तीस्ता सीतलवाड़, डा० तीर विजय सिंह और नागेश्वर पटनायक को दिया गया जनमित्र सम्मान
“काशी कुम्भ” और “सदभावना मैनुअल” का हुआ विमोचन
वाराणसी, 10 अगस्त। नौ अगस्त क्रान्ति दिवस पर सांस्कृतिक शहर बनारस में बहुलतावाद एवं समावेशी संस्कृति के मज़बूतीकरण के लिए “बनारस सम्मलेन” का आयोजन बनारस के ‘मूलगादी कबीर मठ’ में किया गया | इस सम्मेलन में हिन्दुस्तान के विभिन्न शहरों से प्रबुद्ध बुद्धिजीवी, समाजसेवी, पत्रकार, शिक्षाविद समेत उ० प्र० के विभिन्न जिलों से आये डेढ़ हजार प्रतिभागियों ने भाग लिया | इस मौके पर मशहूर मानवाधिकार कार्यकत्री तीस्ता सीतलवाड़, वरिष्ठ पत्रकार डा० तीर विजय सिंह एवं नागेश्वर पटनायक को “जनमित्र सम्मान” से सम्मानित किया गया तथा “ बनारस शहर व उसकी संस्कृति ” को हेरिटेज़ घोषित करने की मांग करते हुए 15 सूत्री प्रस्ताव पारित किया गया।
कार्यक्रम का शुभारम्भ बनारस घराने के विख्यात सरोदवादक पं० विकास महाराज एवं तबलावादक पं० प्रभाष महाराज, सितार वादक अभिषेक महाराज के शास्त्रीय संगीत से हुआ | इसके बाद कबीर के कर्मस्थली रहे कबीर के चबूतरे से बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति एवं गंगा के निर्मलता-अविरलता के समर्थन में विभिन्न धर्मों के धार्मिक गुरुओं ने अपना विचार रखा और कार्यक्रम में बढ़-चढ़ कर हिस्सा लेते हुए बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति को बचाने के लिए अपना पूर्ण समर्थन दिया ताकि बनारस की साझा संस्कृति को बनाये रखते हुए इसकी ताज़गी व फक्कड़पन को जिन्दा रखा जा सके |
इस अवसर पर द्वारका पीठ के शंकराचार्य काशी प्रान्त के प्रतिनिधि स्वामी अवमुक्तेश्वरा नन्द जी, मुफ़्ती-ए-शहर बनारस मौलना अब्दुल बातिन नोमानी, वरिष्ठ इस्लामिक चिंतक मौलाना हारून रशीद नक्शबंदी, बौद्ध धर्म गुरु भंते कीर्ति नारायण, बनारस डायोसिस के निदेशक फ़ादर गैब्रील, फ़ादर आनन्द सहित बौद्ध धर्म, जैन धर्म, कबीर व रैदास पंथ के सम्मानित लोगों ने कार्यक्रम में भाग लिया | विभिन्न धर्म गुरुओं ने अपने-अपने धर्म के मतो, विचारों, मान्यताओं व मानवीय मूल्यों के आधार पर समावेशवाद एवं बहुलतावाद विषय पर प्रकाश डाला एवं गंगा के निर्मलता-अविरलता पर आम समाज व सरकार दोनों को संवेदनशील होकर मज़बूत क़दम उठाने का संयुक्त आह्वान किया | विभिन्न विचारकों ने कहा कि आधुनिक उपभोक्तावाद के समय में भी बनारस के आध्यात्मिक मूल्य व समावेशी विशेषता की महत्ता पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ा है, जिसके कारण आज भी बनारस अपने फक्कड़पन जीवन शैली के साथ जीवन्त है | इस कार्यक्रम में गंगा व उसकी अन्य सहायक नदियों की दयनीय स्थिति पर भारत के विभिन्न आईआईटी द्वारा किये गए विस्तृत शोध के उपरांत काशी में आयोजित किये गए “काशी कुम्भ” की रिपोर्ट का विभिन्न धार्मिक गुरुओं ने संयुक्त रूप से विमोचन किया |
इस अवसर पर बहुलतावाद एवं समावेशी परम्परा व संस्कृति के लिए उत्कृष्ट कार्य हेतू सुप्रसिद्ध समाजसेवी एवं मानवाधिकार कार्यकत्री सुश्री तीस्ता सीतलवाड़, सुप्रसिद्ध पत्रकार व हिन्दुस्तान पटना के वरिष्ठ सम्पादक डा० तीर विजय सिंह एवं भुवनेश्वर के इकोनॉमिक टाइम्स के वरिष्ठ पत्रकार नागेश्वर पटनायक को “जनमित्र सम्मान” से सम्मानित किया गया | बनारस के बहुलतावाद व समावेशी संस्कृति को शास्त्रीय संगीत के सुरीले धुनों से भारत ही नहीं पुरे विश्व में फ़ैलाने वाले व देश का नाम देश-विदेश में रोशन करने वाले विख्यात सरोदवादक पं० विकास महाराज व उनके पुत्र तबलावादक पं० प्रभाष महाराज कोमानवाधिकार जननिगरानी समिति ( पीवीसीएचआर ) का ‘ राजदूत ’ बनाते हुए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया गया |
इस अवसर पर बनारस के कोलअसला क्षेत्र से विधायक अजय राय, रमन मैगसेसे अवार्डी व जलपुरुष राजेन्द्र सिंह, वरिष्ठ पत्रकार डा० तीर विजय सिंह, प्रो० दीपक मलिक, पदमश्री सम्मान से सम्मानित तीस्ता सीतलवाड़ ने भी सभा को संबोधित किया और “सदभावना मैनुअल” का विमोचन किया गया | इसके उपरान्त उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों द्वारा “ बनारस कन्वेंशन ”में तय प्रस्ताव को पारित सर्वसम्मति से पारित किया गया |
कार्यक्रम में आशीष मिश्रा व सहयोगियों द्वारा कबीर वाणी में गीत प्रस्तुत किया गया और प्रेरणा कला मंच द्वारा “गंगा हो या गांगी” शीर्षक नाटक का संवेदनशील मंचन किया गया | सुप्रसिद्ध वृत्तचित्र निर्माता व निदेशक गोपाल मेनन की मुज्जफ़रनगर दंगे पर वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम के अंत में सम्मलेन के समापन के बाद कबीरचौरा मठ से लहुराबीर आजाद पार्क तक “कबीर पद यात्रा” भी निकली गयी | कन्वेंशन का संचालन सुप्रसिद्ध रंगकर्मी व्योमेश शुक्ला व समाजसेवी अतिक अंसारी द्वारा किया गया |
इस अवसर पर बनारस कन्वेंशन कार्यक्रम के उद्देश्य व विषय वस्तु पर डा० लेनिन रघुवंशी ने विस्तृत प्रकाश डाला और उन्होंने कहा कि हम लोग मिलजुल कर “ बनारस शहर व उसकी संस्कृति ” को हेरिटेज़ घोषित कराये जाने के लिए राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर लगातार सरकार व यूनेस्को पर दबाव डालते रहेंगे | इसके लिए एक वेबसाइट “
banarasconvention.com” एवं फेसबुक पेज बनाया जाएगा | कार्यक्रम में स्वागत भाषण मुनीज़ा रफ़ीक खान एवं धन्यवाद ज्ञापन श्रुति नागवंशी ने किया |
बनारस कन्वेंशन में पारित प्रस्ताव
1 -बनारस घराना के संगीतज्ञ जहाँ एक तरफ हिन्दू देवी-देवताओं की स्तुति गायन के साथ अपना शास्त्रीय संगीत का शुभारम्भ करते हैं वही अफगानिस्तान से आये सरोद, ईरान से आये शहनाई व सितार का गौरव के साथ उपयोग करते है । शास्त्रीय संगीत की इस संयुक्त परम्परा को बनारस में जीवित रखने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किया जाए। बनारस में शास्त्रीय संगीत को जीवंत बनाये रखने के लिए एक बड़ा “ हिन्दुस्तानी संगीत संस्थान ” बनाया जाना चाहिये। जहाँ पर देश-विदेश के छात्र आकर संगीत शिक्षा प्राप्त कर सकें और पर्यटन को भी बढ़ावा मिले।
2- हिन्दू, बौद्ध, इस्लाम, ईसाई, यहूदी, बहाई, जैन, सिख, संत परम्परा, सूफी पंथ सभी का बनारस से जुड़ाव रहा है । इस साझा संस्कृति व परम्परा को बचाए रखते हुए संयुक्त रूप से सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ़ लोगों को जागरूक किया जाये ताकि बनारस की गंगा-जमुनी तहज़ीब को बरक़रार रखा जा सके।
3- बनारस बहुलतावाद व समावेशवाद का एक बहुत बड़ा केन्द्र है और यह केन्द्र ‘ गंगा तटीय सभ्यता का हेरिटेज ’ है । जिससे भारत ही नहीं, पूरी दुनिया के लोग सामाजिक सौहार्द, सामंजस्य व भाईचारे की भावना सीख सकते है, कि अपने अन्तर्विरोधों के साथ भी सहिष्णुता से कैसे रहा जा सकता है। इसलिए आस्था, विश्वास व तर्क के शहर बनारस के इतिहास, प्रमुख स्थलों व बनारस शहर की साझा संस्कृति को “ हेरिटेज ” घोषित किया जाए ।
4- गंगा और उसकी 1500 सहायक नदियों की अविरलता को बनाये रखते हुए निर्मलता के साथ बिना अवरोध बहने दिया जाए ताकि नदी तटीय सभ्यता को बचाया जा सके। बनारस को ‘ गन्दा जल नहीं, गंगा जल ’ मुहैया कराया जाए ।
5- नदियाँ हमारे संस्कृति व सभ्यता का केन्द्र हैं। लोगों की आजीविका, धार्मिक आस्था, आध्यात्मिकता, गरिमा, जीवन व सभ्यता इसी से जुड़ा है। इसलिए भारत सरकार को नदियों को संस्कृति विभाग के अधीन किया जाए।
6- भगवान शिव के प्रिय साड़ “ नंदी ” को बनारस शहर में पीने का पानी और पशु चिकित्सक भी मुहैया कराया जाए ।
7- सिंगापुर की तर्ज पर पुराने बनारस शहर को हेरिटेज के तौर पर संजोया जाए और नये शहर को आधुनिक दुनिया की तरह पुराने शहर से अलग दूसरी जगह बसाया जाए ।
8- बनारस शहर के शिल्प कला के बिनकारी (बनारसी साडी उदद्योग), लकड़ी के खिलौने के काम ,जरदोजी, देवी-देवताओं के मुकुट की कला व सनत को प्रोत्साहित व संरक्षित किया जाय । इन उद्योगों को बचाने के लिए बजट में अधिक आवंटन किया जाये और इन उद्योगों से जुड़े लोगों को विभिन्न कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाये।
9- दुनिया के विभिन्न सेनाओं व पुलिस के बैज भी बनारस में बनते है । श्री कृष्ण का तांबे का झूला बनारस में बनाया जाता है। हिन्दू देवी-देवताओं के वस्त्र, मुकुट, माला बनारस के मुस्लिम दस्तकार व बुनकर बनाते हैं । ऐसे सभी शिल्प कला व सांस्कृतिक धरोहरों को बचाने के लिए सरकार प्रभावी योजना बनाकर ऐसे कारीगरों व तबकों को पुनर्जीवित व संरक्षित करे।
10- बनारस के बहुलतावाद और समावेशी इतिहास को बनारस के स्कूलों, मदरसों व अन्य शैक्षणिक संस्थानों में पढ़ाया जाय । जिससे अगली पीढ़ी बनारस के धरोहर को आदर और सम्मान से संभाल सके |
11- बनारस के सभी पर्यटन स्थल, सांस्कृतिक केन्द्र को भी पर्यटन की सूची में शामिल करते हुए विकसित किया जाए और इन महत्वपूर्ण केन्द्रों को भी पर्यटन व संस्कृति विभाग से जोड़ा जाए। ताकि अधिक से अधिक पर्यटकों को बनारस की प्राचीन व गौरवशाली परम्परा व इतिहास से जोड़ा जा सके । जैसे : मार्कंडेय महादेव, बाबा विश्वनाथ मन्दिर, मृत्युन्जय महादेव, रामेश्वर, बाबा कालभैरव, संकट मोचन मन्दिर, मूलगादी कबीर मठ व कबीर जन्म स्थलीय,ढाई कंगूरा की मस्जिद, मानसिंह का वेधशाला, कारमाईकल लाइब्रेरी, मौलाना अल्वी की मज़ार, नागरीय प्रचारणी सभा, मुंशी प्रेमचन्द्र का घर, धरहरा की मस्जिद, जैन तीर्थंकर स्थल, चौहट्टा लाल खां का मकबरा, अनेक कुण्ड व तालाब इत्यादि।
12- बनारस उसके प्राचीन व गौरवशाली इतिहास को संजोते हुए उनके सभी महत्वपूर्ण एतेहासिक तथ्यों, पुस्तकों, दस्तावेज़ों, वस्तुओं को संस्कृति विभाग के अधीन संग्रहालय (Museum) बनाकर संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाये।
13- बनारस शहर में रहने वाले बेघर ग़रीब नागरिकों, वृद्धों, महिलाओं के लिए सरकारी स्तर पर आश्रय स्थल व रहने के लिए मकान, स्थान की व्यवस्था किया जाये।
14- बनारस में गंगा किनारे रहने वाले आर्थिक रूप से कमज़ोर नाविक समाज व उनके बच्चों, बुनकरों व उनके बच्चों एवं अति वंचित मुसहरों व अन्य समुदायों को स्वास्थ्य, सुरक्षा, शिक्षा तथा सस्ते ऋण जैसे महत्वपूर्ण मूलभूत कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा जाए और पुनर्वासित किया जाए। ताकि समाज का वह तबका भी विकास की मुख्य धारा से जुड़ सके।
15- बनारस के गौरवशाली इतिहास के साक्षी रहे वे संस्थान व पुस्तकालय, कुण्ड, तालाब जो दबंगों व पूंजीपतियों के अवैध कब्ज़े में हैं, उन्हें मुक्त कराते हुए सरकार द्वारा अपने संरक्षण में लेकर सरकारी देख-रेख में संरक्षित और पुनर्जीवित किया जाए।