Sunday, April 13, 2014

साम्प्रदायिक फासीवाद और साम्राज्यवाद के गठजोड़ को बनारस में परास्त करें


बनारस लोकसभा चुनाव इस बार अंतर्राष्ट्रीय नजर में है, बनारस जैसा पवित्र ऐतिहासिक शहर जो बहुलतावादी और समावेशी संस्कृति का प्रतीक है | ऐसे में सभी बनारस का नेतृत्व कर गौरवान्वित होना चाहते हैं | एक तरफ साम्प्रदायिक विचारधारा के पोषक राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समर्थित भारतीय जनता पार्टी से प्रधानमन्त्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी प्रत्याशी हैं, जिनके नेतृत्व के समय  गुजरात सरकार में हुए दंगो में दो हजार भारतीयों का नरसंहार हुआ | दूसरी तरफ स्वराज का दम्भ भरने वाले अवसरवादी अराजकता से भरी राजनीति के नेता अरविंद केजरीवाल भी आम आदमी पार्टी से बनारसियों का नेतृत्व करने को व्याकुल है | राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ वही संगठन है जिसने देश की आजादी की लड़ाई में नाम मात्र का हिस्सा लिया और जब भी हिस्सा लिया तो दंड से बचने के लिए ब्रितानिया उपनिवेशवादी हकूमत से माफ़ी मांगकर उनका साथ दिया | 1857 में स्वतन्त्रता संग्राम की पहली लड़ाई में बनी हिन्दू मुस्लिम एकता को तोड़ने का काम किया | 
आम आदमी पार्टी के कुमार विश्वास भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का समर्थन कर रहें हैं, जिसका विरोध आम आदमी पार्टी के केन्द्रीय समिति ने नही किया | भारतीय संविधान से निर्देशित कानूनों को ताख पर रखकर स्वयंभू कानून बनाने और फैसला करने वाले खाप पंचायतों के  समर्थन में आप पार्टी के लोग बोलते रहें हैं | ये खाप पंचायतें जो जातिवादी जकड़न में बंधी मानवीय अधिकारों को अपनी नाक के लिए कुचलने वाली हैं | अरविंद केजरीवाल खाप पंचायतों के समर्थन के साथ ही आरक्षण विरोधी संगठन ( यूथ फॉर इक्विलिटी) के बैठकों में भी हिस्सा लिया है. यह उनकी देश की महिलाओं, पिछड़ों वंचित तबकों के विकास का असली माडल पेश करता है | स्वराज की बात करने वाले यह देखें :  दिल्ली का देश के सकल घरेलू उत्पाद बनाने में कितना योगदान है और कितना हिस्सा सकल घरलू उत्पाद का दिल्ली के विकास में खर्च होता है ?

दिल्ली के चुनाव में आप पार्टी ने गंगा यमुना के प्रदुषण पर कोई बात नही किया | बनारस में गंगा जंहा प्रदूषित है | वंही टिहरी बांध बनने के कारण बनारस तक गंगा का पानी पहुंच नही पाता | टिहरी बांध का यही पानी दिल्ली और आसपास के लोगों के लिए इस्तेमाल किया जाता है | केजरीवाल ने अभी तक टिहरी बाँध के सवाल नही उठाया, यह अवसरवादिता की राजनीति नही तो और क्या है ?

1998 से 2000 के बीच बीजेपी गठबन्ध सरकार के दौर में बनारस के बुनकरों की हालत खराब हुई | बुनकरों के बच्चे भुखमरी और कुपोषण का शिकार हुए | आर्थिक तंगी से आजिज आकर कई बुनकरों ने आत्महत्याएँ तक कर लिया | इन घटनाओं की खबरें नामी गिरामी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय समाचार पत्रों में प्रकाशित हुई | 2003 में बी.बी.सी. में बुनकरों की बदहाली पर वृतचित्र बनाया, वाशिंगटन पोस्ट 2007 में बुनकरों की बदहाली पर लिखा | साम्राज्यवाद के साथ हिन्दू साम्प्रदायिक फासीवादी की मार झेल रहे बनारस के बुनकरों की हालत पर केजरीवाल एवं उनकी स्वयंसेवी सामाजिक संगठन कबीर फाउंडेशन को तब कोई चिंता नही हुई | अब जब बनारस से चुनाव लड़ने आये तो उन्हें सभी की चिंता होने लगी | बनारस के बहुलतावादी समावेशी संस्कृति के लिए आज जितना साम्प्रदायिक फासीवादी ताकतें खतरा हैं, अवसरवादी अराजक राजनीति करने वाले भी उतने ही खतरनाक हैं | यह याद रखना जरूरी है कि जो दिखाई देता है वही सच नही होता है | जैसे दिखाई देता है कि सूर्य पृथ्वी के चारों ओर घुमता है जबकि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर घुमती है | ऐसे में बनारस व् बनारसीपन को बचाने के लिए मोदी और केजरीवाल दोनों को शिकस्त देनी होगी |

आपके साथी
डा लेनिन, श्रुति नागवंशी, बिन्दु सिंह
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