Thursday, February 16, 2023

रूस के राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध के खिलाफ बनारस से एक खुला पत्र

https://junputh.com/voices/an-open-letter-to-russian-president-putin-from-varanasi/

रूस के राष्ट्रपति पुतिन को युद्ध के खिलाफ बनारस से एक खुला पत्र


सम्‍माननीय राष्‍ट्रपति पुतिन
भारत की सांस्‍कृतिक राजधानी बनारस से आपको अभिनंदन!

रूस-उक्रेन युद्ध के 355वें दिन यह पत्र आपको महात्‍मा गांधी और बुद्ध की धरती से प्रेषित है।

माननीय, भारत के एक अखबार द हिंदू में 2012 में आपका एक लेख प्रकाशित हुआ था जिसके अनुसार, ‘’अक्‍टूबर 2000 में भारत और रूस के बीच रणनीतिक साझीदारी पर दस्‍तखत किया गया घोषणापत्र वास्‍तव में एक ऐतिहासिक कदम था।‘’ हमारे देशों के बीच ऐसी साझीदारी राष्‍ट्रीय हितों को संवर्द्धित करने पर केंद्रित परंपरागत कूटनीति के खिलाफ जाती है। यह घोषणापत्र हमारे देशों के बीच साझा सदियों पुराने इनसानी मूल्‍यों और परंपराओं को भी साकार करता है। रूस ने हमेशा से ही शांतिपूर्ण भारत की परिकल्‍पना की है जो दुनिया के राष्‍ट्रों के बीच उसकी विशिष्‍ट स्थिति का द्योतक है जिसमें कई शक्तिशाली राष्‍ट्रों के प्रति निर्भय झलकता है। प्रौद्योगिकी और ऊर्जा के क्षेत्र में आपके देश के सहयोग ने इनका शांतिपूर्ण उपयोग करने और अपनी राष्‍ट्रीय सुरक्षा को सुदृढ़ करने में हमें सक्षम बनाया है।

अपने पड़ोसियों के साथ टकराव हो या वहां शांतिपूर्ण लोकतांत्रिक सरकार की स्‍थापना के लिए सहयोग का मसला, भारत कभी भी किसी की जमीन कब्‍जाने या उसे अस्थिर करने के बिंदु तक नहीं गया है। पड़ोसियों से भारत के जो भी मतभेद उभरे उन्‍हें शांतिपूर्ण ढंग से कूटनीति के रास्‍ते संबोधित किया गया। भारत का राजनय गांधी, सनातन और बुद्ध के विचारों पर आधारित है जिसका उद्देश्‍य अहिंसक ढंग से इनसानी सभ्‍यता का प्रसार करना है। विद्वेष-मुक्‍त और शांतिपूर्ण जगत की दिशा में भारत के प्रयासों का एक उदाहरण गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सशक्‍त करना रहा है। अविभाजित सोवियत रूस के महान नेता से प्रेरित होकर ही मेरे माता-पिता ने मेरा नाम लेनिन रखा था। हमारी परंपरा थी कि हमने इसे स्‍वीकार किया।

1987 में आयी एक पुस्‍तक ‘गांधी ऑन वॉर एंड पीस’ में लेखक कहते हैं कि ‘’गांधी की दृष्टि में जंग समकालीन जगत की सबसे महत्‍वपूर्ण समस्‍या है।‘’ गांधी ‘’सही’’ और ‘’गलत’’ युद्ध के बीच भेद नहीं करते थे- उनकी नजर में हर जंग खराब और अन्‍यायपूर्ण थी। उनका दृढ़ मत था कि ‘’कुछ भी स्‍थायी हासिल करने के लिए युद्ध नैतिक रूप से वैध साधन नहीं हो सकता।‘’

माननीय, अहिंसा महज एक दार्शनिक सिद्धांत नहीं है बल्कि जीवन-पद्धति है। हम इसे बार-बार सीखते हैं और अपने जीवन में उतारते हैं। यह कई आंतरिक द्वंद्वों और बाहरी टकरावों को हल कर देती है। रोजाना हम जो गलतियां करते हैं और जिन चुनौतियों से दरपेश होते हैं, उन्‍हें हल करने में अहिंसा मदद करती है। यह हमें खुद को समेट कर नयी ऊर्जा से दोबारा आगे बढ़ना सिखाती है। यह हमें शक्तिशाली और आत्‍मविश्‍वासी रहते हुए उदार और क्षमाशील बनाती है। मेरे लिए शांति की स्‍थापना कोई बौद्धिक कर्म नहीं है बल्कि रूहानी काम है और आत्‍मत्‍याग के लिए हमेशा तैयार रहने से ही सच्‍चा मार्ग प्रशस्‍त होता है। अहिंसा को व्‍यवहार में उतारने के लिए आला दरजे की निर्भयता और साहस की दरकार होती है। मैं यह बातें बहुत कष्‍ट के साथ कह रहा हूं क्‍योंकि मुझे अपनी असफलताओं का भान भी है।

यंग इंडिया में गांधी ने लिखा था:

मैं जानता हूं कि जंग गलत है, यह एक ऐसा पाप है जो कभी खत्‍म नहीं होता। मैं यह भी जानता हूं कि यह खत्‍म होगी। मेरा पक्‍का विश्‍वास है कि खूंरेजी या छल से हासिल की गयी आजादी सच्‍ची आजादी नहीं है…. हमारे अस्तित्‍व का आधार हिंसा और असत्‍य नहीं, अहिंसा और सत्‍य है।‘’

यंग इंडिया, 13.09.1928, पृ. 308

आगे वे अहिंसात्‍मक समाज के बारे में लिखते हैं:

‘’एक अहिंसात्‍मक व्‍यक्ति हिंसा पर आधारित एक तंत्र में परोक्ष नहीं बल्कि प्रत्‍यक्ष भागीदारी को प्राथमिकता देगा क्‍योंकि उसके पास ऐसा करने के अलावा और कोई विकल्‍प नहीं है… मैं ऐसी दुनिया में रहता हूं जो आंशिक रूप से हिंसा पर आधारित है। यदि मेरे पास केवल दो ही विकल्‍प हों, कि या तो मैं अपने पड़ोसियों को मारने के लिए फौज की मदद करूं या फिर खुद ही सिपाही बन जाऊं, तो मैं खुद सेना में सिपाही पर भर्ती हो जाऊंगा, इस उम्‍मीद में कि हिंसक ताकतों को नियंत्रित कर सकूंगा और यहां तक कि अपने साथियों का मन बदल सकूंगा।‘’ (यंग इंडिया, 3;.01.1930, पृष्‍ठ 37)

सनातन धर्म के महान विचारक करपात्री जी महाराज ने अपनी पुस्‍तक ‘रामराज्‍य बनाम राष्‍ट्रीय स्‍वयंसेवक संघ’ (1970) में रूस और उक्रेन के बीच के विरोधाभासों को रेखांकित किया था, जो आज की तारीख में खुल कर सतह पर आ चुके हैं। उन्‍होंने हिटलर के विचारों का भी विरोध करते हुए उसकी व्‍यर्थता और अप्रसंगिकता पर लिखा था।

भारत ने बार-बार रूस और उक्रेन से मौजूदा संघर्ष को खत्‍म कर के कूटनीति और संवाद का रास्‍ता चुनने का अनुरोध किया है। प्रधानमंत्री मोदी ने भी इस मनमुटाव को तत्‍काल खत्‍म करने की बात कहते हुए दोनों देशों के राष्‍ट्रपतियों से निजी रूप से कई बार बात की है और अपील की है कि किसी तीसरे पक्ष की मध्‍यस्‍थता के बगैर दोनों देश परस्‍पर स्‍वीकार्य एक शांतिपूर्ण समाधान पर राज़ी हो जाएं। हम भारत के लोग आपके महान नेतृत्‍व और वैश्विक नेतृत्‍व में आपकी अहम जगह को देखते हुए आपसे अनुरोध करते हैं कि उक्रेन के खिलाफ आप अपने युद्ध को अब समाप्‍त कर दें। इस बहुध्रुवीय दुनिया में सह-अस्तित्‍व और अहिंसा के साथ राजनय की सर्वोच्‍चता को स्‍वीकार करने के मामले में आपको अगुवाई करनी चाहिए।

मैं अब तक आपके शानदार देश में नहीं आया हूं। उम्‍मीद करता हूं कि जब जंग नहीं रहेगी, तब मैं रूस और उक्रेन दोनों ही देशों में आऊंगा।

सम्‍मान सहित
लेनिन रघुवंशी
औनिवेशिक सत्‍ता के खिलाफ एक गांधीवादी स्‍वतंत्रता सेनानी का पौत्र

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Friday, February 10, 2023

Ignoring the idea of peace of Gandhi ji might lead to Catastrophic social conflict in world in the long run: Lenin Raghuvanshi

 Ignoring the idea of peace of Gandhi ji might lead to Catastrophic social conflict in world in the long run: Lenin Raghuvanshi

https://endingfascism.blogspot.com/2023/02/mahatma-gandhi-and-sustainable-peace.html

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