अभी हाल में पिता ने एक आवेदन में 6 पुत्र का जिक्र किया. साथ रहो भाई स्टालिन. तुम्हारे न्याय का संघर्ष जारी है. मै गर्व से कहता हूँ तुम मेरे भाई थे, मस्त और बौड़म. बस मेरे साथ रहो. सत्य जीतेगा. जायजाद के भूखे हारेगे. कुटुम्ब की परम्परा जिंदाबाद. लूट की अपसंस्कृति का हो विनाश.
Monday, May 29, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 7
अभी हाल में पिता ने एक आवेदन में 6 पुत्र का जिक्र किया. साथ रहो भाई स्टालिन. तुम्हारे न्याय का संघर्ष जारी है. मै गर्व से कहता हूँ तुम मेरे भाई थे, मस्त और बौड़म. बस मेरे साथ रहो. सत्य जीतेगा. जायजाद के भूखे हारेगे. कुटुम्ब की परम्परा जिंदाबाद. लूट की अपसंस्कृति का हो विनाश.
Sunday, May 28, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 6
अप्रैल २०२३ से जब मैंने ब्लॉग में कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना लिखना शुरू किया. 21 मई को मनिला और बैंकाक से भारत आये और २३ के शाम काशी पहुचे. १९८८ में घर से निकले गए और फिर १९९४ में . १९९७ में जब स्टालिन अकाल मृत्यु हुआ, तब घर का एक हिस्सा मानवाधिकार जन निगरानी समिति को दिया गया.
MONDAY, APRIL 24, 2023
THURSDAY, APRIL 27, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 3 से अधोलिखित:
यह फोटो 1997 का हैं राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एमएन वेंकटचलैया (https://en.wikipedia.org/wiki/M._N._Venkatachaliah) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति वीएस मालिमथ (https://en.wikipedia.org/wiki/V._S._Malimath) के साथ फोटो में मेरे पिता दिख रहे है. इससे पूर्व मेरे भाई स्टालिन की अकाल मृत्यु हो गया था. मैं 1994 में घर से निकाल दिया गया था. स्टालिन की मृत्यु पर मैंने पहल किया और मेरे खिलाफ हमले हुए. जिससे 1997 में मेरे माँ के घर का एक हिस्सा स्टालिन खंड के रूप में मानवाधिकार के कार्य के लिए दिया गया. यह हिस्से का इस्तेमाल बंद हो चूका था क्योकि एक किरायेदार के भाई ने इसी खंड में आत्महत्त्या कर लिया था. इस खंड में मैने सीढ़ी का निर्माण कराया और पानी के लिए बोरिंग कराया. खंड को ठीक किया गया. विदित है कि 1998 में मै बाल मजदूरी के खिलाफ विश्व यात्रा में एशिया और यूरोप के देशो की यात्रा में शामिल था. कबीर भी 1998 में पैदा हुए और मै कबीर के जन्म के 20 दिन बाद विदेश से लौटा. इस पर विस्तृत चर्चा आगे करेगे. 1999 में बचपन बचाओ आन्दोलन से इस्तीफा देकर माँ के घर में रहने लगा.
1997 में पुलिस की गोली से काशी हिन्दू विश्वविदालय के एक छात्र और श्री उपेन्द्र जी, भोजूवीर निवासी की मृत्यु हो गयी थी. मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने उदय प्रताप कॉलेज में बालमजदूरी पर सेमिनार का आयोजन किया था. उसके बाद मेरे माँ के घर का एक हिस्सा स्टालिन खंड के रूप में मानवाधिकार के कार्य के लिए मानवाधिकार जन निगरानी समिति के कार्यालय के उद्घाटन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष व माननीय सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एमएन वेंकटचलैया (https://en.wikipedia.org/wiki/M._N._Venkatachaliah) और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य न्यायमूर्ति वीएस मालिमथ (https://en.wikipedia.org/wiki/V._S._Malimath) ने किया. बैठने के लिए कुर्सी और टेबल नहीं था, इसलिए न्यायमूर्ति द्वय जमीन पर ही बैठे. इस कार्यक्रम से माँ के घर की धमक प्रशासन और शासन में बनी. स्टालिन के केस में मदद मिली.
फिर 2007 में ग्वांगजू अवार्ड पाने पर अपने रहने के लिए माँ और पिता के कहने पर 8 लाख में घर बनाया. अलग बिजली का मीटर लगवाया. बिजली का मीटर और घर दोनों की कागज़ पर मालकिन माँ थी. किन्तु माई ने पहली वसीयत 2002 में लिखा तो इन बातो को दरकिनार कर गलत तथ्य को लिख कर मेरा और श्रुति का नाम वसीयत से हटा दिया गया था.
MONDAY, APRIL 24, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 2 से अधोलिखित:
दादी मुफ्तखोरो के खिलाफ थी. श्रम से सृजन को आदर्श मानती थी. ४७ हजार के पेंशन और उनका जो भी आखिरी में सम्मान था वो सब भोगेगे अपने आखिरी में जो उनके पेंशन के लाभार्थी थे. दादी वैष्णव थी.
दादी का काफी सम्मान था आखिरी में ?
ईश्वर को जबाब देना हैं बस. कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाने के खिलाफ थी दादी . परिवार का सब खोलना आदर्श के खिलाफ है. इसलिए बस इतना ही
THURSDAY, MAY 11, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 4
ABP को २०२१ में भी सही बताया था. २०२२ में वसीयत खुलने पर सही साबित हुआ. बस दादी,दादा और माँ का आशीर्वाद बना रहे.
Friday, May 12, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 5
Thursday, May 11, 2023
कुटुम्ब नामक संस्था को शुभ लाभ की जगह लूट का केंद्र बनाना : भाग 4
Friday, May 5, 2023
Editorial by Shruti Nagvanshi and article of Lenin Raghuvanshi for Hindi Daily Sanmarg
Editorial by Shruti Nagvanshi and article of Lenin Raghuvanshi for Hindi Daily #Sanmarg
#LeninRaghuvanshi #ShrutiNagvanshi
Tuesday, May 2, 2023
ग्राउंड रिपोर्ट: ईंट भट्ठे में अपना वर्तमान और भविष्य झोंक रहे बंधुआ मजदूरों को आजादी का इंतजार
https://janchowk.com/zaruri-khabar/bonded-laborers-of-brick-kiln-await-freedom/
बदल रही है व्यवस्था, आवाज उठाने लगे हैं मजदूर
मानवाधिकार जन निगरानी समिति के संयोजक व दलित मानवाधिकार कार्यकर्ता डॉ लेनिन रघुवंशी ने हाल के दस वर्षों में ईंट भट्ठे पर बंधुआ मजदूरी करने वाले तकरीबन 4000 से अधिक बंधुआ श्रमिकों को मुक्त कराने व पुनर्वास की व्यवस्था उपलब्ध कराया हैं। डॉ लेनिन बताते हैं “कर्ज लेने के चलते ही बंधुआ मजदूरी का कुचक्र चलता है। आज भी देश में ईंट भट्ठों पर लगभग 20 से 22 फीसदी मजदूर बंधुआ ही है। भट्ठों पर बहुत ही कठिन परिस्थितियों में ये मजदूर काम करते हैं।”
डॉ. लेनिन कहते हैं कि “चूंकि ईंट-भट्टों में काम करने वाले अधिकतर मजदूर झारखंड, बिहार और पड़ोसी जनपदों के होते हैं। इस वजह से इनका आर्थिक शोषण भी होता है। इन मजदूरों की ताकत दूसरे राज्यों में आकर कम हो जाती है। जागरूकता के अभाव में और कर्ज चुकाने की मजबूरी में यह कहीं शिकायत भी नहीं कर पाते। हालांकि, अब कई मामले देखने को मिल रहे हैं, जिसमें मजदूरी रोकने और बलपूर्वक काम लेने पर मजदूर पुलिस थाने का रुख कर रहे हैं।”
जमीन पर उतरेगा कानून तो मुख्य धारा में आएंगे मजदूर
बतौर डॉ. लेनिन, “आजादी के अमृतकाल में एक बड़ा वर्ग केंद्र और राज्य की दर्जनों कल्याणकारी योजनाओं से वंचित है। यह सभी को शर्मसार करने वाली तस्वीर है। श्रमिकों के बच्चों को स्कूल, आंगनबाड़ी से जोड़ने पर विचार किया जाना चाहिए। महिला और बच्चियों के स्वस्थ्य के लिए आशा और अन्य प्रकार के स्वास्थ्य कर्मियों को जिम्मेदारी दी जानी चाहिए।
भोजन की गारंटी के लिए राशन, आवास, कार्यस्थल पर साफ पेयजल, बाथरूम, शौचालय, रास्ते, काम के घंटों का निर्धारण, मानक के अनुरूप मजदूरी का भुगतान, पेशगी या एडवांस देने वालों पर कानून की नजर, कर्ज के ब्याज के रूप में महीनों काम करने पर रोक आदि की व्यवस्था की जानी चाहिए। समय-समय पर कई हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने इस बारे में फैसले दिए हैं, लेकिन जमीन पर उनकी पालन नहीं होती। मेरा मानना है कि कानून को जमीन पर प्रभावी बनाने के प्रयास सरकार को करने चाहिए।”
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