बीते 16 मई को योगेंद्र यादव को लंदन जाना था। वे नहीं गए। लंदन में कोई दो सौ साल पुराना एक वैश्विक थिंकटैंक है जिसका नाम है ऑक्सफर्ड यूनियन। यह थिंकटैंक वैश्विक मसलों पर बहस करवाने के लिए मशहूर है और राष्ट्रों की नीतियों पर भी अलग-अलग तरीके की रायशुमारी के माध्यम से असर डालता है। इसी की बहस में योगेंद्र यादव और अधिवक्ता प्रशांत भूषण विषय के पक्ष में आमंत्रित थे। इनके अलावा कांग्रेस से सलमान खुर्शीद भी पक्ष में बुलाए गए थे। विषय के विपक्ष में दो वक्ता थे- गुरचरन दास और जाह्नवी डडारकर। बहस का विषय जानकर आपको आश्चर्य होगा: ‘’दिस हाउस हैज़ नो कॉन्फिडेंस इन मोदी गवर्नमेंट’’ (इस सदन को मोदी सरकार पर विश्वास नहीं है)। इस विषय की प्रस्तावना नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस से डॉ. लेनिन रघुवंशी को प्रस्तुत करनी थी जिसके बाद बहस शुरू होती।
ध्यान देने वाली बात है कि योगेंद्र यादव, जो वैसे तो कार्यकर्ताओं को स्वराज इंडिया की राजनीतिक लाइन के बतौर ‘’दक्षिणपंथी ताकतों के विरोध’’ की बात गिनवाते हैं, इसी विरोध का मुखर मौका एक अहम अंतरराष्ट्रीय मंच पर मिलने के बावजूद खुद नहीं गए। इसके बजाय उन्होंने स्वराज अभियान को देख रहे प्रशांत भूषण को वहां भेज दिया। सांप भी मर गया और लाठी भी बच गई।
ऐसा कहां होता है कि पार्टी और अभियान एक साथ एक ही नाम से चलते हैं? स्वराज इंडिया एक राजनीतिक पार्टी है और स्वराज अभियान उसका कैम्पेन। स्वराज अभियान का जिम्मा प्रशांत भूषण के पास है। पार्टी का यादव के पास। जब कांग्रेस पार्टी के प्रवक्ता के बतौर सलमान खुर्शीद विदेशी मंच पर जाकर मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बहस कर सकते हैं तो यादव को क्या परहेज? क्या वे प्रशांत भूषण के मुखर स्वर और दक्षिणपंथ के खिलाफ राजनीतिक प्रतिबद्धता का इस्तेमाल अपनी राजनीतिक सुविधा के लिए कर रहे हैं?
ज्यादा दिलचस्प बनारस के डॉ. लेनिन को न्योता देकर मौका न दिए जाने का मामला रहा, जो 2011 से ही यह राजनीतिक लाइन लिए हुए हैं कि ‘’नरेंद्र मोदी हिटलर है और अरविंद केजरीवाल मुसोलिनी’’। मोदी के चुनावी गढ़ बनारस में आरएसएस की खुलकर मुखालफ़त करने वालों में डॉ. लेनिन का नाम विरल है। उनके ऊपर कुछ साल पहले इस मुखालफ़त के लिए जानलेवा हमला भी हो चुका है। मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर बनारस के चुनाव से ठीक तीन दिन पहले हो रही एक अंतरराष्ट्रीय बहस में बनारस के आरएसएस विरोधी स्वर को आखिर किसने रोकने का काम किया? इसका जवाब जानना उतना ही अहम है जितना यह कि योगेंद्र यादव दक्षिणपंथ के विरोध की राजनीतिक लाइन को बड़े मंच पर पुष्ट करने के लिए खुद क्यों नहीं गए और उलटे यहां बैठकर उन्होंने ‘’कांग्रेंस की मौत’’ की कामना क्यों कर डाली।
Open letter to Anna:
On election of Varanasi in 2014: