Monday, April 24, 2023

ग्राउंड रिपोर्ट: रोजगार की कमी और महंगाई के बीच पिस रहे कामगारों के लिए दूर की कौड़ी बनी पेंशन स्कीम

 https://janchowk.com/zaruri-khabar/pension-scheme-made-a-far-cry-for-hardworking-workers/

मानवाधिकार और हाशिए पर पड़े समाज के उत्थान के लिए काम करने वाले बनारस के एक्टविस्ट डॉ. लेनिन कहते हैं कि “मेहनतकश समाज को आज देश के अमृतकाल में दो वक्त की रोटी, तन ढकने के कपड़े और जीवन को इंच-इंच आगे बढ़ाने के लिए लगातार कठोर परिश्रम करना पड़ता है। इसमें भी कई ऐसे हैं, जिनके रोजी-रोजगार की पुख्ता गारंटी नहीं है।”

लेनिन कहते हैं कि “देश में हाशिये पर पड़े करोड़ों लोग, स्मार्ट और आधुनिक समाज के मुंह पर तमाचा हैं। बहरहाल, मानधन योजना तो ठीक थी, लेकिन कोरोनाकाल में मजदूरों के अंशदान को सरकारी कोष से जमा किया जाना चाहिए था। यह भी देखने को मिला है कि देश का पैसा पूंजीपति लेकर विदेश भाग जा रहे हैं। बैंक कर्ज पर कर्ज दिए जा रहे हैं, और कर्ज की राशि माफ़ भी की जा रही है। ऐसे में केंद्र या राज्य के खजाने से मजदूरों के दो-तीन साल की किश्त भी जमा कर दी जाती तो क्या हो जाता?”

DR LELIN
मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ. लेनिन

मानधन योजना का हो पुनर्मुल्यांकन

डॉ. लेनिन देश में जातिवाद और धर्म के बढ़ते कट्टरपन पर चोट करते हुए आगे कहते हैं कि “देश में आधारभूत और संरचनात्मक विकास मेहनतकश के श्रम से होता है। धर्म को आधार बनाकर राजनीति करने वालों को मजदूर, लाचार और पसमांदा समाज के हित के बारे में सोचना चाहिए। आप जिन्हें तकरीबन दो हजार सालों से दबाते-सताते आ रहे हैं, जब तक उनको जीवन की गारंटी नहीं दीजियेगा। और लोकतांत्रिक देश में उनकी उपेक्षा और उनके अधिकारों को हड़पकर धर्म कैसे बचा लीजियेगा?”

लेनिन कहते हैं कि “कोरोना में रोजगार चले गए और मंहगाई अब भी बेलगाम है। बदली हुई परिस्थिति में मेहनतकश वर्ग टिक नहीं पा रहा है। समय आ गया है कि प्रधानमंत्री श्रम योगी मानधन योजना का पुनर्मूल्यांकन हो। तभी सही मायने में योजना कामगारों के साथ न्याय कर पाएगी। मौका दिए जाने पर यह वर्ग आशा से दोगुना रिजल्ट देता है। समाज में इसके कई उदहारण मौजूद है। बशर्ते की सरकार बेईमानी के दृष्टिकोण से मुक्त होकर काम करे।”

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