना।' यह सुनकर पूरा परिवार चिंतित हो गया. बहू और मेरी पत्नी लगातार रो रही थी, जिसे देखकर मेरा पोता भी जोर-जोर से रोने लगा।
किसी तरह हम लोग सुबह होने का इंतजार करने लगे। इसी बीच करीब 5:30 बजे सुबह कोई दरवाजा खटखटाया। मेरा दूसरा लड़का जाकर पूछा और दरवाजा खोला. विनोद बाहर खड़ा था। वह जैसे ही घर पहुंचा, कुछ ही देर बाद फुलपुर थाना की पुलिस आ धमकी और यह कहकर उसे ले गयी कि पूछताछ करनी है। उसी दिन से उसे तरह-तरह की यातना दी गयी। उसकी दशा देखकर पूरा परिवार विक्षिप्त-सा हो गया है। पुलिस द्वारा उठा ले जाने के बाद मैं दौड़े-दौड़े थाने गया. वहां विनोद दिखाई नही दिया था. हमने पुलिस वालों से पूछा भी, लेकिन उन लोगों ने डांटकर भगा दिया। यह सब देख- सोच कर दिमाग़ पागल-सा हो रहा था कि आखिर मेरे बेटे को वे लोग कहां ले गये. कहीं मार तो नहीं देंगे, किसी मुकदमे में फंसाकर पूरी जिंदगी बर्बाद न कर दें!
फिर मैंने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नई दिल्ली को फैक्स किया, स्थानीय पुलिस अधिकारियों को तार, इत्यादि भी किया. कई बार मैं थाने पर गया, लेकिन मुझे मेरे लड़के से मिलने नहीं दिया गया। मुझे हर बार वे डांटकर थाने से बाहर भगा देते थे। इसी तरह दौड़-धूप करते-करते मेरा शरीर थक-हार कर टूट गया। दिनांक 29 जनवरी, 2010 को शाम करीब 4 बजे फूलपुर (वाराणसी) एस.एच.ओ. का फोन आया, उन्होंने कहा ''आकर अपने लड़के को ले जाओ।'' वहां हम दोनों से हस्ताक्षर करवाया गया। उन्होंने किसी उच्चाधिकारी से बात की और बोला, 'अभी दो दिन विनोद को और रखेंगे, तीन मुजरिम पकड़े गये हैं, उनकी शिनाख्त करवानी है।' लेकिन किसी भी मुजरिम का शिनाख्त नहीं करवायी गयी। इस बीच उसे कठोर यातना दी गयी. और 1 फरवरी को नौ दिन बाद छोड़ा गया. पुलिस वाले बोले, ''बुलाने पर आना होगा।''
जब मेरे लड़के को मेरे हवाले किया तो उसकी हालत देखकर मैं रो पड़ा। घर लाकर इलाज शुरू करवाया. उसे कुछ राहत मिली और हमें थोड़ी शांति महसूस हुई। इसके बाद फिर 12 फरवरी की रात 12 बजे एस.ओ.जी. की पुलिस हमारे घर आयी और जोर-जोर से दरवाजा पीटना शुरू किया। मेरा छोटा लड़का (मनीष) दरवाजे के पास जाकर पूछा कि कौन है। उन लोगो ने गाली देते हुए कहा, ''खोल दरवाजा, हम पुलिस वाले हैं।'' पूरा परिवार जग गया। हम सोचने लगे कि फिर से कुछ न कुछ करेंगे। मनीष ने दरवाजा खोला, करीब आधा दर्जन लोग घुस कर मारना-पीटना करने लगे। मेरी पत्नी बेहोश होकर गिर गयी। उस समय मुझे लगा कि मेरा हार्ट फेल हो जायेगा। मेरी पत्नी जब होश में आयी, तब उसको पुलिस वालों ने बूट से मारा और उसकी इज्जत पर हाथ डालना चाहा. लेकिन कुछ पुलिस वालों ने ऐसा करने से उन्हें मना किया। लेकिन वे लगातार मुंह से अश्लील बातें बक रहे थे। मेरी बहू को रखैल बनाकर नंगा नचवाने की बात तक कही. यह सब देख-सुन कर मुझे बहुत क्रोध आ रहा था कि इन सबके साथ क्या कर बैठूं. लेकिन मजबूर था. मेरे हाथ बार-बार कांप रहे थे, लग रहा कि हाथ छोड़ दें. लेकिन विवश होकर केवल हम गिड़गिड़ा रहे थे। घर का सारा सामान तितर-बितर कर दिया और पूरे परिवार सहित उठा ले गये। सिपाह पुलिस चैकी पर ले जाकर दुबारा सभी को मारना-पीटना शुरू कर दिया। जब ये लोग अपने साथ ले जा रहे थे, उस समय लगा कि पैंट में ही शौच हो जायेगा। मैं डरते-डरते उन लोगो से बोला भी. लेकिन उन्होंने कहा, ''चल साले, मैं तुझे कराता हूं।'' सिपाह पुलिस चैकी पर हाथ-डंडा से मारना शुरू किया. औरतों को जूता से मारा व साड़ी तक खींचा. उसके बाद तीनो मोबाइलें जब्त कर ली, जिनका नं0 9792731261 begin_of_the_skype_highlighting 0 9792731261 end_of_the_skype_highlighting (मेरा), 9305754951 begin_of_the_skype_highlighting 9305754951 end_of_the_skype_highlighting (मनीष) तथा 9336280429 begin_of_the_skype_highlighting 9336280429 end_of_the_skype_highlighting (चंदन) है।
मेरी पत्नी एवं तीन मासूम बच्चों को थाना कोतवाली (जौनपुर) में एक रात और एक दिन रखा. दूसरे दिन पत्नी को छोड़ दिया. लेकिन मेरे तीन मासूम बच्चों को मारते-पीटते पुलिस फूलपुर थाने ले गयी. जहां हमें और विनोद को लेकर आये थे। वहां बच्चों को दो दिन रखा गया, और जब इन दोनों का स्वास्थ्य बुरी तरह खराब होने लगा, तब छोड़ दिया गया। फिर मुझे व विनोद को अलग-अलग थाने में रखा गया था। हमें दो दिन चोलापुर में अकेले रखा गया। वहां हम विनोद के बारे में सोच रहे थे कि उसके साथ लोग क्या करे होंगे? हमें अलग क्यों रखा गया? यह सब सोचकर बेचैनी हो रही थी। दो दिन बाद विनोद और हमें सिंधौरा पुलिस चैकी तथा दो दिन फूलपुर थाने में रखा गया।
इतने दिनों में मेरी शारीरिक पीड़ा इतनी ज्यादा बढ़ गयी थी कि मन में आया आत्महत्या कर लूं, लेकिन यह सोचकर रुक गया कि मेरे बाद मेरे परिवार का क्या होगा? मेरे और मेरे परिवार के साथ जो अश्लील हरकतें पुलिस वालों ने की तथा जो यातना दीं, वह असहनीय रहा। दिनांक 13 फरवरी को पुलिस लाइन (वाराणसी) में मारा-पीटा गया. यहां तक कि जबरदस्ती मेरे मुंह में पेशाब पिलाया गया और मेरे लड़के विनोद को भी पेशाब पिलाया गया तथा कान में पेट्रोल डाला गया। जिसकी घृणास्पद पीड़ा बर्दाश्त नहीं हो पा रही थी।
अभी भी सोचकर घृणा से मन उल्टी जैसा होने लगता है, रोगटें खड़े हो जाते हैं। उसको याद करना नहीं चाहते हैं। यह सब सोचकर पागल हो जाता हूं कि जब इस बारे में लोग जानेंगे, तब लोग क्या सोचेंगे! 18 फरवरी तक वे लोग इधर-उधर नचाते रहे और इसी दिन रात में 8 बजे छोड़ा तथा कहा कि बाहर जाकर कोई कदम मत उठाना, नहीं तो किसी और मुकदमे में फंसा देंगे। वहां पर मैंने उनके हां में हां मिलाया, ''मैं कुछ भी नही करूंगा सर।'' लेकिन मुझे अपनी लड़ाई लड़नी है। मैने बाहर आकर अपनी लड़ाई लड़नी शुरू कर दी। मुझे न्याय व सुरक्षा चाहिए। परिवार सही सलामत रहे। मेरी रोजी-रोटी में कोई रुकावट पैदा न हो। इसके लिए मैं सरकार से गुहार लगाना चाहता हूं। छोड़ने के तीन-चार दिन बाद एस.ओ. फूलपुर का मेरे मोबाइल पर 11:30 बजे दिन में फोन आया. बोले, ''विनोद को लेकर बाबतपुर चैराहे पर आ जाओ।'' जब हम फोन पर एस.ओ. साहब से बात कर रहे थे तब घर की महिलाएं बेचैन होकर रोने लगीं और बोली, ''फिर क्या हो गया, कहीं दुबारा बंद न कर दे!'' हम दोनों लगभग साढे चार बजे बाबतपुर पहुंचे. उन्होंने हमें जीप में बैठने को बोला और दोनो को लंका थाना (वाराणसी) लेकर आये। वहां पर सी.ओ. और एस.ओ.जी. वाले विनोद को गाली देते हुए कड़ी पूछताछ करने लगे। यह देखकर मैं घबरा गया कि कहीं फिर अंदर करके मारना-पीटना शुरू न कर दें। शरीर में सिहरन हो रही थी। अभी भी याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
पूछताछ के बाद लंका से फूलपुर थाने लाये और ट्रक पकड़ा दिया। छोड़ने से पहले बोला, 'तुम दोनों घर छोड़कर कहीं मत जाना।' हमलोग कहीं कुछ कर नहीं रहे हैं. घर पर ही पड़े रहते हैं, जिससे रोजी-रोटी पर मुसीबत आ पड़ी है। जब हमलोग घर पहुंचे तब परिवार वालो में खुशी की लहर दौड़ गई और उन्होंने भगवान को शुक्रिया किया।
सबसे ज्यादा आंतरिक पीड़ा 24 जनवरी को हुई, जब सेठ एफ.आई.आर. कराकर बिना कुछ कहे मेरे बेटे को थाना में छोड़कर चले गये और 12 फरवरी को औरतों व बच्चों के साथ मार-पीट किया गया। उसके बाद 13 फरवरी को मुझे पेशाब पिलाया गया, वह घटना सर्वाधिक तनाव उत्पन्न करती है। जीवन से घृणा-सी होने लगी है। आज भी नींद आधी रात के बाद आती है, अगर बीच में टूट गयी को तो फिर दुबारा नहीं आती. सारी रात एकटक छत को घूरता रहता हूं। दिमाग़ में वही सब बातें आने लगती हैं. नींद नहीं आती। चिंता व डर अभी भी रहता है कि रात में फिर से कहीं कोई न आ जाये और उठा ले जाये।
दूसरी तरफ सेठ जी लोग धमकाते हैं, यहां तक कि एस.पी. के सामने डाक बंग्ला में जान से मारने की धमकी व उठा लेने की बात कहते हैं। जिससे डरता हूं कि कुछ अनहोनी न हो जाए। हमारे विचार में यह है कि मुझे जिस प्रकार से प्रताड़ित किया गया है, उसके एवज़ में मुआवजा मिले और मान-सम्मान पहले की तरह बनी रहे। सच्चाई सभी के सामने आये और दोषियों पर न्यायोचित कार्यवाही हो। मैं खुद चाहता हूं कि मामले की न्यायिक जांच सीबीसीआईडी एवं सीबीआई से करायी जाए।
आपके द्वारा कहानी सुनाते हुए पल-पल की याद आ रही थी और वही बेचैनी व घबराहट हो रही थी। लेकिन ध्यान-योग करने के बाद शरीर में हल्कापन और दिमाग़ में तनाव कम हुआ है। सब कुछ ताजा-ताजा नजर आ रहा है. लग रहा है कि अभी नींद से जागे हैं, सुबह जैसा लग रहा है. इस दस मिनट के योग से बहुत परिवर्तन महसूस कर रहा हूं मन शांत है। मुझे परिवार पर हुए अत्याचार के खिलाफ लड़ाई लड़नी है. मुझे न्याय मिले।
उपेन्द्र कुमार के साथ बातचीत पर आधारित.
विशेष सहयोग: बिपिनचन्द्र चतुर्वेदी
Tags: पुलिस उत्पीड़न, लेनिन
Monday, February 7, 2011
Fwd: Threat and abusing call
From: DIG Police ComplaintCell Lucknow <digcomplaint-up@nic.in>
Date: Mon, Feb 7, 2011 at 4:30 PM
Subject: Fwd: Threat and abusing call
To: sspvns@up.nic.in, DIG Varanasi <sspvns-up@nic.in>, igzonevns@up.nic.in, IG Zone Police Varanasi <igzonevns-up@nic.in>, igzonevns@rediffmail.com
Cc: pvchr.india@gmail.com
To,
D.I.G./S.S.P. Varanasi
The complaint Shruti Nagvanshi, PVCHR/JMN, Mobile:+91-9935599330, www.pvchr.org, www.pvchr.net E-mail To: pvchr.india@gmail.com, is being forwarded for enquiry and necessary action. If there is no legal hassle regarding this matter then kindly send brief reply to the complainant regarding action taken.
Addl.S.P. (P/G),
D.G.P. Hqrs, U.P.
Lucknow.
Subject: Fwd: Threat and abusing call
To: DIG Police ComplaintCell Lucknow <digcomplaint-up@nic.in>
Cc: PVCHR ED <pvchr.india@gmail.com>
>
> Subject: Threat and abusing call
>
> Sir/Madam,
>
> Greeting from Varanasi.
>
> My name is Shruti Nagvanshi and residence of SA 4/2 A, Daulatpur, Varanasi,India.
>
> I am working for rights of marginalized on grass root and managing trustee of Peoples' Vigilance Committee on Human Rights (PVCHR).
>
> I received the call from +91-7499245228 to my mobile number Number +91-9935599330 nearly at 7.01 PM.I was at Narendra computers, Ghausabad,Varanasi.
>
> He offered the friendship first. I just avoided. He immediately started to abuse in very nasty manner. All his abuses are against the dignity of a woman. Then he cut the call. Again I called on his number and asked to him for reason of abuse. But he gain abused in very bad way. He knows my name also.
>
> I am suffering with psychological stress. Please do needful for rule of law.
>
> With regards,
> Shruti Nagvanshi
>
> Mobile:+91-9935599330
Sunday, February 6, 2011
WEAVING DREAMS, LIVING IN NIGHTMARE: SITUATION OF BANARASI SAREE WEAVING SECTOR OF VARANASI
Thursday, February 3, 2011
ये तो पत्थर तोड़ते थे, पुलिस ने इन्हें क्यों तोड़ा
ये तो पत्थर तोड़ते थे, पुलिस ने इन्हें क्यों तोड़ा
समय Feb 03, 2011 | एक टिप्पणी दें
लेनिन रघुवंशी
मेरा नाम रघूलाल, उम्र-23 वर्ष, पुत्र-श्री बिंदा बिंद। मैं गाँव-सागर सेमर, पोस्ट-हिनौती, थाना-पड़री, जिला-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) का निवासी हूँ। मैं पत्थर तोड़ने का काम करता हूँ, महीना में 10-15 दिन काम मिलता है। हमारे परिवार में चार सदस्य हैं-मैं और मेरी पत्नी उर्मिला, दो लड़का-लवकुश (3 वर्ष) व आशीष (1 वर्ष)।
हमारे साथ जिंदगी में यह पहली घटना घटी जिससे मैं शारीरिक व मानसिक रूप से क्षमता विहीन हो गया। उस घटना के कारण घर से बाहर निकलने में डर लगता है। अब काम-काज करने का हिम्मत ही नही करता। हमेशा चिन्ता व डर बनी रहती है कि दुबारा फिर से हमारे साथ अमानवीय व्यवहार व मार-पीट न किया जाए। इसलिए किसी से बातचीत करने में भी डर लगता है।
पुरवा हवा चलने पर पूरे शारीर में दर्द उठने लगता है, अब परिवार का भरण-पोषण करना मुश्किल हो गया है। रात में जब नींद टूट जाती है तो फिर नींद ही नही आती. सारी रात यह सोचते-सोचते कट जाती है कि जो मेरे साथ हुआ उससे अच्छा मर जाना ही उचित था।
हुआ यह कि मैं 28 मई, 2009 को अपने ससुराल साले जी की शादी में ग्राम-बहरामागंज, पोस्ट व थाना-चुनार, जिला-मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश) गया था। 29 मई को लगभग 10 बजे रात में हम बाजार से ससुराल (घर) चलने वाले थे कि चुनार थाना के जीप पर सवार वहाँ के दरोगा व सिपाही आये, हमें उठाकर गाड़ी में बिठा लिया। अचानक इस हरकत से मैं घबरा गया। रात का समय था, डर के मारे मैं उनसे कुछ पूछ भी नही सका। चोरी हुई जगह और मेरे घर घुमाते-फिराते थाना में लगभग 2.00 बजे रात में पहुँचे। उस समय 2 बल्ब दरोगा के कमरे में तथा तीन बाहर में जल रहे थे। हवालात में बल्ब नहीं था। हमें उसी हवालात में बंद कर दिया गया। कुछ समय बाद दो रोटी और सब्जी हमें भोजन के लिये दिया गया। अभी भोजन किये ही थे कि हमें फिर दो सिपाही हथकड़ी लगाकर बाहर लाये और जीप में बिठा दिया, यहाँ से वे लोग हमें सुदर्शन दरोगा के आराम करने वाले कमरे पर ले आये. वहाँ पर पहले से ही थाना से सम्बन्धित दो लोग उपस्थित थे। यहाँ से जीप में बिठाकर वे पाँचों लोग हमें डगमगपुर स्थित एक फैक्ट्री के पास ले गये और हमें डराते व धमकाते हुये पूछा कि बताओं तुम्हारे साथ कौन-कौन लोग थे। वह एक सुनसान क्षेत्र है. रात में पूरा सुन-सपाटा छाया हुआ था। डर के मारे पुरा शरीर पसीना से लथपथ हो गया था. डर लग रहा था कि कही मारकर फेंक न दे। आज भी वह दिन याद करके रोंगटे खड़े हो जाते हैं। डराने व धमकाने के लगभग आधे घंटे बाद चुनार चौकी के समीप ही बिहारी ढ़ाबा है, वहाँ ले आये. अपने लिये वे लोग चाय मंगवाये और हमें कांच की गिलास में दारू पीने के लिये दिया। हमने कभी शराब नहीं पी थी. जब हमने शराब पीने के लिये मना कर दिया, तब गाली देते हुए सिपाही आया व मारने लगा और दूसरा सिपाही जबरदस्ती मुँह में लगाकर हमें दो गिलास शराब पिला दिया। उस समय हम मर जाना उचित समझते थे और यह ठीक भी रहता। शराब पिलाने के बाद उसी समय और लोगों के घर छापा मारा गया तथा 12 लोगों को पकड़ा। उसमें से कई लोग हमारे गांव व इलाके के रहने वाले थे।
30 मई, 09 को दिन में लगभग 12 बजे दरोगा हमें अपने दफ्तर में बुलाया तथा हमारे साथ मार-पीट करने लगा, हमारी दायां हथेली पर कुर्सी रखकर उस पर बैठ गया तथा बोला कि बताओ डकैती का समान कहाँ है, कौन-कौन से लोग इसमें शामिल हैं। हम बेकसुर थे. हम कुछ नही जानते थे. इसलिए हमने कुछ नहीं बोला., तब दरोगा ने सिपाहियों को बुलाया, सिपाही हमें कमरा के बाहर लाये तथा कम्पाउड में डंडे से पिटाई करने लगे तथा चोरी का हामी भरा रहे थे। सर छोड़कर पूरे शरीर पर आगे-पीछे, बेरहम की तरह पिटाई करने लगे. जिससे दांये हाथ के अंगूठा में जबरदस्त चोट आई, जो आज तक सूजा हुआ है। कुर्सी से कुचलने के कारण हथेली के ऊपरी हिस्से पर निशान अभी भी है तथा सूजा हुआ है। उस समय तो हम डर गये थे कि हथेली का हड्डी टूट गया है, लेकिन एक्स-रे करवाने पर पता चला कि हड्डी नहीं टूटी है, तब जाकर थोड़ा राहत महसूस हुआ। मार-पीट के बाद वे लोग हमें हवालात में डाल दिये। दिन भर हमें खाना भी नही दिया. शाम को 4 बजे घर से खाना आया तब खाना खाये। उसी दिन लगभग डेढ बजे रात में फिर सुदर्शन दरोगा अपने निवास पर बुलाया. कहा कि झूठ या सच कुछ तो बताओ? वहाँ पर हमें लगभग डेढ घंटे रखा. उसके बाद सिपाही को बुलाया तथा हमें थाना ले जाने को बोला। वहीं पर सिपाही ने हमें दो डंडे मारे तथा जीप में बिठाया. जीप में हमें मारते हुए थाने ले आया। हवालात के सामने लगातार डंडे की बारिश हमारे ऊपर करने लगे. जब हम गिर गये तब हवालात में 15 कैदियों के साथ बंद कर दिया। रात में खाना भी नहीं दिया।
अगले दिन फिर दरोगा अपने कार्यालय में बुलाया तथा थाना परिसर में रखी पत्थर पर बैठने को बोला, जो चारो-ओर से बिजली के तार से घिरा हुआ था. बैठने के बाद हमें दो बार बिजली का करेंट लगाया और करेंट देने लगा। उसी समय मेरा भाई ओम प्रकाश समोसा लेकर आया था. होमगार्ड ने उसे समोसा देने से मना किया तथा बोला कि इसके लिए चना और लाई लेते आओं। जब भाई खाने का समान दे रहा था, उस समय हम केवल इतना बोले कि हमें पानी-पिला दो, अब जिंदगी का कोई पता नही। उसने हमें पानी पिलाया। इसके बाद हमें तीसरी बार करेंट दिया, जिसके कारण हम बेहोश हो गये।
पाँच दिन बाद जब हमें होश आया, अपने को मैं सरकारी जिला अस्पताल मिर्जापुर में लेटा पाया. यह देखकर हम अचम्भित हो गये। हाथ के इशारा से मैंने अपने जीजा जी से पूछा, तब वे बोले कि आपकी हालत खराब हो गई थी, इसलिए आपको भर्ती किया गया है। दो दिन तक हमें कुछ याद नहीं रहा। बाद में धीरे-धीरे पता चला कि हमारे साथ पुलिस वाले क्या-क्या किये हैं।
सप्ताह भर हम अस्पताल में रहे, उसके बाद घर आये। पुलिस वाला हमें पूछने तक नहीं आये। बाद में हमें पता चला कि लोगों ने चुनार व डगमकपुर के चौराहे पर चक्का जाम किया था. पडरी थाना के दरोगा जी व क्षेत्रीय विधायक भी हमसे अस्पताल में मिलने आये थे। अखबार वाले भी आये थे, जिन्होंने हमारी हालात व चुनार दरोगा के मनबढ़ी व अत्याचार पर खबर अखबार में छापे थे। बंदी के दौरान चुनार के दरोगा सुदर्शन हमारे ससुर श्री लक्ष्मण व भाई (जीतू) से 13,000 रुपये हमें छोड़ने के एवज् में लिया था।
मिर्जापुर अस्पताल में भर्ती होने के पहले हमें चुनार क्लिनिक में भर्ती करवाया गया था, जहाँ डाक्टरों ने हमारी स्थिति नाजूक देखते हुए मिर्जापुर जिला अस्पताल भेजने को बोला था। तब क्षेत्रीय विधायक जी के कहने पर एम्बुलेंस से मिर्जापुर अस्पताल लाया गया था. वहां हमारा सर व हाथ का एक्स-रे भी हुआ था।
बायीं तरफ पीछे की हिस्सो में दर्द अभी भी है। हमारे घर से पुलिस जो समान उठाकर ले गई थी, वह मिल गया है, लेकिन जो समान पटेल परिवार ले गये जैसे-हसुली पायल, बल्ला: नहीं मिला है।
मारपीट का याद आने पर मर-जाना उचित लगता है। अभी जब हम आपके कार्यालय आ रहे थे, तो बगल वाली जो मंदिर है वहाँ पुलिस को देखकर अंदर से सहम गये थे, मेरा मुँह सुखने लगा था।
जब से अस्पताल से आये हैं, घर छोड़कर कहीं नहीं जाते, एक-दो बार केवल दवा-ईलाज हेतु बाबू जी के साथ ही गये हैं। अपनी कहानी कहने व सुनाने के बाद डर पैदा होता है। दोषी पुलिसकर्मियों पर कार्यवाही हो. जिससे वह भी सीख लें कि नाजायज व गैर कानूनी तरीकों से आम आदमी के साथ इस तरह से अमानवीय ढ़ंग से मार-पीट व गाली गलौज न करें। पटेल परिवार जो हमें डकैती में फँसाया है, उसे भी दण्ड मिले।
आपको कहानी सुनाकर व यहां आकर धीरे-धीरे अब डर कम होने लगा है। गाँव व क्षेत्र में मेरी कहानी पढ़ी जाए। मार-पीट के कारण जो इज्जत गयी है, वह लौट तो नहीं सकती, लेकिन सभी हमारी कहानी को जाने कि पुलिस कैसे बेगुनाह के साथ अमानवीय व्यवहार करती है। दुनिया जाने की पुलिस का असली चेहरा क्या है तथा अखबार एवं समाचार में मेरा कहानी पढ़ा एवं प्रसारण किया जाय। अभी जब आपने हमारी कहानी पढ़कर सुनायी, हमें बहुत अच्छा लगा तथा अब पहले से बेहतर व अच्छा महसूस कर रहा हूँ.
उपेन्द्र कुमार से बातीचत पर आधारित
Tags: police attrocity, UP
is lekh ko padhkar bahut dukh hua,bahut takleef hui,lekin haqeeqat ye hai ki abdur rahman jaise saikdon logon ki aisi hi kahani hai jo ki saampradaayik hinsa ka shiakar hue,unhone kam-o-besh har dange me police ke inhi zulm-o-sitam ko saha hai.tareekh gawah hai is baat ki hindustan jab angrezon ke zer-e- iqtidaar mein tha,tab bhi shayad communalism ko lekar itne zulm–sitam nahi hue honge, [haalaanki is baat se bhi inkar nahi kar sakte ki ye beej bhi unhi ka boya hua hai]lekin azadi ke baad ab tak jitne bhi violence hue usmein ek khas community ko hi target kiya gaya.yahan par vistaar se batane ki zarurat nahi hai bahut saare udhaaran bhare pade hain.lekin media ne aur sarkar is sachchai ko aam logon se dur rakhne mein hamesha bahut ahm role ada kiya hai.kuchh scholors ko chhod kar is baat ki sachchai koi nahi samne laya.raha sawal qanoon aur insaaf ka jaise ki abdur rahman saahab ko is baat ki ummeed hai ki shayad sarkar kabhi un par nazr-e- karm kare,unko insaaf mile to shayad aisa kabhi mumkin nahi hoga kyonki abhi recently maalegaon bum dhamakon ke baare mein jo baat samne aayi hai,hamare prashaasan aur hamare qanoon ko use suchh manne mein zahmat ho rahi hai.begunahi saabit hone ke baawajood bhi unhe ab tak riha nahi kiya gaya hai.to hum is baat se samjh sakte hain ki ek maasoom insan ki yeh ummeed dil ko kitna hila dene wali hai.rahman sb.ko aam logon se imdad mil sakti hai,unki ye aawaaz jahan tak jayegi,log unka pura sahyog denge lekin sarkar se ye ummeed bekar hain. sarokar ne jis himmat jis saahas ke sath aise logon ko dhooda hai aur unhe apne lekhon mein jagah di hai,unke is saahas aur is jazbe ko bahut bahut badhai.mai manti hu ki is tarah ki sachchai ko log padhna chahte hain,wo media mein iske liye bhi jagah dekhna chahte hain.mai ummeed karti hu ki aise hi lekh aage bhi padne ko milte rahenge.