Sunday, May 28, 2023

कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 6

 अप्रैल २०२३ से जब मैंने ब्लॉग में कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना लिखना शुरू किया. 21 मई को मनिला और बैंकाक से भारत आये और २३ के शाम काशी पहुचे.  १९८८ में घर से निकले गए और फिर १९९४ में . १९९७ में जब स्टालिन  अकाल मृत्यु हुआ, तब घर  का एक हिस्सा मानवाधिकार जन निगरानी समिति को दिया गया.   

MONDAY, APRIL 24, 2023

#माँ ने पहली बार #वसीयत 2002 में लिखा. कबीर पैदा हो गए थे. बहुत ही गलत तथ्य को लिख कर मेरा और श्रुति का नाम वसीयत से हटा दिया गया था. विदित है कि उस समय मैं अपने परिवार के साथ माँ के साथ रहता था. आयुर्वेदाचार्य करने के तुरंत बाद १९९४ में मेरे पिता ने मुझसे घर का खर्चा माँगा. घर से निकाले गए और शिव प्रताप चौबे के घर रहे और बचपन बचाओ आन्दोलन में काम शुरू किये. विदित है कि आयुर्वेदाचार्य के बाद सरकारी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल और सरकारी एलोपैथिक हॉस्पिटल में इंटर्नशिप करना होता था. सरकारी आयुर्वेदिक हॉस्पिटल तो मैं कबीरचौरा , वाराणसी से पूर्ण किया. फिर भदोही के सरकारी एलोपैथिक हॉस्पिटल में इंटर्नशिप के लिए मैं साइकिल से वाराणसी से जाना शुरू किया. साइकिल से वाराणसी से बाने की बात पता चलने के बाद डॉ. इकबाल सिंह (जो हमारे पडोसी थे) ने बड़ी मदद की. इंटर्नशिप के बाद मेरा आयुर्वेदाचार्य(Bachelor in #Ayurveda, Modern medicine and Surgery) का परिणाम आया. मेरा दश उत्कृष्ट लोगो में नाम आया. जिससे मेरे कॉलेज के हॉस्पिटल में एक साल के लिए हाउस ऑफिसर के नियुक्ति के लिए हरिद्वार बुलाया गया था. इंटर्नशिप पूरा होने पर ही एक साथ पैसा मिलता था. मेरे पास पैसा नहीं था. और हरिद्वार जाना था. इसी की सूचना मैअने माँ को और पिता को दी, किन्तु पिता उल्टा मेरे से घर का खर्चा माँगने लगे. घर से निकाल दिए गए और मैंने उसी दिन निर्णय लिया कि आयुर्वेदाचार्य से आजीविका नहीं जियेगे. समाज सेवा में लग गए. मेरे पिता का मेरे गांधीवादी दादा से राजनितिक मतभेद था. मै बचपन के 6 साल तक दादा और दादी के साथ पला. तो मेरे संस्कार वही से थे. मुझे आज भी भाई स्टॅलिन के परीक्षा में असफल होने पर मुझे मार खाना याद है. दूसरो की गलती पर लोहे के जंजीर से मार खाना याद है. उच्च विद्यालय(High School) के बाद घर छोड़कर अपने गाँव धौरहरा से इंटरमीडिएट करना याद है.

2007 में ग्वांगजू अवार्ड पाने पर अपने रहने के लिए माँ और पिता के कहने पर 8 लाख में घर बनाया. अलग बिजली का मीटर लगवाया. बिजली का मीटर और घर दोनों की कागज़ पर मालकिन माँ थी. माँ ने कभी 2002 के वसीयत के बारे में नहीं बताया.2011 में माँ के कहने पर भाई के कणाद का हिस्सा बनवाया और बिजली का मीटर माँ के नाम से लगवाया. फिर 2012 में माँ और पिता के विवाह के 50वी सालगिरह मनाया , तब माँ ने बताया कि कुछ लोगो ने मिलकर वसीयत लिखवाया है , जिसमे तुम्हारा नाम नहीं है. मैंने कोई जमींन और मकान नहीं बनाया. फिर माँ ने एक दूसरी वसीयत की, जिसमे अपने पोतो को वारिस बनाया . मेरे पुत्र कबीर भी उसमे है. मैंने माँ को, पिता को और भाई लोगो को चेक से पैसा दिया. पिता और माँ को कैश भी दिया. जब मैं COVID से ग्रसित होकर 12 दिन तक ICU में था , तो माँ और पिता ने एक किलो सेव या कोई फल नहीं भेजा.

THURSDAY, APRIL 27, 2023

कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 3 से अधोलिखित:  


 

यह फोटो 1997 का हैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एमएन वेंकटचलैया (https://en.wikipedia.org/wiki/M._N._Venkatachaliah) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति वीएस मालिमथ (https://en.wikipedia.org/wiki/V._S._Malimathके साथ फोटो में मेरे पिता दिख रहे है. इससे पूर्व मेरे भाई स्टालिन की अकाल मृत्यु हो गया था. मैं 1994 में घर से निकाल  दिया गया था. स्टालिन की मृत्यु पर मैंने पहल किया और मेरे खिलाफ हमले हुए. जिससे 1997  में मेरे माँ के घर का एक हिस्सा स्टालिन खंड के रूप में मानवाधिकार के कार्य के लिए दिया गया. यह हिस्से का इस्तेमाल बंद हो चूका था क्योकि एक किरायेदार के भाई ने इसी खंड में आत्महत्त्या कर लिया था. इस खंड में मैने सीढ़ी का निर्माण कराया और पानी के लिए  बोरिंग कराया. खंड को ठीक किया गया. विदित है कि 1998 में मै बाल मजदूरी के खिलाफ विश्व यात्रा में एशिया और यूरोप के देशो की यात्रा में शामिल था. कबीर भी 1998 में पैदा हुए और मै कबीर के जन्म के 20 दिन बाद विदेश से लौटा. इस पर विस्तृत चर्चा आगे करेगे. 1999 में बचपन बचाओ आन्दोलन से इस्तीफा देकर माँ के घर में रहने लगा.

   1997 में पुलिस की गोली से काशी हिन्दू विश्वविदालय के एक छात्र और श्री उपेन्द्र जी, भोजूवीर निवासी की मृत्यु हो गयी थी. मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने उदय प्रताप कॉलेज में बालमजदूरी पर सेमिनार का आयोजन किया था. उसके बाद मेरे माँ के घर का एक हिस्सा स्टालिन खंड के रूप में मानवाधिकार के कार्य के लिए मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यालय के उद्घाटन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एमएन वेंकटचलैया (https://en.wikipedia.org/wiki/M._N._Venkatachaliah) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति वीएस मालिमथ (https://en.wikipedia.org/wiki/V._S._Malimath) ने किया. बैठने के लिए कुर्सी और टेबल नहीं था, इसलिए न्यायमूर्ति द्वय जमीन पर ही बैठे. इस कार्यक्रम से माँ के घर की धमक प्रशासन और शासन में बनी. स्टालिन के केस में मदद मिली.

   फिर 2007 में ग्वांगजू अवार्ड पाने पर अपने रहने के लिए माँ और पिता के कहने पर लाख में घर बनाया. अलग बिजली का मीटर लगवाया. बिजली का मीटर और घर दोनों की कागज़ पर मालकिन माँ थी. किन्तु माई ने पहली वसीयत 2002 में लिखा तो इन बातो को दरकिनार कर गलत तथ्य को लिख कर मेरा और श्रुति का नाम वसीयत से हटा दिया गया था.  

MONDAY, APRIL 24, 2023

कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 2 से अधोलिखित:  


#दादी मेरा संस्कार है. दादी का आखिरी पेंशन करीब ४७ हजार था. पेंशन पिता जी ही रखते थे.
खा नहीं पाती थी आखिरी समय में . श्रुति ट्रोपिकाना का fruit  जूस देती थी पीने के लिए . दादी को बहुत पसंद था.
दादी मुफ्तखोरो के खिलाफ थी. श्रम से सृजन को आदर्श मानती थी. ४७ हजार के पेंशन और उनका जो भी आखिरी में सम्मान था वो सब भोगेगे अपने आखिरी में जो उनके पेंशन के लाभार्थी थे. दादी वैष्णव थी.

दादी का काफी सम्मान था आखिरी में ?

ईश्वर को जबाब देना हैं बस. कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाने के खिलाफ थी दादी . परिवार का सब खोलना आदर्श के खिलाफ है. इसलिए बस इतना ही

आज 28 मई २०२३ को: 

कणाद ने आत्महत्या कर लिया. अनेक कमिया  थी. किन्तु वो हमेशा आत्महत्या के खिलाफ था. माँ के आखिरी वसीयत में उसे जबसे ज्यादा मिला था. किन्तु कोई दो generation तक बेच नहीं सकता था. पिता जी अपने पेंशन से तीस हजार रूपया महिना देते थे.  जो आराम से घर चलने के लिए काफी था. कई व्यापार किया ,जिसमे सबसे ज्यादा मदद मैने की. आखिरी जमानत भी मैंने कराया था. 
माँ के मरने के बाद   मैने अपना सम्बन्ध घर से ख़त्म कर लिया हु. फिर भी संस्कारो में सनातनी होने के नाते  शामिल होता हूँ.


भाग चार भी देखे:

THURSDAY, MAY 11, 2023

कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 4




 आज माँ की बहुत याद आ रही प्रथम फोटो 15 जून 2020 का है और दूसरी फोटो 17 जून 2022 की है.विदित हैं कि जुलाई 2022 में माँ गोलोकवासी हुयी.

माँ 2015 से ज्यादा बीमार थी. माओ की पत्नी ने ,राहुल की पत्नी ने और फिर सयुग्वा की पत्नी ने जबरदस्त सेवा किया . सबसे ज्यादा समय सयुग्वा की पत्नी ने सेवा किया. अस्थमा और मधुमेह होने के बाद भी माँ का स्वास्थ्य बहुत अच्छा था. कोविद (covid) में मस्त रही. सितम्बर 2021 में शादी के बाद कणाद की पत्नी ने सेवा किया .

आखिरी समय शुभम हॉस्पिटल में कणाद और उसकी पत्नी ने सेवा किया. शुभम हॉस्पिटल से कणाद ने फ़ोन करके वेंटीलेटर लगाने के लिए मुझे बुलाया था. श्रुति और मैं माँ धूमावती और बटुक भैरव के मंदिर में माँ के लिए पूजा करने गए थे. पिता जी के फ़ोन के बाद मै श्रुति और राकेश रंजन के साथ शुभम हॉस्पिटल गया. वेंटीलेटर लगाने का हस्ताक्षर कर ही रहा था कि माँ के मृत्य हो गयी. मुझको बुलाकर ही क्यों हस्ताक्षर कराया गया ? ये एक यक्ष सवाल है.

12 दिन ICU में रहने के बाद मैंने माँ के स्वास्थ्य के लिए 2021 में 2 लाख रुपये चेक से दिया था. एक BPL का ऑक्सीजन मशीन भी दिया था.

अनेको सवाल है माँ के मृत्य पर. मैंने एक ईमेल से दुसरे ईमेल पर लिख कर रखा हूँ. आखिरी इलाज का पैसा देने के बाद गोलोकवासी माँ को घर ले आये. माँ को जल्द न्याय मिलेगा.

माँ को नमन . माँ ने मुझे सही बताया था जो मैंने ईमेल में रखा था. जिसके अनुसार मेरे कम्युनिस्ट पिता हमेशा दादा से लड़ते रहे और मै दादा के साथ था,इसलिए मुझे सबक सिखाने का कदम उठाये.माँ ने बताया था , पिता भाई का इस्तेमाल करके मेरा कैरियर ख़त्म कर देगे. सादर नमन माँ.  3 अगस्त २०२२ के ईमेल का स्क्रीनशॉट देखे.   

ABP को २०२१ में भी सही बताया था. २०२२ में वसीयत खुलने पर सही साबित हुआ.   बस दादी,दादा और माँ का आशीर्वाद बना रहे.

#धौरहरा #दौलतपुर #कुटुम्बकम #वाराणसी

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